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अफ सन्तीन
अफ सन्तीन
पत्र लगे होते हैं। पत्र-दोनों ओर रेरामवत् । लामों से युक होने के कारण रजत वण' के और लगभग २ इंच दीर्व होते हैं। पुष्प-सूक्ष्म, : पीताभ श्वेत और गुले बाचूना के समान होता है, जिसके मध्य में एक प्रकार का पीलापन होता है। इसमें छोटे छोटे गोल दाने अर्थात् फल लगते हैं जिन के भीतर बारीक वीज भरे होते हैं। इसके अनेक भेद हैं जिनका वर्णन यथा स्थान होगा। गंध तीव एवं अमाल और स्वाद अत्यन्त तिक होता है।
प्रयोगांश-इसके पत्र एवं पुष्पमान शाखाएँ औषध कार्य में पाती है।
रासायनिक संगठन- इसमें १॥ प्रतिशत एक उड़नशील तैल जिसका मान्द्र भाग एक्सिन्योल ( Absinthol ) कहलाता है । इसके अतिरिक्त इसमें एक रबादार ( स्फटिकीय ) सत्व जिसको ऐब्सिन्थीन ( Absinthin ) कहते हैं
और प्रतिशत एक निक राल और ५ प्रतिशत एक हरित राल प्रादि पदार्थ होते हैं।
घुलनशीलता-ऐटिसन्धीन (Absinthin) अत्यन्त कटु, श्वेत वा पीताभ धूसर वर्ण का एक ग्ल्युकोसाइड है जो मद्यसार ( Alcohol) वा सम्मोहनी (Chloroform ) में अत्यन्त विलेय, किंतु ईथर तथा जल में अल्प विलेय होता है। अनसन्तीन के शीत कषाय ( Infusion) को पायीन द्वारा तलस्थायी करने से एसिन्धीन प्राप्त होता है।
संयोग-विरुद्ध (Incompatibles)श्रायन सल्फास (हीरा कसौस), जिंक सल्फास ( तूतिया श्वेत ), प्लम्बाई एमीटास और अर्जेएटाई नाइट्रास !
औषध-निर्माण-~-पौधा, ५० से ६० ग्रेन ।। ___ शोतकषाय-(१० में १), मात्रा- से प्राउंम। तरल सत्व-५ से ६० वुद तक । ( पूर्ण वयस्क मात्रा)।टिंक्च र-(८ में 1), मात्रा से १ डाम तक | तैल-मात्रा, से
सुगंधित मद्य-(एक फरासीसी मद्य जिसको वाहनम ऐरोमैटिकम् एलिसन्धियम् कहते हैं । इसमें माओरम् अञ्जलिका, निस प्रभृति सम्मिलित होते है)। यह मस्तिष्कोत्तेजक है इसके अधिक सेवन से ऐसिनियम (Alhsin thism) अर्थात् अफसगीन द्वारा विकाक्रता उत्पन्न हो जाया करती है जिसके लक्षण निम्न हैं
रोगी को कनिन गरमी मालम होती है हृदय धड़कता है नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है और श्वास जल्द पाता है इत्यादि।
नोट-यूनानी चिकित्सा में यह तैल, गाय, शर्यत, श्रनुलेपन, अर्क, टिकिया, काथ, तथा मजून प्रभृति मिश्रण रूपों में व्यवहृत होता है। अफ सन्तीन के एलोपैथिक (डॉक्टरी) चिकित्सा में व्यवस्न होने वाले मिश्रण---- (डॉक्टरी में ये मिश्रण नॉट ऑफिशल हैं) (१) पल्विस एकिमन्धियाई, मात्रा-२० ३० ग्रेन । (२) एका " " 1 से 5 श्रोस । (३) एक्सट्रैक्टम् " " ५ से १५ ग्रेन। (४) एक्सट्रैक्टम् एसिन्धियाई लिक्विडम्,
मात्रा-१५ से ४५ बुद। (५) इन्फ्युजन एडिसन्थियाई " १ मे २ श्रौंस । (६) श्रॉलियम् " " से ५ बुद। (७) टिक पूरा " "1 से २ डाम । (८) ' कम्पॉलिटा " १ मे ४ ड्राम ।
नोट-यद्यपि युरोप के कतिपय प्रदेशों में इस ओषधि के उपयुक मिश्रण प्रयोग में लाए जाते हैं, तथापि अधिकतर इसका टिंक्चर ही व्यवहार में प्राता है। यह एक भाग वर्मवुड (असम्तीन) और १० भाग मद्यसार (६००१) से निर्मित किया जाता है।
अफ सन्तोन के प्रभाव तथा उपयोग । आयुर्वेद की दृष्टि से
यद्यपि असन्तीन और इसको कतिपय जातियाँ भारतवर्ष में उत्पन्न होती हैं और उनका वर्णन भी श्रायुर्वेदीय ग्रंथों में पाया है; तथापि अफ सन्तीन का वर्णन किसी भी श्रायु. बेदीय ग्रंथ में नहीं मिलता। इसकी अन्य
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