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अम्बर
आयुर्वेदीय मन से स्वर के गुणधर्म तथा उपयोग-
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रासायनिक संगठनइसमें स्क्रीन ( anbrein ) =1/0 प्रतिशत और किञ्चित् भस्म प्रभृति पदार्थ होते I औषध निर्माण - अर्क अभ्वर, अर्क गज़र, अर्क बहार, चर्क हराभरा, चक्रपाजिस, खमीरह गावृजुबाँ अम्बरी ( जवाहर वाला वा जदीद), जवारिश ज़रऊनी अम्बरी बनुस्खा कला, जवाहर मुहरा अम्बरी, अजून कलाँ, मनजून नुक्करा, मअजून फ़लकसेर, मअजून हम्ल अम्बरी उत्त्रखा, मुफ़र्रिह अम्मरी, रोशन अम्बर हुन् अम्बर, हबे की मियाये इधत हध्ये ताऊन अम्बरी ।
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प्रमिजार त्रिदोषघ्न, धनुर्वात.दि वातरोगनाशक और पारद का बल उठाने वाला, दीपन एवं जारणकर्म कारक हैं । यथा-श्रग्निजारस्त्रिदीपनो धनुर्वातादि वातनुत् ! वर्धनां रसवीर्यम्य दीपनो जारणस्तथा ॥ ( ० र०स० ३ श्र० । ) नोट शेष गुणधर्म के लिए देखो - अग्नि
जार ।
यह पक्षाघात, कम्पवात श्रादि वातरोगनाशक, हृदय रोग, नपुन्सकता, फुप्फुस रोग, शिरोरोग, यकृतरोग, उदररोग, प्लीहरोग, वृक्कीय आदि अनेक रोगनाशक माना गया है। कामाग्निबद्धक जितना इसे बताया गया है उतना अन्य किसी औषध को नहीं । प्रायः ऐसी कोई व्याधि नहीं, जिसके लिए आयुर्वेद शास्त्र में यह न कहा गया हो कि अम्बर से उत्तम अन्य औषध नहीं है ।
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यूनानी एवं नव्यमतानुसार - प्रकृति - प्रथम कक्षा में उष्ण व रूत है। किसी किसी के मत से २ कक्षा में उप्ण व १ कक्षा में रूक्ष अथवा १ कक्षा में उष्ण और २कक्षा में रूक्ष है । स्वाद - किंचित् कटु | गंधअत्यंत सुगंधिमय | हानिकर्त्ता श्रतों को और उदद्दजनक (पित्ती उछाल देता है ) । दर्पन -
अम्बर
धनिया, समग्र ग्ररबी, तबाशीर और सूँघने में कर्पूर! कपूर की तेजी को कम करता है । इसलिए उसे इसके साथ न रखना चाहिए । प्रतिनिधि - कस्तूरी तथा केशर समभाग ।
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मात्रा - २ रत्ती से ४ रती तक ( ५ से १५ ग्रेन) इं० मं० मे० ।
आयुर्वेद में इसकी मात्रा १ रती से ३ रत्ती तक बताई गई है | नोट- याज कल के मनुष्यों की प्रकृति का विचार करते हुए उपर्युके ये सभी मात्राएँ बहुत अधिक प्रतीत होती हैं
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प्रधान गुण-रूह शक्ति तथा वाह्य व अंत:करण को बलप्रदायक, उत्तेजक तथा आक्षेपहर है। गुण, कर्म, प्रयोग---
यह हृदय को शक्ति प्रदान करता है तथा ज्ञानेन्द्रिय (पञ्च ज्ञानेन्द्रिय) तथा पञ्चकर्मेन्द्रिय व मस्तिष्क को लाभ पहुँचाता है। क्योंकि इसमें हृदय हृदय को बल प्रदान करने का असीम गुण है । इस बात में इसकी सहायक होती हैं । इसके सिवा इसमें द्रवीकरण पिछल ता ( ल्हेम ) और मतानत पाई जाती हैं । प्रस्तु अंबर अपने इन गुणों के समवाय के कारण सम्पूर्ण पर्वाह के जौहर को शक्ति देना और उनको बढ़ाता । ( नफो० )
अम्बर रूहों का रक्षक और हैवानी (प्राणि ), नमानी (मानसिक) और शारीरिक ( तब्ई . ) तीनों शक्तियों को बल प्रदान करता है । चित्तको प्रसन्न करता, शीतल प्रकृतियों के लिए अत्यंत हृद्य और वास्तविक उष्मा तथा वाह्य व अन्तरेद्वियां को शक्ति देता है । वृद्ध पुरुष के लिए श्रत्युपयोगी, मास्तिष्क, हार्दिक और यकृत् रोग कोयन्त लाभदायक है। मूर्च्छा व वरा (महा मारी) को दूर करता है | रोधोद्घाटक और कोमोहीक है । शिश्न पर इसका प्रलेप करने से कामोड़ीपन करता और श्रानन्द प्रदान करता है ।
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प्रायः विषोंका प्रगद और शीत रोगोंको लाभदायक है। पक्षाघात, श्रद्धांगवात, कम्पवात, धनु