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आमूल
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अमृतकल्प-वटी
(१) मूर्तिहीन, प्राकृति रहित (Formless.)/ (Simple poison )। (६) दुग्ध निराकार । (२) अप्रत्यद । श्रगोचर ।
(Milk)। रा०नि० व० १५ । (१०) अनूल amāla -हिं० वि० [सं०] प्रश्न । ( Corn) हे. च०। (११) औषध प्रमूलक mulaka मूल रहित, निमूल, ! (Aledicine ) 1 रा०नि० २०२०।
जड़शून्य । ( Destitute of a root or (१२) शृगी विष, सींगिया, बच्छनाग (Ac. origin.)
onite)। (१३) स्वण,सोना । ( Gold ) अमूलक amulak-हिं०वि० मूलशून्य, निमूल, (१४) भक्ष्य द्रव्य ( Edible thing)। अप्रामाणिक।
हे च० । (१५) यज्ञ के पीछे की बची हुई अमूला amuli-सं० स्त्री. (१) अग्निशिखा
सामग्री । (१६) धन | (१७) हृद्य पदार्थ । वृक्ष, लागली। ईपलांगुलिया-40 ! वै०निघ० ।
() सुस्वादु द्रव्य । मीठी वा मधुर (२) अर्कपत्रा । के।
वस्तु। अनूस amusa-अजवाइन, नामबाह । (Ligu- !
अमृत कन्दा amrita-kanda-सं० स्त्री० कन्द sticum A jowan). . हैं गा०। ।
गुडची-हिं० । कन्दगुलवेल-मह । वै० निघ।
See-kanda-guduchi. अमृणालम् amrinal am-सं० क्लो० (१)
अमृतकर amritas-kar-हिं० संज्ञा पुसिं०] श्रमणाल, लामजक, श्वेत उशीर । ( Andro
चन्द्रमा, शशि, जिसकी किरणों में अमृत रहता है। pogon laniger) रा. नि. ३० १२;
निशाकर । ( The moon) भा०पू०१ भा० क०व०; मद० व०३ ।
अमृत कला निधि amritakalanidhi-सं. (२) उशीर, खस-हिं! वेणार मूल-बं० । ( Andropogon muricatus ) rat,
पु० वच्छनाग २ मा०, कौड़ी भस्म ५ मा०, रा०नि० २० १२ । च. ६० अर्श चि.
कालीमिर्च १ मा०, बारीक चूर्णकर जल से मूंग प्राणदागुड़िका।
प्रमाण गोलियाँ बनाएँ। गुण-ज्वर, पित्त और
कफज अग्निमांग को नष्ट करता है। वृ• नि० अमृत: amritah स
र. ज्वरे। अमृत umrita-हि. संक्षा पु. (१) पारद,
पारा ( Mercury)। ग०नि०५० १३|| अमृतकल्प भल्लातकः amrita-kalpa-bha(२) वन मुद्ग, बन मूंग ( Phaseolus
latakah-सं० पु. पका हुश्रा भिलावाँ trilobus)। रा०नि० व० १६ । देखो-मकु
तीक्ष्ण वीर्य तथा अग्निके तुल्य होता है, इसका ष्टकः। अनि २ स्थान २०। (३) धन्वन्तरि
विधि पूर्वक सेवन करना अमृत कल्प होता है। "ना धन्धन्तरिदेवयोः" । मे तत्रिकं । (४),
वा० उ० अ०३६। बाराहीकंद (Tacca aspera)| रा. अमृत-कल्प रसः umrita-kalpa-rasah नि. व. ७ ! -श्री० (५) वह वस्तु जिसके
-सं० पु. अजीणोधिकारोश रस । शुद्ध पारद पीने से मनुष्य अमर हो जाता है। पीयूष, सुधा,
तथा गंधक के समान भाग को कजली करें पुनः निर्जर, समुद्रोरपत्र १४ द्रष्यों में से एक द्रव्य
उक्र कजली का अधं शुद्ध विष (वसनाम) विशेष । ( Ambrosia, nectar)। (६)| तथा !तना ही सुहागा (लावा किया हुआ) सलिल, जल, ( Water )। रा०नि० लेकर इसे यत्नपूर्वक तीन दिन तक भृगराज स्वव०१४।(७) पूत, बी (Ghee)। मे रस की भावना दें। मात्रा-मुद्र प्रमाण । रा०नि० २०१५, वै० निघ० वा० न्या० अमृत कल्प वटो amrita-kalpa-vati-सं० भुजङ्गी गुटी। "अमृत यज्ञशेष स्यात पीयूषे । स्त्री० पारा, गन्धक समान भाग लेकर कजली सलिल घृते"। मे। (८) सामान्य विप करें, फिर विष और सोहागा प्रत्येक पारे के बरा.
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