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अनार
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अनार
नहीं गिरने देता और पैसिक वमन, अतिसार तथा दोनों प्रकार की खुजली को लाभप्रद है।
अनार फल तक दादिम स्वक, दाहिमफल वल्कल, अनार के फल का छिलका, नि ( ना )सपाल । पोस्त श्रनार-फा | क्रशरुम्मान-अ० । पॉमेग्रेनेट पीत Pomegranate peel, Trofis Pomegranate rind-go
वर्णन-अनारके फल की छाल के विषम, न्यूनाधिक नतोदर टुकरे होते हैं जिनमें कतिपय ट्राकार नलिकामय पुष्पवाह्य कोष लगे होते है जिसके। भीतर अब तक परागकेशर तथा गर्भकेशर मात होते हैं। पर, से १६० मोटा सरलतापूर्वक टूट आने वासा (टते समय जिससे कॉकंवत् धोमा शल हो) होता है। इसका नाम अधिक | खरदरा एवं पीत सर वा किंचित रक्रवर्ण का | होता है। भीतर से यह न्यूनाधिक धूसर वा पति | वर्ण का, मधुमक्षिका गृहवत् और वीजखातयुक्त होता है। इसमें कोई गंध नहीं होती; अपितु यह सी काय स्वादयुक्त होता है।
लक्षण-रक्राभायुक पीतवर्ण । स्वाद-बिका प्रकृति-मीडे की सई तर और सट्टे की प्रथम कवा में शीतस्त्र तथा १३ । हानिकर्ता शीत प्रकृति को । वपन्न-पाक । प्रतिनिधि-जरेवर्द (गुलाय का केशर)। शयंत की मात्रा-१ से २ तोला । प्रधान गुण- अर्श के लिए उपयोगी है
गुण, कर्म, प्रयोग-(.) गरमी की सूजन को लाभ करता और मसूढ़ों को शकि प्रदान करता है। (२) धनार के सूखे छिलकों को पीसकर छिडकनेसे काँचका निकलना बन्द हो जाता है। (३) अनार के फल को पीसकर गोला बना पुटपाक की विधि से पकाकर रस निचोद कर मधु मिला पीने से सब तरह के.दस्त बन्द होते हैं। (४) अनार के फल का छिलका | पुराने अतिसार तथा ग्रामातीसारको मिटाता है ।। (५) पाँच तोले अनार के छिलके को सवासेर
दूध में प्रौटा १५ छटाँक रख छान दिन भर में ३-४ बार पिलाने से प्रामातिसार मिटता है। (६) खट्टे अनार के २ तोले दिल के और दो तोले शहतूत को यौटा छान के पिलाने से पेट के कीड़े मरते हैं। (.) इसके छिलके की योनि में धूनी देने से मरा हुआ बचा याहर निकल पाता है। (८) इसके छिलके को छुहारे के पानी के साथ पीसकर लेप करने से सूजन बिखरती है । (६) अनार के छिलके
और लोगका कादा पिलानेसे पुराना प्रामातिसार मिटता है । इस काम के लिए अनार के छिलके और इसकी जद की ताजी छाल लेनी चाहिए।
नव्यमत पक अनार का रस प्रिय सथा स्वर जन्य उत्ताप एवं तृष्णा मादि को शमन करने वाला है। बर रोगी के सिवा यह हर एक रोगी और नीरोगी को लाभदायक है। मस्तिष्क, हश्य और यकृत को घस्यम्त पखवान बनाता एवं शुद्ध धिर उत्पन्न करता है। अनार के वाने निकाल कर मावत और झरझरे कपड़े में से निचोड़ कर केवल उसका रस पिलाएँ।
अस्यन्त मचयपाम जन्य यकृतोष में तीन तीन घंटे बाद अनार का रस निकाल कर पिलाते
कामला रोगी को प्रातः सायं ६-७ तोला अनार का रस और ६ माशे जरिस्क मिलाकर संघम कराएँ।
चमन एवं उत्प्रेश विकार में खट्टे अनार का रस गुणदायक है।
विसूचिका रोगी के लिए खट्टे अनार का रस एक उत्तम औषध है । रस न प्राप्त होने पर रूल्य या शर्बत का सेवन कराना चाहिए ।
छोटे धरचे को प्रति दिन प्रातः सायं एक-दो तोले एक समय अनार का पानी पिलाते रहें। ४० दिन तक ऐसा करने से जिस्म की रंगत सर्व निकल पाती है।
अनार दाने का ताजा रस उदर शूल प्रशामक है।
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