________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अपामार्ग
૪૦૨
अपामार्ग प्रकार का होता है। ये सब गुण में भी भिन । बबासीर, खुजली, उदररोग, श्राम तथा रक का भिन्न होते है। (रा०नि०)
हरण करने वाला है। "रक्रापामार्ग शीतल, रासायनिक संगठन-बीज में अधिक परि- कटुक, कफ वात नाशक, वामक तथा संग्राही है माण में क्षारीय भस्म होती है जिसमें पोटास
और वण, खुजली और विष को नष्ट करने वाला वर्तमान होता है । ( मेटिरिया मेडिका ऑफ़ ! है। धन्वन्तरीय निघंटु । रा०नि० २०४। इंडिया-श्रार० एन० खोरी, २. ५०४)। सर अर्थात् बिरेचक और तीपण है। घा०
प्रयोगांश-क्षुप (पञ्चांग) अर्थात् शाखा, सू०१५ अ० शिविरेचन । पत्र, मूल, तथा बीज ।
___ "पृश्नि पर्णी स्वपामार्गः ।" च० द० सन्निऔषध-निर्माण-(१) पत्ते का स्वरस,
पात ज्य०चि०। मात्रा-१ तो० । (२) क्वाथ तथा शीत कषाय,
___ अपामार्ग दस्तावर, तीचण, दीपक, कड़वा, मात्रा-1 छ० से २ छ०। (३) मूल, मात्रा
चरपरा, पाचक और रोचक हैं तथा वमन, कफ, ४ मा० से ६ मा० तक । (४) बीज चूर्ण, ।
मेद के रोग, वायु, हृद्रोग, अफरा, बवासीर, मात्रा-४ श्राने से ६ पाने तक ( वजन में)। (५) क्षार । (६) मूल चूर्ण । (७) मूल
खुजली, शूल, उदर रोग और अपची रोग को
मष्ट करता है। रक्तापामार्ग वातकारक, विष्टंभी कल्क । (८) औषधीय तैल । इतिहास-शुक्र यजुगेंद के अनुसार वृत्र
कफबद्धक, शीतल और रूक्ष है। यह पूर्वोक
अपामार्ग की अपेक्षा गुण में न्यून है। अपामार्ग एवं अन्य दैत्यों को मार डालने के बाद नमुचि
के फल (चावल ) खाने से जीर्ण नहीं होते द्वारा पराजित हुश्रा और उसे किसी सान्द्र वा
अर्थात् पचते नहीं हैं, पाक में चरपरे, मधुर व पदार्थ से तथा न दिन में और न रात में ही ! कमी न मारने का वचन देकर उससे संधि कर
विष्टंभी, वातकर्ता, रूग्वे और स्क्रपित्त को दूर करने ली। परन्तु इन्द्र ने कुछ फेन एकत्रित किए जो
वाले हैं । भा० पू० १भा० ।
अपामार्ग अग्नि के समान नीक्षण, अंदन और न द्रव है और न सांद्र और नमुचि को प्रातः सूर्योदय और राधिके मध्यकाल में मार डाला।
परम संसन है । राजवल्लमः । उस दैत्य के सिर से अपामार्ग का सुप उत्पम
अपामार्ग के पत्र रपित्त नाशक हैं। मद० हुश्रा जिसकी सहायता से इन्द्र सम्पूर्ण दैत्यों के
व०१। वध करने में समर्थ हुश्रा । अब यह पौधा अपने
श्वेत अपामार्ग स्वादमें तिक, प्राहक, दस्ताप्रथल जादूमय प्रभाव के लिए प्रसिद्ध है और वर, किंचित् कटु, कांतिकारक, पाचक तथा अग्नि ऐसा माना जाता है कि बिच्छू एवं सर्प को वात.
प्रदीपक है और वमन में एवं मस्य के लिए श्रेष्ठ
है। कफ, कराड । खुजली), उदर रोग और अस्त (स्तब्ध) कर यह उनके विरुद्ध उनसे हमारी रक्षा करता है । नरकचतुर्दशी वा दिवाली
अत्यन्त बुरे प्रकार के रन रोगों, मेद रोगों, उदर के त्यौहार के पहिले दिन की सुबह को अत्यन्त
रोगों तथा वात, सिध्म, अपची, दद्रु, वमन और तड़के स्नान के समय इसको शरीर के चारों ओर
श्राम रोगों को नष्ट करनेवाला है। रक्तापाघुमाते है। अथवेद में भी अपामार्ग का विस्तृत
मार्ग किंचित् चरपरा तथा शीतल है और वर्णन पाया हैं । ( देखो-अथर्व० । सू०१७।
मन्यावष्टंभ ( मन्यास्तम्भ, गर्दन का जकड़ ८ । का० ४।)
जाना ), वमन, वात एवं विष्टंभकारक और अपामार्ग के प्रभाव तथा प्रयोग।
रूम है तथा व्रण, विष, वात, कफ और खुजली आयुर्वेद की दृष्टि से
का नाश करता है। अपामार्ग स्वाद में तिक्र और कटु, उष्ण | अपामार्ग का बीज (चावल ) पाक दुर्जर है वीर्य, कफ नाशक, ग्राही तथा वामक है और अर्थात् यह पचता नहीं है, रस में मधुर, शीतल,
For Private and Personal Use Only