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मम्लधेतसः
- अम्मवेत
जाती है उसी प्रकार इसमें भी सूई डालने से सूई गल जाती है । ( भा० पू० १ भा० ) ___ अत्यन्त खट्टा, अफरा और कफ तथा वात नाशक है। यही पका हुश्रा (पक्कफल) दोषघ्न, श्रमन्न, अ.ही और भारी है । (राज.)
अम्लवेतस के वैद्यकीय व्यवहार
चरक · भेदनीय, दीपनीय, अनुलोमक एवं वातश्ले मप्ररामक द्रव्यों में अम्लवेत जेष्ठ है। (सू० २५ अ०)। वङ्गसेन-पीहा में अम्लवेतस-सर्हिजन की जड़ की छाल का सैंधवयुक्त क्वाथ प्रस्तुत कर उसमें बहु थैकल चणं एवं अल्प पीपल व मरिच का चूर्ण मिटित कर लीहोदरी को सेवन कराए । ( उदर चि.)
वक्तव्य चरकमें अम्लवेतस का पाठ हृधयर्ग के अन्तर्गत पाया है (सू०४०)। चरक के , गुल्म चिकित्साधिकार में द्रव्यान्तर से अम्लवेतस का बहुशः प्रयोग पाया है। यथा-(१) "पुष्कर व्योष धान्याम्ल बेतस"- (२) "तिन्तिहीकालवेतसः" । (३) "शटी पुष्कर हिंग्वम्ल देतस"-(चि. ५ अ०)। सुश्रुतोक्त गुल्म चिकित्साधिकार में अम्जवेतस का आरम्बार रल्लेख दिखाई देता है । यथा-(1) "हिंगु सौवर्चल * * अम्लवेतसैः। (२) "हिंग्वम्लवेतसाजाजी"-( उ० ३२ अ.)। अग्निमान्याधिकार के प्रसिद्ध "भास्करलवण" में अम्मवेतसका पाठ पाया है।चक्रदत्तोक्त गुल्माधिकार में "हिंग्वाद्य चूर्ण", "काङ्कायन गुरिका" तथा "रसोनाद्य घृत' प्रादि योगों में अम्लवेतस व्यवहार में पाया है। • नोट-जिन प्रयोगों में अम्लवेतस व्यवहृत हश्रा है उनमें आजकल प्रायः वैद्य उपयुक नं.१ में वर्णित लकड़ीका ही व्यवहार करते हैं। क्योंकि बाजारों में अमलबेत के नाम से प्रायः यही प्रोषधि उपलब्ध होता है। यह शास्त्रोक्र अम्लवेतस नहीं, अपितु कोई और ही पदार्थ है। प्रस्तु, उपयुक्र नं. ४ में वर्णित अम्लवेतस (अर्थात् उसका गुष्क फल ) ही औषध कार्य में बाना उचित है।
नव्यमत समालोचना अम्लतस, चांगेगे, अम्ललोणी, लाणो और चुक ये पाँचों अम्ल य हैं। प्रस्तु, प्राचीन अर्वाचीन दोनों प्रकार के लेखकों ने इनका परस्सर एक दूसरे के स्थान में उपयोग कर इन्हें भ्रमकारक बना दिए हैं। प्रायः सभी जगह ऐसा किया गया है। जहाँ श्रमजलोणी का वर्णन पाया है वहीं उसके परियाय स्वरूप “चांगेरी" और "चुक्र" श्रादि संज्ञाएँ भी व्यवार में लाई गई हैं। उसी प्रकार जहाँ अम्लवेतस का वर्णन दिया है वहीं पर शेष तीन संज्ञाएँ भी व्यवहत हुई हैं। इसी प्रकार शेष भी जानना चाहिए। ऐसे अवसर पर उक संज्ञाओंको अपने अपने स्थानों पर मुख्य और शेष को गौण समझना चाहिए।
डॉक्टर उदयचाँद पर्व रॉक्सबर्ग दोनों ही ने अम्ल वेतस का बंगला नाम "चुकापाल" लिखा है। परन्तु ध्यानपूर्वक विचारकरनेसे यह ज्ञात होता है कि उदयचाँद ने अम्लधेतस का उल्लेख ही नहीं किया है। अम्लवेतस के अर्थ में उनका किया हुश्रा चुक्र का प्रयोग गौण है। चुक का मुख्य अर्थ चुकापालङ्क है। यदि उदयौदोक्र संस्कृत नाम चुक्र एवं बंगला नाम चुकापालङ् को ठीक मान लिया जाए तो उसका लेटिन नाम अशुद्ध रह जाता है और यदि लेटिन नाम को शीक रक्खा जाए तो संस्कृत श्रादि नाम अशुद्ध रह जाते हैं। अत: उसको अम्लवेतसही कहना उचित है; किन्तु बंगला नाम थैकख अवश्य लिखना चाहिए।
यूनानी मत से-प्रकृति-सर्द व तर । हानिकर्ता-वायुवक तथा कफकारक । दर्पघ्नकाली मरिच, लवण और अदरक । प्रतिनिधिखट्टा तुरा अावश्यकतानुसार । मात्रा-एक अदद । मुख्य प्रभाव-रक व पैत्तिक ग्याधियों को लाभदायक है।
गुण, कर्म, प्रयोग-(१) प्राय: हगोगों को लाभप्रद है, (२) पित्त का छेदन करता, (३) पाचनकर्ता, (४) भामाशय को मृदु. करता, (५) शुद्धोधकर्ता, (६)रकोष्मा को
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