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अभ्यंजनीय
अभ्युदय
तेल लगाना | भा०। (४) दोषयुक्त व्रण के | अभ्य वकर्षणम् abhyaya-karshanam दोषशमनार्थ तथा उनको कोमल करने के लिए -सं० क्ली० शल्य आदि उत्पाटन | शल्य उपाय विशेष । सु० चि०१०।
प्रादि का उखारना ( निकालना )। अम०। अभ्यंजनीय abhyanjaniya-हिं० वि० अभ्यबहरणम् abhyaya-haranam सं. [सं०](१) पोतने योग्य, लगाने योग्य
क्ली० भोजन ( Pating, Food.) (२) तेल या उबटन लगाने योग्य ।
अभ्यवहारः abhyavahārth-सं पु० श्राहार अभ्यञ्जनम् abhyanjanam--सं० क्ली०, तेल ( Food.) रत्ना० ।
(Oil)। हे० च । तैल मर्दन, तैल लेपन, अभ्यक्ष abhyaksha सं० तिल को खली। उबटन, रा०नि० ब०१५।
' अभ्यान्तः abhyāntah-सं० त्रि० रोगी, प्रातुर अभ्यन्तः abhyan tah -सं० त्रि. अातुर रोगी (Diseased.)। श्रम ।
( Diseased affected, with sick- | अभ्याहारः abhyāhārah-सं० पु. भक्षण, Dess) अमः।
भोजन, प्राहार । ईटिंग ( Lating.)। यह अभ्यन्तर abhyantara-हिं० संज्ञा पु० [सं०]
धव्यं ( चर्वण योग्य), चोप्य (चूसने या चोपण (१) मध्यम बीच । (Inner, Internal)
योग्य ), पेय (पान योग्य ) और लेख (चाटने (२)हृदय ( Heart)। कि० वि० भीतर।
योग्य ) भेद से चार प्रकार का होता है । (१) अन्दर ।
च्युएबल (Chevable,) मैस्टिकेटिस अभ्यन्तरवर्ती bhyantar vaut'tti--सं-स्त्री.
(Masticatible )i(z) Capable मध्यवासी।
of being suckel. (३) To be अभ्यन्तरायामः abhyantarayamah--सं०
licked. (४) Drinka ble. | सु०। पुं० उक्र नाम का धनुस्तम्भ रोग विशेष, अन्त. अभ्यु abhyu-सं० पु० मुनका बीज (Seeds रायाम । यह एक प्रकार की वात व्याधि है of alled grapes. ) जिसमें बलवान वायु कुपित होकर अँगुली, वक्ष, अभ्युदय abhyudaya-हिं० संज्ञा पुं॰ [अं॰] हृदय और गलदेश आदि में प्राप्त होकर वाय। [वि. अभ्युदित, प्राभ्युदायिक ] (1) प्रादुसमूह को खींचकर मनुष्य को क्रोडवत (वड ) र्भाव, उत्पत्ति । झुका हुअा कर देता है, जिससे नेत्र स्तब्ध हो अभ्युदित abhyuttita-हिं० वि० [सं० ] जाते हैं और डा बैल जाती हैं । लक्षण- (१) उगा हुआ । निकला हुआ। उत्पन्न । अंगुली, गुल्फ (पांच की गांड), पेट, हृदय, प्रादुभूत । (२) दिन चढ़े तक सोने वाला। वनः स्थल और गल में रहने वाली वायु धेगवान : अभ्युषः aabhyush-सं० पु० रोटी (Bread.) होकर नसों के समूह को सुखाकर बाहर निकाल ! श्रा० सं० इ० डि० । .दे और जब उस मनुष्य के नेत्र स्थिर हो जावें, । अभ्युक्षण abhyukshan . हि. संज्ञा पु. ठोड़ी जकड़ जाय, पसलियों में पीड़ा हो मुख से सं०] [वि० अभ्युक्षित, अभ्युक्षय ] सेचन । कक गिरने लगे और मनुष्य प्रागे की और को , छिड़काव । सिंचन । भुक जाय तो वह बलवान वायु अन्तरायाम को : अभ्युक्षित a bhukshita-हिं० वि० [सं०] उत्पन्न करता है अर्थात् तब उसे "अन्तरायाम (१) छिड़का हुअा। अभिसिंचित । (२ घात व्याधि" के नाम से पुकारते हैं। मा०नि० जिस पर छिड़का गया हो। जिसका अभिसिंचन वा०व्यां। देखो
हुश्रा हो। अभ्यमितः abhyamitab-सं० त्रि० श्रातुर, । अभ्युदय abhyukshya-हिं० वि० [सं०] रोगी ( Diseased.)। अम० ।
छिड़कने योग्य ।
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