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अनुपकार
अनुपान अपकार anupakāra-हिंo संज्ञा पुं० [सं० ! गई हुई औपध को पथप्रदर्शक का काम
[ घि० अमुपकारक, अनुपकारी] अपकार, ! देता है। हानि ।
वह वस्तु जिसके साथ औषध खाई जाए। वह अनुपकारी anupakāri--हिं. वि० [सं०] वस्तु जो औषध के साथ या ऊपर से खाई जाए।
(१) उपकार न करने वाला ! अपकार करने औषधांगपेय विशेष । घाला । हानि करने वाला । ( २ ) फजूल, .
बद्रिक्रह, मुवकि -अ.। पेशदारू-फ० । - निकम्मा
falgar Vehicle-01 अनुपमः anupa.jah-सं. त्रि. अनुप देश में ..
___ नोट- यह बात सिद्ध है कि यदि किसी तरल उत्पन्न हुआ। देखो-अनूपवर्गः (Anāpa- ! वस्तुके साथ श्रौषध सेवनकी जाए तो इसका शीघ्र vargah )
:
प्रभाव होगा और वह औषध को शरीर में उसके अनुपदीना anupadina-सं. स्त्री० उपानह, अभीष्ट प्रदेश तक प्रविष्ट कराने में सहायक होगी। जूता, खड़ाऊँ इत्यादि । हला० ।
यही कारण है कि प्रायः सभी औषधे किसी न अनुपल anupal-हिं० पु० सेकेण्ड कॉल-मान |
किसी तरलके साथ सेवनकी जाती हैं। वह वस्तु *विशेष । (A second of time).
जो अनुपान रूपसे व्यवहारमें लाई जाए, रोग पर समुपशयः amupashayah सं० पु. । उसका भी प्रभाव औषध तुल्यही होना चाहिए। unupashaya-हि. संज्ञा .
कतिपय रोगों के प्रशस्त अनुपान निम्न हैं:-- (What increases the disease ) वात रोग-स्निग्ध तथा उष्ण द्रव्य । (१) उपशय के विपरीत, व्याध्यसारम्य औषधान
श्लेग्म व्याधि-रूस तथा उध्या पदार्थ । विहार आदि अर्थात् वह औपत्र, अन्न तथा
पित्त रोग-स्निग्ध वस्तु । बिहार जो रोगी के रोग के खिलाफ, हानिकारक
स्नेहपान में-उष्ण जल इत्यादि । मद० अथवा असात्म्य (अर्थात् जो उसके अनुकूल न
व० १३ । हो)हो उसे अनुपशय कहते हैं।
चूण, अवलेह, गुड़िका और कल्क के अनुपान (२) रोग-ज्ञान के पाँच विधानों में से एक जिसमें ।
की मात्रा वात, पित्त तथा कफ के प्रकोपमें क्रमश: आहार विहार के बुरे फल को देख यह निश्चय
३, २ तथा १ पल है। किया जाता है कि रोगी को अमुक रोग है।
(शाहू म० ख० ६०) मा०नि० । दे. उपशय ।
श्लेष्म ज्वर-मधु, पान (पत्र) का रस, अनुपात anupita-हिं० संज्ञा पु० [सं०]
पाक स्वरस और तुलसी के पत्र का रस चा (Ratio) सम, बराबर का सम्बन्ध, गणित !
क्वाथ । की त्रैराशिक क्रिया । तीन दी हुई मख्यानों के ।
पित्तज्वर-पटोल फल स्वरस, क्षेत्रपर्पटक द्वारा चौथी को जानना ।
स्वरस वा क्वाथ, गिलोय का स्वरस, निम्बत्वक श्रमपानम् amunanam-सं. नी. .. | क्वाथ वा स्वरस । अनुपान anupāna-हिं० संज्ञा पु रा
वातज्वर- शहद, गिलोय का रस, पटसन नि.व.२० । अनुपान का प्राथमिक अर्थ वह
( लाल पटुपा) तथा चिरायता का शीत कपाय तरल था जो औषध सेवनोपरांत व्यवहार में
और तुलसीपत्र स्वरस वा क्वाथ | . लाया जाता है । परन्तु, बहुत काल से अब यह उस द्रव पदार्थ के अर्थ में प्रयुक्र होने लगा, विषम-स्वर---मधु, पीपल (पिप्पली) जिसके साथ औषध सेवन की जाती है। दूसरे का चूर्ण, शेफालिका (हरसिंगार ) के पत्ते का शब्दों में इससे वह द्रव अभिप्रेत है जो सेबन की! रस, विल्वपत्र स्वरस, विल्य ( मूल ) चूर्ण,
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