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अतिसार
अतिसार
२५२ प्रयोज्यं नतु संग्राहि पूर्वमामाति सारिणि ।
___ या चि० अ०। क्योंकि पहली दशा में धारक औपच द्वारा ! मलनिरोध करने पर पेट फूलना, ग्रहणो, ' बवासीर और शोथ प्रति उत्पन्न हो सकते हैं। परंतु दस्त होजानेपर भी यदि दोपोंकी प्रबलता रहे वा रोगी शिशु, वृद्ध अथवा दुर्बल हो तो पहिले ।। ही से धारक औषध का प्रयोग करना चाहिए ।
यदि रोगी शूल यामाह और प्रसेक से पीड़ित . हो तो उसे दमन कराना हित है। और यदि बोप । अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त होगए हों तथा विदग्ध अर्थात् पक्कापक याहारने मिलकर अतिसार उत्पन्न करते हो तो उसस्य उत्तशजनक अर्थात् अतिसार को उत्पन्न करने में समुद्यत और बिना यत्न ही चलने में प्रवृत्त हुए दोयों में पाचनादि किसी श्रीपध का प्रयोग न करके केवल ५ध्य अर्थात् हितकारी श्राहार का ही सेवन कराना उपयोगी
पर यदि मलावरोध के कारण थोड़ा थोड़ा मल निकलने से उदर में अफरा, भारीपन, शूल तथा स्तिमिता उत्पन्न हो अथवा उदर में कोई क्षोभक दृष्य या अजी या सड़ा गला याहार हो तो सर्व प्रथम किसी सामान्य मदभेदक ग्रीषध को देकर पेट को साफ़ करना चाहिए। फिर दस्तों को रोकने के लिए धारक औषध का व्यवहार करना उचित है।
पकानिसार थाम के पके हुए होने को दशा में प्रथम बार बार मृदु धारक धीर वाद को बजवान धारक श्रौषध व्यवहार करनी त्ताहिए !
अत्यन्त निर्बलता की हालत में उत्तेजक औ. षध यथा सुरा ( ब्रांडी ) जेल में मिलाकर देना , लाभदायक होता है।
अब स्वानुभूत बहुशः योगों में से यहाँ कतिपथ ऐसे योगों का उल्लेख किया जाता है जो अतिसार की प्रत्येक अवस्था की चिकित्सा में प्रत्युपयोगी सिद्ध हो चुके हैं और सहस्रों बार परीक्षा की कसौटी पर आ चुके हैं। मात्रा रोगो,
रोग तथा अवस्था प्रादि के अनुसार न्यूनाधिक हो सकता है। इनको कोः, शुद्धि पश्चात् ही देना चाहिए, योग निम्न हैं:
(1) अवयय-सफेद राल, अतीस, मोच. रस, दालचीनी, छोटी इलायची के बीज, कपूर, अजवायन और सफेद जीरा । निर्माण-विधिइन सबकी समभाग लेकर चर्चा करें फिर खट्टे अनार के रस में भली भोति १२ घंटे तक स्वरल कर के चना प्रमाण गोलियाँ बनाएँ।
अनुपान-जल, थकं सौर और अर्क पुदीना।
(२ ) अवयव-वटांकुर, अहिफेन शुद्ध, हींग धी में भुनी हुई, जीरा भुना, शंख भस्म, सुहागा भस्म और पोदीना। निर्माण-विधिइन सबका चूर्ण समान भाग लेकर कहा की छाल के रस की सात भावना देकर एक रत्ती प्रमाण की गोलियाँ प्रस्तुत करें।
सेवन-विधि---खट्टे श्रनार के रस के साथ अावश्यकतानुसार १ या २ वटिका दिन में २-३ बार दें।
(३) अवयव-भङ्ग, छोटी इलायची, सफेद जीरा, जायफल, कपर, अनारदाना तुशं और कौड़ी की भस्म । निर्माण-विधि-इनको समान भाग लेकर बारीक चूर्ण कर रखें।
सेवन-विधि व मात्रा-३ रत्ती से १ माशा तक उक चूर्ण को अर्क पुदीना के साथ सेवन कराएँ।
( ४ ) मेथी भुनी, जीरा भुना, रूमी मस्तगी, कपूर, इन्द्रयय, जामुनको गुटली और ग्राम की गुली । इन सबको समभाग लेकर बारीक चूर्ण करें और जितना यह चूर्ण हो उतनी ही मात्रा में शब्द भाँग का चुण मिलाकर कागदार बोतल में युरक्षित रस्ने ।
मात्रा-च्चों को ग्राधी रत्ती से १ रत्ती। पूर्ण वयस्क मात्रा-२ रत्ती से मासा तक । श्रनुपान-अर्क पुदीना और अर्क सौंफ ।
शूलयुक्त अतिसार मेंसत अजवायन, सत पोदीना, जौहर नौसादर,
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