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अमृतप्राश्यावलेहः
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अमृतमलातकम्
समभाग निचोड़ कर गोघृत में मिलाएँ, पुनः खासी, वमन, हिचकी, मूत्रकृच्छ, तथा ज्वर का जीवनीय गणकी समस्त औषधियाँ एक एक तो०, नाश होता है। दाख, चन्दन, लाल चन्दन, खस, मिश्री, कमल,
अमृतफल amritaphal-कुमा० शर्बती नीबू पन्न काष्ठ, महुए के फूल, सारिवॉ, कुम्भेरके फल,
(sweet lime ) 1 सुगंधरोहिष तृण -१ तो० ले, इनका कल्क बनाकर ।
अमृतफन्नम् amrita phalam-सं• क्ली। घी में पकाएँ । जब पक कर शीतल हो। ममतफल amrita phala-हिं० संज्ञा पु.॥ जाए, तो इसमें शहद ३२ तो०, मिश्री २०० तो० ।
(१) नासपाती-हिं० । नाक-40 Pyrus दालचीनी का चूर्ण २ सो० इलायची चूण २
cominunis ( The pear tree ) 1 सो०, कमल केशर चूर्ण २ तो० ले मिला,
मद० व०६ भा०1 (२) अमरूद (Guava) । इस तरह यह अवलेह सिद्ध होता है।
-पु. (३) पारद (Mercury)। (४) जितेन्द्रिय होकर इसे नित्य सेवन करें। और
पटोल, परवल ( Sespadula Tricho. इस पर दूध या मांस रस के साथ भोजन करें तो san thes cucumerina)। (५) उरः शत, रक्रपित्त, तृषा, अरुचि, श्वास, खांसी,
वृद्धि नामक औषध ( See viddhi) घमन, मूर्छा, मूत्रकृच्छ,, और ज्वर का नाश
रा०नि०व०३१(६) धात्री वृक्ष, प्रामला होता है। स्त्रियों में प्रीति उत्पन्न होती तथा |
( Phyllanthus emblica) मद० । बल की वृद्धि होती है।
अमृतफला amrita-phalā-सं. खी०, हि. भा० प्र० क्षय रो० चि.! संज्ञा स्त्री० (१)अंगूर, द्राक्षा, दाख । किस
मिस-हिं| RaisinI (२) श्रामल की। (२)दूध में अथवा प्रामला, विदारीकन्द, प्रामला । ( Phyllan thus emblica.) ईख, तथा दूध वाले वृक्षों के समान भाग रस रा.नि.व. ११। (३) लघु खजूरी वृक्ष, में ६४ तो० गोघृत को पकाएँ, पुनः इसमें छोटा खजूर वृक्ष ( Small date palm मुलहटी, ईख, दास्थ, सुफेदचन्दन, लाल चन्दन, । tree)। (४) श्वेत द्राक्षा-हिं० । उत्तरा, खस, मिश्री, कमल, पद्मकाष्ट, महुए का फूल, उत्तरी-को। (५) मुनका। गुरुच, कम्भारी, रोहिष तृण, इनका कल्क
अमृतबन्धुः amrita-bandhuh-सं० पु. मिला सिद्ध करें, पुनः शीतल होने पर इसमें
(1) अश्व, घोड़ा (A horse) वैनिघ। ३२ तो. शहद, २०० तो० मिश्री, दालचीनी, ।
। (२) चन्द्रमा । और इलायची डाल सेवन करें।
अमृतवान amrita-bāna-हिं० संत्रा पु. अमृत प्राश्यावलेहः amrita-prashyavalehi [सं० अमृद्वान् ] अमृतदान । रोग़नी हाँदी -सं० पु. दूध, अामले का रस, बिदारीकन्द !
मिट्टी का रोग़नी पाय । लाह रोशन किया हुश्रा का रस, गन्ने का रस, पञ्च क्षीरी वृक्षों का रस, ! मिट्टी का बरतन जिसमें प्रचार, मुरब्बा, धी श्रादि
और घी प्रत्येक १ प्रस्थ मिलाकर पकाएँ, फिर रखते हैं। इसमें मधुरादि गण, दाख, दोनों' चन्दन, खस, अमृत भल्लातकम् amrita-bhallatakam चीनी, निलोफर, पद्माव, महुए का फूल, अनन्त -सं०क्ली० पवन से टूटे तथा नकुओं से रहित पके मूल, खम्भारी, कतृण का कल्क १-१ कर्ष डाल हुए भिलावें २५६ तो० इंट के चूर्ण' से घिसकर कर अवलेह बनाएँ, शीतल होने पर अर्ध प्रस्थ पानी से प्रक्षालन कर हवा में रख शुष्क कर दो दो मधु, १ तुला चीनी और दारचीनी, इलायची, दल करके १०२४ तो० जल में उबालें जब पाकेशर प्रत्येक प्राधा प्राधा पल डाल कर चौथाई शेष रहे तो वस्त्र से छानकर ठण्डाकर ले। भली प्रकार मिला। यथोचित सेवन करने से पुनः २५६ तो० दुग्ध में पकाएँ जब चौधाई शेष रक्त पित्त, क्षत, क्षय, तृष्णा, अरुचि, श्वास, रह जाए तब बराबर भाग गोघृत मिलाकर पुनः
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