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अप्रत्यक्ष
अप्रत्यक्ष apratyaksha - हिं०वि० [सं०] (1) लक्षित, ग्रग्ट, जो देखा न जाए। ( Invis ible, Absent ) । ( २ ) छिपा । गुप्त । प्रति साराख्य श्रञ्जनम् apratisarakhya / anjanam-सं० क्लो० कालीमिर्च १० प्रदद स्वर्णमाक्षिक आधा पिचु, नीलाथोथा श्राधा पल, मुलहठी एक पिचु इन सत्रको दूध में भिगोकर अग्नि में भस्म करलें । गुण - यह तिमिर रोग की परमोसम श्रौषध है। वा० उ० श्र० १३ । अप्रधान apradhána-० वि० [सं०] (1) कनिछ, क्षुद्र, मुख्यनहीं, जघन्य ( Subordinate, secondary )। ( २ ) जो प्रधान वा मुख्य न हो । गौण । साधारण । सामान्य | अभा aprabha - हिं० स्त्री० प्रभाहीन, प्रकाश शून्य । ( Want of splendour ). श्रप्रमेय aprameya - हिं० वि० [सं०] जो नापा न जा सके | अपरिमित । अपार । अनंत | अप्रयुक्त aprayukta - हिं० वि० [सं० ] जिसका प्रयोग न हुआ हो । जो काम में न लाया गया हो । अव्यवहृत । अवरोहता aprarohata-fo अन्न aprasanna-हिं० वि० असंतुष्ट, दुखित, नाराज, श्रनच्छ, मैला । ( Displeased).
१ श्र० ।
3967: aprahatah-to fo अपहृत aprahata - हिं०वि०
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aprasava-dharmmi - सं० त्रि प्रसव धर्मवाला पुरुष, क्योंकि आत्मा में से कुछ उत्पन्न नहीं होता इससे यह प्रसवधर्मी नहीं है। श्रवीजधर्म्मा । मध्यस्थधर्मी । सु० शा०
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अप्रेतराक्षसी
अप्राकृतिक संयोग aprakritika.sanyoga ०पु० स्वाभाविक मैथुन, गुद मैथुन, पशु मैथुन श्रादि ।
श्राजिता aprajita-बं० हिं० श्रपराजिता, विष्णुकान्ता, कवारी ( Clitorea ternate, Liva. ) स० [फा० ई० । अप्राजितार बीज aprájitára-bija-बं० अत्राजिते के बीज aprajite-ke-binja-fर्ह०पु० अपराजिताका बीज | Clitorer ternatea, Linn. ( Seeds of - ) अ० [फा० ई० । अमाजितारनूल aprajitára-mūla-चं० श्रपराजिता की जड़ | The root of Clitorea_ternatea, Linn.
अगण aprána-सं० त्रि० बिना प्राण निर्जीव । मृत । अथर्व० । सू० ६ ।
का ८ ।
1
का ६ ।
aapraptaka-सं० एक प्रकारका सोना । उत्तम जाति के सुवर्णों में से जो सोना कुछ पीला सा अर्थात् भुरभुरा और सफ़ेद रह गया हो वह अनाशक कहलाता ( याने संशोधन चादि के समय यह ठीक ठीक शुद्ध नहीं होता) है। इसके शोधन की विधि भी कौटिल्य ने दी है। विस्तार भय से उसे यहाँ नहीं दिया गया। कौटि● अर्थ |
प्रिय apriya - (सं०) हि० वि० [सं०] [स्त्री०
प्र ]हित ( Disagreeable, un friondly ) अभ्यारा, घनचाहा । जो प्रिय न हो । प्ररुचिकर 1 जो न रुचे । जो पसंद न हो । श्रनिया apriya-सं० स्त्री० (१) श्री मत्स्य, सिङ्गी मछली ( Singi fish ) । (२) चोदालि मत्स्य ।
(१) माल क्षेत्र, केदार भूमि । मालभूमि-म० ।
(२) जो भूमि जोती न गई हो । खिल ( अपहृत ) | श्रनीति apriti-fo संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) भूमि | रा० नि० ० २ | अप्राकृत_aprákarita - हिं० वि० [सं० ]
जो प्राकृत न हो । अस्वाभाविक । असामान्य ।
अरुचि ( Indifference; dislike ). (२) अप्रेम । ( ३ ) पैर । विरोध । श्रीतिकर apritikar - हिं० पुं० [अरुचिकर । निपुर, फोर 1
असाधारण ।
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अप्राकृतिक aprakritika-हिं० वि० [सं०
अस्वाभाविक, प्रकृति विरुद्ध | (Unnatural). ! अप्रेंतराक्षसी apreta-rakshasoi सं. लो