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अमोनियाई कार्य नास
समान ही इसके प्रभाव होते हैं, तथापि प्रमोनिया कार्बोनेट का बाहेर प्रयोग नहीं होता । परावर्तित क्रिया के लिए स्पिरिटस अमोनिया ऐरोमैटिक घाई जाती हैं
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( श्रान्तरिक ) श्रमोनियम कार्बोनेट में वे सभी प्रभाव वर्तमान होते हैं जो लाइकर प्रमो निया में हैं। इसके अतिरिक्त यह सराक सोतेज्य कफनिस्सारक ( लगभग ग्रेन की मात्रा में भली प्रकार जल मिश्रित कर देने से ) है । । श्रतएव कास, प्रातिश्यायिक फुफुसौप में यह एक अत्युत्तम औषध हैं । अमोनियम कार्बोनेट ३० ग्रेन की मात्रा में वामक है, किन्तु इस प्रयोजन हेतु कचित ही उपयोगमें भ्राता हूँ । अधिक मात्रा, उदाहरणतः २० से ३० प्रेन में देने से यह रेचक प्रभाव करता | है अर्थात् इससे त्रिरेक धाने लग जाते हैं कभी कभी छोटी मात्रा में अधिक समय तक निरार देते रहने से भी यह यन्त्र में तोभ उत्पन्न करता है । श्रस्तु, ऐसे कास रोगीको जिसको विरेक भी आते हैं, अमोनियम कार्बोनेट नहीं । देना चाहिए |
कार्बोनेट श्रॉफ अमोनिया स्वतंत्र गैसों ( वायव्य) की तरह प्रभाव करता । लगभग म प्रेन की मात्रा में भली प्रकार जल मिश्रित कर देने से यह सागिक व्यासांतेजक हैं और समग्र ज्वरजन्य कायशैथिल्य की दशाओं में इसका प्रत्युत्तम प्रभाव होता है । मसूरिका ( मीजिल्स) और रक्रज्वर ( स्कारलेटिना ) में इसका प्रयोग करने से कभी कभी अत्यन्त संतोषदायक परिणाम निष्पन्न हुए हैं। इससे तापक्रम भी कम हो जाता है । स्थानिक उपयोग से जिस प्रकार ततैया के दंश और कीट इष्ट में यह विषघ्न प्रभाव करता है । सम्भवतः उक्र दशा श्रों में यह दूषित विषों को नष्ट कर अपना प्रभाव करता है। अमोनिएकल ब्रेथ सहित टाइफॉइड ( श्रांग्रसन्निपात ज्वर ) की दशा में यह निष्प्रयोजनीय है । सर्प इष्ट में इसके अन्तःक्षेप की उपयोगिता सन्दिग्ध है । ( हि० मे० मे० ) ।
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अमोनियाई कार्य नास
लाइकर अमोनियाई एसिटेटस और लाइकर प्रमोनियाई साइट्रेटिस दोनों स्वेदक हैं (बालकों ज्वर की सम्पूर्ण दशाओं में यह विशेष कर लाभप्रद है ) । सम्भवतः स्वेदोत्पादक अंथियों की सेलों पर अथवा उन मंथियों में अंत होने वाले वाततन्तुओं पर उनका प्रभाव पड़ने से स्वेद श्राता है । परन्तु ज्ञात होता है कि लाइकर अमोनिया एसिटेटस का अधिक शक्तिशाली प्रभाव होता है । यदि रागी को शांतल स्थान में रखा जाए अर्थात् उसके शरीर को शीतल रखा जाए तो फिर वृक्क पर एकत्र हो कर ( संगठित रूप से ) उनका प्रभाव होता है, जिससे अधिक सूत्र ने लगता है । अस्तु, प्रागुक प्रभावों के अनुसार उनको उरों में ऐसे अल्पस्वेदक रूप से, जिनसे निर्बलता न हो, प्रयोग करते हैं। अधिक मद्यपान जनित प्रभावों की व्यर्थ करने के लिए भी उनको बर्तते हैं। अस्तु, सुरा की शीशी ( wine glassful ) की मात्रा में सेवन करने से मदात्यय के प्रभाव को नष्ट करने में यह ( एसिटेट ऑफ़ अमोनिया सोल्युशन ) विलक्षण प्रभाव करता हैं अथवा आरम्भ में काबोनेट की एक चाय की चम्मच भर एक शीशी सिरके में मिलाकर देने से भो वैसा ही प्रभाव होता है । यह यूरिया की शकल में मूत्र द्वारा, बिना उसके सारत्व को बढ़ाए, उत्सर्जित होता है ।
अमोनिया के प्रयोग की सर्वोत्तम विधि, उसको ऐरोमैटिक स्पिरिट ऑफ अमोनिया और लाइकर अमोनी की शकल विशेषतः प्रथम रूप में देना है । उनमें सदा स्वतंत्रतापूर्वक जलमिश्रित करलें । कुश्ना के विचारानुसार इन योगों का आमाशय के धरातल पर उत्तेजक प्रभाव होकर परावर्तित रूप से हृदय पर प्रभाव होता है ।
नोट - कार्बोनेट श्रॉफ़ अमोनिया को दुग्ध, शर्बत (प्रपानक) या पानी में भली प्रकार विलीन करके बर्तना चाहिए ।
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