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अपराजिता
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अपराजिता
:: वानस्पतिक-वर्गन ... अपराजिता एक प्रकार | की वृताश्रित बहुयीय लता है । प्रायः शोमार्थ | इसे उद्यानों में लगाते हैं। यह बहुशाखी एवं । शुपमय होती है । मूल किञ्चिद् गूदादार गावदुमी | शाखायुक्त होता है । प्रकाण्ड अनेक दाहिने से । बाएँ को लिपटे हुए छोटे पौधों में मृदुलोमयुक्त । Pubaseent) होते हैं। पत्र छोटे प्रायः गोल वा अंडाकार, विपम पंजाकार.एक सीक की दोनों । पोर जोड़े जो होते हैं। प्रायः कुत्त २-३ किसी किसी में ४ जोड़े होते हैं, किंतु उनके निरंपर अर्थात अग्रभाग पर एक अयुग्म पत्र होता है । पुष्प बड़े, श्वेत वा नीले (या रक), डंठल युक (सन्त) उलटे वैक्टियोलेर होते हैं। पुष्पवृन्त लघु, लगभग चौथाई इञ्च लम्बा, कक्षीय, अकेला एक पुष्पयुक्त होता है। प्रक्टिोलस किञ्चिद् गोल, पुष्प-वाह्य कोष के आधार से संलग्न होते हैं। पुष्प-वाह्य-कोष पुष्पाभ्यन्तर कोष का लम्बा, पंचशिखर युक्र, विषम, स्थाई, बीज कोपाधः होता है। पुष्पाभ्यन्तर-कोष तितलीस्त्ररूप, वृहदोर्ध्व पटल ( Vexillum) बड़ा, सिरा गोलाकार शिखरयुक; वहिः, नीला, (मध्यभाग पोसाभायुक्त स्वेतवर्ण का), पक्ष ( Ale) अंडाकार अत्यन्त पतला और संकुचित डंउलयुक्त, तरणिका (Keel ) कुछ कुछ बूट के प्राकार के दो पतले
सूत्रवत् इंठल से युक्र होते हैं। नरतंतु वा 10. पुव पराग केशर या पराग की तीली (Stamens)५ से १०वा इससे भी अधिक, दो स्थानों में स्थित (Diadelphous) होते है जिनमें एक पृथक रहता है और शेष तन्तुओं द्वारा आपस में मिले रहते एवं बीजकोषाधः होते हैं। परागकोष वा पराग की घुण्डी (An- | thers) बहुत सूक्ष्म, गोलाकार और श्वेत होती | है। नारितंतु वा गर्भकेशर (Style ) | साधारण, परागकेशर की अपेक्षा लंबे, किञ्चित् । वक्र, सिरेपर पशिविस्तृत होते हैं। शिम्बी वा धीमी (Legume)२ से ३ इंच लम्बी और चौथाई इंच चौड़ी, चिपटी, सीधी, कुछ कुछ लोमश, .द्विकपाटीय (दो छिलके युक), एक कोष :युक्त (पर कोप की दीवारों से बहुत परे भागों में |
विभाजित होनी हैं, जिनमें से प्रत्येक में एक एक बीज होता है) और बहुवीजयुक्त होता है।
योज वायताकार इंच लम्बे, चिकने, कृष्ण वा हरिताभायुक्त धूसर वा धूसरवर्ण के होते हैं। यह सदा पुस्पित रहती है।
पुप्पभेद से यह दो प्रकार की होती है--(१) वह जिसमें सफेद फूल लगते हैं श्वेतापराजिता श्वेतगिरिकर्णिका । विष्णुकान्ता। सफ़ेद कोयल और (२) वह जिसमें नीले फूल आते हैं नीलापराजिता, नील गिरिकणिका, कृष्णक्रांता, नीली कोयल आदि नामों से संबोधित की जाती है । ___ नीलापराजिता का एक और उपभेद होता है जिसमें दोहरे फूल लगते हैं।
नोट-इन विभिन्न प्रकार के अपराजिता के बीजों के प्रभावमें कोई प्रकट भेद नहीं और यदि कुछ होता है तो वह इसकी सफेद जातिके बीजमें हो सकता है। किंतु इनमें वह बीज जो दूसरे की अपेक्षा अधिक गोल एवं मोटे होते हैं, प्रभाव में अधिकबलशाली सिद्ध होंगे पुनः चाहे वे किसी जातिके हों।
रासायनिक संगठन-गुलबक्-में रवेत. सार, कपायिन और राल; बीजमें एक स्थिर तैल, एक तिक्र राल ( जो इसका प्रभावात्मक सस्व है। ), कषायाम्ल ( Tannic acid), द्राचौज (एक हलका धूसर वर्ण का राल ) और भस्म (६ प्रतिशत ) प्रभृति होते है। बीज वामस्वक् टूट जाने वाला (भंगुर ) होता है । इसमें एक दौल होता है जो कणदार श्वेतसार से पूर्ण होसा है। प्रयोगांरा-जड़ की छाल, बीज और पन्न। औषध निर्माण-(१) बीज का अमिश्रित
niple Powder of Clitorea Seeds ( Pulvis Clitorece Simplex).
निर्माण-विधि - साधारण तौर पर चूर्ण कर बारीक चलनी या कपड़े से छानकर बोतल में भरकर सुरक्षित रक्खें ।
मात्रा-१ से १॥ ड्राम तक (२.४ पाना)। गुण-इतनी मात्रा से ५ या ६ दस्त खुलकर
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