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अपत्यम्
अपथ्य ज्वरो
स्वनामाख्यात वातव्याधि रोग विशेष एक रोग जो अपत्यपथः apatya-pathath-सं० प. स्त्रियों को गर्भपात तथा पुरुषों को विशेष रुधिर : योनि (Vagina.)। हे० च०।। निकलने वा भारी चोट लगने से हो जाता है। | अपत्यशत्रुः apatya-shatrn}h-सं० १०, इसमें बारबार मूछो पाती है और नेत्र फटते । हिं० शा . जिसका शत्रु अपत्य वा संतान हैं तथा कंठ में कफ एकत्रित होकर घरघराहट | हो । कर्कट. केंकड़ा । ( Crab) श० च)। का शब्द करता है।
नाट-अंडा देने के बाद केकड़ी का पेट फट
जाता है और वह मर जाती है । (२) अपत्य लक्षण-वायु कुपित होकर मनुष्य की दृष्टि- | शनि एवं संज्ञा को नष्ट कर देती, कण में धुरघुर |
का शत्रु । वह जो अपने अंडे बच्चे खाजाए। शब्द करती है और जब वायु हृदय को त्याग देती साँप । है तब सुख होता है और जन्य पकड़ लेती है तब अपत्यसिद्धिकृत् apatyasi.ltdhi-krit-स० फिर बेहोशी हो जाती है । इस दारुण रोग को | go (Putrajiva Roxburghii) अपनानक कहते हैं । मा० नि० वा० व्या०।
। पुत्र जीव वृक्ष । देखो-पुत्रजीवः । वै०
निय। असायना-गर्भ की उत्पत्ति मे एवं रुधिरके बहुत निकलने से उत्पन्न हुआ और
| अपy apatra-हिं० वि० पत्र रहित. बिना पत्तों
का। अभिघात से उत्पन्न हुअा "अपतानक" नहीं | प्रारोग्य होता।
अपत्रवल्लिका apatra-vallika-सं० स्त्री०
महिषयल्ली, सोमलता विशेष। लघु सोमवल्ली चिकित्सा-अपनानक रोगसे पीड़ित मनुष्यों
-म । रा०नि०व०३ । See--Mahisha. के नेत्रों में से यदि पानी बहता हो, कम्प नहीं
valli होता हो और खाटपर न पड़ा हो तो इससे पहले
अपना apatra-सं० स्त्री पुष्प वृत्त विशेष । ही तत्काल चिकित्सा करनी चाहिए। दशमूल
महाराष्ट्र में यह "नेवी" नाम से प्रसिद्ध है। डालकर पकाया हुश्रा पानी अपतामक रोगी के
व०निघ० । लिए हित है। तेल की मालिश, स्वेद और तीक्ष्ण
अपतृपया apatrishna-सं० स्त्री. व्यर्थ नस्य द्वारा स्त्रोतोंके शोधन के पश्चात् घी पिलाना
लालच। हितकारक है। विशेष दखो-यात व्याधि।
अपथम् apatham-सं० ली. अपथ-हि. अपत्यम् apatyain- सं० को०
संज्ञा पु० (१) योनि । ( Vagina) अपत्य apatyat--हिं० संत्रा पु.
श० र० । (२) कुमार्ग, बुरा रास्ता | (A bad सन्तान,पत्र वा कन्या । (Offinying,male road) or female ).
अपथ्यम् apthyu}]]--सं० त्रि० भारत्यकामा apatyakama--हिं० वि० स्त्री० / अपथ्य a.pathya-हि० वि० पुत्र की इच्छा रखने वाली।
जो पथ्य न हो । स्वास्थ्य दाशक । ( Indige. अपत्यजीवः apatya-jivah--सं०
stible, in wholesome ), ( Putranjiva Roxburghii ) ga ___ सं० की०, हिं० संज्ञा पु (1) व्यवहार जीव वृक्ष । जियापुता गाछ :बं०। रा० नि०
जो स्वास्थ्य को हानिकर हो । रोग बढ़ाने वाला व० । देखो--पुत्रजी (ओ) वः।
श्राहार विहार। अपत्यदा a.patyada-सं० स्त्री० पुत्रदालता,
(२) अहितकर वस्तु । रोग बढ़ाने वाला भोजन । लक्ष्मणा । ( sec-putradi) | ग० नि.
कुपथ्य से होने वाला ज्वर । अपथ्य और मच
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