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अहिलरश्मि
श्रत
-ले। बेबग बाइ बढ़ -40, काश०, हि । स्निोप, तृप्त न होना । र.संतोष, मन न भरने गुवाइनी--स०प्र० । पहाड़ी चा, चूपा-३० को अवस्था । 2. श।
asa ataich, Te ( Acouitum विडङ्ग वर्ग
Ilestorophyllum, ई० मे० मे । (V.O. Jyrsinucnce ) उत्पत्तिस्थान--यह एक छोठा प है। तेजateja-हिं०वि० [सं०]() तेजरहित हिमालय, काश्मीर और साल्टरेश (लवण श्रेणी) से
___ अंधकार युक, मंद, धुंधला । शाल तक।
अनेजाः ato jah..सं. स्त्री० ( Shade, प्रभाव तथा उपयोग-इसका फल सराक
___Shadow ) छाया । रा०नि० व०२१। रेचक तथा विशेष कर कद्दाना निःसारक : अतीय उदर atoytidara-हिं. संज्ञा पु. माना जाता है। यह बेनत नाम से बिकता है। "सर्वस्वतोयमरुण माफकम् माति भारिकम् ।" श्रीर (Samara Ribes ) की प्रतिनिधि वा० नि० अ०१२ श्लो०११ । स्वरूप उपयोग में पाता है । स्ट्यु बर्ट ! लक्षण जलोदर को छोड़कर सय प्रकार के
प खुप से एक प्रकार का निर्यास प्राप्त होता उदर रोगों में उदर का वर्ग लाल, सूजन रहित है जो कप्टरज की एक उत्तम औषध है ( बैन.. और गुरुता रहित होता है । नमों के जाल के फोर)। जलोदर एवं उदरशूल में यह को:--' समुह से झरोग्वे की तरह हो जाता है और मदकारी प्रभाव करता है । ई० मे० मे०। । सदा गुड़गुड़ गुड़गुड़ करता रहता है। याय इसका लगातार प्रयोग मूत्र को अत्यन्त |
नाभि और अंग्र में विष्टब्धता उत्पन्न करके हृदय रजित करता है ! ई० मे. सां।
कटि, नाभि, गुदा और वंक्षण में वेदना करता अनुहिनाश्मि ntnhinaashmi-हिं० संज्ञा । हुअा अपने रूप को दिखाकर नष्ट हो जाता है पुं० [सं०] the sum सूर्य ।
तथा शब्द करना हश्रा बाहर निकलता है। अ.तूत aatita-अ. तस्तू य (एक पक्षी है)। इससे मलबद्धता और मत्र की अल्पता हो (A sort of bird.) लु० क० ।
जाती है। इसमें जठराग्नि अत्यन्त मन्द नहीं अतृन athima-शात।
होती है, भोजन में इच्छा नहीं होती और मुख में अ.तुस aatasha
विरसता उत्पत्र हो जाती है। उत्तास, मुअत्तिस् auttasa, in laattis
अन इमह, ataimah- १०. (०२०) तमाम -अ० सुस्कारक औषध, वह औषध जो छींक !
(प०१०), आहार, भोजन, खाना । डाइटम लाए । इसका ( ३० व.)प्रतमात है। इहा- .
Dicts.ई. ( म० ज० । इन Irrhine-इं। म० ज०।। अनला atusa-हि. भोजपत्र । ( Betula अत्क: atkah-सं. प. प्रा. अवयव ( An Bhojapatra).हैं. गा।
organ) उणा० । अतृष्ण atrishna-हिं० वि० [सं०] तृष्णारहित । अकुमः atkumah-अ० प्रगामार्ग । (Achनि:स्पृह । कामना हीन, निलोभ ।
yranthes aspera, Linn. ) अतृप्त atvipta -हि. वि० [सं०] [ संसा अन्डी atdi-० पित्तल, पीतल ( Brass )।
अतप्ति (1) जो तृप्त वा संतुष्ट न हो, जिसका | अतः attah-मल. जलोका, जोंक, जलायुका । मन न भरा हो। (२) भूस्खा ।
(Hirudo medicinalis).ई. मे०मे० । अतृप्तिः atriptih-सं० स्त्रा० । तृप्ति शू-प्रत atta-मल०, सिं० सीताफल, श्रात, शरीफा ! प्रवृति atripti-हि. संज्ञा स्त्रो० न्याव, अप- Custard apple ( Anona squ.
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