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अपराजिता
अपराजिता
अपराजिता-बं० । माज़ारियूने हिन्दी-अ०। नबात बीख हयात-फा०। फीकी की जड़ का माड़, घुट्टी की जड़ का झाड़, फीकी-दे०, हिं० | काकण-कोडि, कवड़ी, कुरु बिलइ-ता० । मल्लविष्णुक्रांत, विष्णु क्रांत, दिन्टन, नल्लनेल गुम्मिरि, . तेल, मेल, तेल्लविण्टन, नीलदिरटन-ते० । अरल, शङ्ग-पुष्पम्, कारणम्-कोटि, काकबलि-मल । कत्तरोदु-सिं० । गोकर्ण (-} ) काजलि-मह०, । बम्ब० । काठी पाण्टरी-मह० । गरणी-गु०।। कर्णिके, शंखपुष्प, विष्णु -कारिट-सुप्पु, कीर। गुन, गोकण मूल-कमा० । धन्त्र--पं0। बिलीय गिरि कर्णिक, नील गिरि कर्णिके-क०। प्रारल | -माला।
अपराजिताबीज निटोरिया टटिया Clitorea ternatea Linn. (Seeds of.)-ले० । अपराजिता ! के बीज, कवाठी के बीज-हिं० । फीकी की । जड़ के बीज, घुट्टी की जड़ के बीज-द० । अपराजितार बीज-बं० । बज्र ल माजरियूनेहिंदी-अ० तुह्मे बीखेह यात्-फा० । काकण- : कोडि-विरै ता० । दिण्टन-वित्तुलु-ते।
शंगविश, काकरणम्-वित्त, काक-वितर-मल० । कारोदु-बीज-लि।
नाट-अपराजिता शब्द से निवण्टु में अश्वचरक, बला मोटा, विष्णु क्रांता, शुक्लांगी, शेफालिका । या शंखपुप्पी ली जाती है । अश्वनुरकः ।
गिरिकर्णिका, कटमी, श्वेता, श्रादि नाम से कही जाती है।
शेफालिका–गिरिसिन्युक या श्वेत सुरमा : कहाती है । यह विषघ्न है।
शिम्बी या यबूर वर्ग (NO. Leguminosas ) उत्पत्तिस्थान-सम्पूर्ण भारतवर्ष । संशा निर्णय-अरबी सज्ञा माज़रियूने-हिंदी। का अर्थ हिन्दी माज़रियन ( Indian Mezereol) है और यही सज्ञा मदरास में | अपराजिता के लिए व्यवहारमें पाती है, क्योंकि | उन्होंने मान लिया है कि इसकी जड़ में माज. रियून की जड़ के समान प्रभाव है।
दक्खिनी संज्ञाएँ काली-ज़िी वा काली ज़िर्की के बीज तथा सुफेद ज़िर्की व सुफ़ेद जिर्की के बीज कभी कभी अपराजिता श्रीज के लिए कतिपय ग्रन्थों में ही नहीं व्यवहार में लाई गई हैं. प्रत्युत किसी किसी बाजार में भी उनका व्यवहार किया जाता है। परंतु वे संदिग्ध रूपसे कालादाना और उसके लाल भेद की यथार्थ संज्ञाएँ हैं, अतः उन्हें उन्हीं तक सीमित रहने देना चाहिए।
काकवल्ल मलग्रालिम भाषा का शब्द है जिसका अर्थ काकलता होता है और यह इस. लिए है कि इसके पुष्प का रंग काक वर्णवत् होता है। परंतु हॉर्टस मालाबारिकस ( Hortus malabaricus ) तथा अन्य ग्रंथों में यह नाम म्युकुना जायगैटिया (Mucuna gigantea) के लिए प्रयोग में लाया गया है। . तामिल शब्द काकण वा काकटा प्रायः अपराजिता तथा कालादाना दोनों के लिए समान रूप से व्यवहार में पाते हैं, परन्तु यथार्थतः वे अपराजिता के ही नाम हैं। अतः उनको इसी के लिए प्रयोग करना चाहिए, कालेदाने के बीज उस नाम के अंतर्गत पाए हए नामों से सरलतापूर्वक पहचाने जा सकते हैं।
डिमक ( म खंड ४५६ पृ०) महोदय अपराजिता का संस्कृत नाम गोकर्ण लिखते हैं। परन्तु, किसी भी प्रचलित वैद्यक ग्रंथ में इसकी उक संज्ञा का उल्लेख नहीं मिलता। ऐसा प्रतीत होता है कि "गिरिकणिका वा गिरिकी" को भ्रमवश "गांकण" लिख दिया गया है। 'गोकणी' वा 'गोकर्ण' अपराजिता का महाराष्ट्री नाम है।
सकल नव्य लेखकों ने एक स्वर से कालेदाने के बीज को अपराजिता बीज के सर्वथा समान होने का उल्लेख किया है । परन्तु, कालादाने का गात्र एवं वर्ण रुक्ष कृष्ण होता है। इसके विपरीत अपराजिता के बीज का गात्र चिकना एवं कृष्ण वर्ण का होता है।
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