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अमरीका के दक्षिण में प्रायः मिलती है ।हिन्दमहासागर यहाँ तक कि बंगाल की खाड़ी में भी यह मिलती है किन्तु अत्यन्त छोटी होती है। श्राम्बर लालसागर, ब्रजिल और अफरीका के समुद्र तट पर तैरता हुश्रा पाया जाता है, केबल . एक मछली के उदर से ७५० पौं० तक अम्बर पाया जा चुका है। ह्वल का शिकार भी इसके लिए होता है। इसका व्यवहार औषधियों में होने के कारण यह नीकोबार ( कालेपानी का एक : द्वीप) तथा भारत समुद्र के और और टापुत्रों से श्राता है। प्राचीन काल में अरब, यूनानी लोग इसे भारतवर्ष से ले जाते थे। जहागीर ने इससे राजसिंहासन का सुगंधित किया जाना लिखा है!
लक्षण--यह अपारदर्शक कभी कभी श्वेत प्रायः श्यामाभायुक धूसर था गुलाबी या श्याम । वर्ण का होता है।
नोट : (१) साफ पीताभ अम्बर को अंबर अरहब कहते हैं । यह सर्वोत्कृष्ट श्रेष्ठतर अम्बर होता है। इससे निम्न कोटि का अम्बर अगरक (मिस्तकी ) और इसके बाद श्याम है | जो अम्बर श्वेताभ होता है उसपर छोटे छोटे श्वेत बिन्दु होते है। यह अम्बर खश्वाशी कहलाता है और जो अम्बर गोल टुकड़ों की शकल में होता है उसका नाम अम्बर. शमामह । रखते हैं।
(२) जो अम्बर समुद्र के तरंगों द्वारा समुद्र । तट पर आ पड़ता है और उसमें धूल आदि के कण मिल जाते हैं उसको तिब्र में अम्बर रमली कहते हैं । उसको बिना शोधन किए व्यवहार न करना चाहिए । मोमबत् उसकी शुद्धि करनी चाहिए । अथवा उसमें समान भाग मिश्री मिलाकर खरल कर लेने से उसकी शुद्धि होती है।
परन्तु रसरतसमुश्चयकार अग्निजार की शुद्धि न करने में निम्न कारण बतलाते हैं"तदब्धिसार संशुद्ध तस्माच्छुद्धिं न हीप्यते।" (र०र० स०३ अ०) अर्थात-समुद्र के द्वारमय जलसे शुद्ध ही रहता | है। अतः इसके शोधन की आवश्यकता नहीं। ।
गंध-कस्तूरीवत् विशेष सुगंधि । इसमें से मीठी मिट्टी जैसी गंध पाती है जो अत्यन्त मनमोहक होती है। सर्व प्रथम जब स्पर्महल से यह बाहर आता है, तब भूरे रंग का नर्म और दुर्गन्धयुक्र होता है, पर शीघ्र ही वायु लगने पर यह कठिन और नील वर्ण का हो जाता है। ज्यों ज्यों सूखता जाता है त्यो त्यों उत्तम गंध उत्पन्न होती जाती है। और धीरे धीरे यह गंध इतनी बढ़ जाती है, कि दूर से ही अम्बर का बोध करा देती है।
स्वाद --यह लगभग स्वादरहित होता है।
परीक्षा--(१) इसको एक शीशी में डालकर कोयले की पाग पर रखें। यदि यह सब पिघल जाए और शीशी में तैल की भाँति बहने लगे तो शुद्ध अन्यथा अशुद्ध, जानना चाहिए ।
(२) अम्बर को लेकर जरा सा भाग में डालें यदि धूम्र सुगन्धियुक्त हो तो उत्तम अन्यथा नकली समझना चाहिए ।
(३) जरा सा अम्बर लेकर चबाएँ यदि मुख सुगंध से पूर्ण हो जाए और चबाते समय वह दांतों में मोम सा लगे तो उत्तम अन्यथा नकली हैं।
(४) तोड़ने से यदि अम्बर ठोस हो तो उत्तम और पोला हो तो नकली है।
(५) यह लघु और कम चिकना होता है और इसकी गंध कस्तूरी की गंध पर ग़ालिब नहीं होती। यह बहुत शीघ्र जलने वाला होता है तथा याच दिखाते रहने से बिलकुल भाप होकर उड़ जाता है। ___ यह उष्ण जल में द्रवीभूत हो जाता है, परन्तु शीतल जल में नहीं होता । यह ईथर, वसा, उड़नशील ( अस्थिर ) तेल और उष्ण मद्यसार में विलेय होता है। इसपर अम्लों का कुछ भी प्रभाव नहीं होता । सूखने पर अम्बर का विशिष्ट गुरुत्व .७८० से १६२६ तक होता है। १४५° फारनहाइट की उत्ताप पर यह पिघल कर पीले रंग के वसामय तरल में परिणत हो जाता है। २१२° फारनहाइट पर श्वेत बाष्प बनकर यह जल जात
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