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अनार
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अनार
अनार श्रेष्ठ तथा वातादिक रोग नाशक है।
यूनानी मतानुसार अत्रि. १७ ०। ।
प्रकृति-मीठा अनार प्रथम कक्षा में सई तर दाहिम हर, अम्ल, वातनाशकं, दीपन, है। शीतल होने का कारण यह है कि इसमें कषाय तथा कफ पित्त विरोधी है। मधुर अनार अत्यधिक भावंता होती है। और तर स्निग्ध होने निदोषनाशक और खट्टा एवं वात व कफ नाशक का कारण यह है कि इसमें उफाण नहीं पैदा होता है। वरनाशक, दीपम, पथ्य, लघुपाकी जो तरी को कम करने का कारण हो सकता है। तथा अग्निप्रदीपक है। राजवल्लम।
अन्यथा यह मधुर न रहता प्रत्युत अम्ल हो जाता । अनार के वैद्यकीय व्यवहार
किसी किसी के मत से यह शीतोष्ण ( सम
प्रकृति) है। हारोत-मुख द्वारा रक्तस्राव में दादिम फल |
खट्रा अनार द्वितीय कक्षा में शीतल एवं रूत १ स्वक् को चीनी के साथ चाटने से मुख द्वारा :
है। शीतल होने का कारण यह है कि इसकी • रजपात प्रशमित होता है(च. ११ श्र०)। . प्राकृतिकोमा उफाण के कारण लय हो जाती है
चक्रवच-भरोचक रोग में अनार के फरन । तथा रूप होने का कारण यह है कि इसमें का रस विट-लवण-चूर्ण एवं मधु के साथ मुख
आर्द्रता की कमी होती है। खटामिटा श्रमार में धारण करने से. असाध्य अरुचि भी प्रशमित | प्रथम कक्षा में सर्द घ सर है। श्रमार के होती है । ( अरोचक-चि०)
वीज-प्रथम कक्षा में शीतल्ल एवं रूह है। बंगसेन-(1) ज्वरकृत मुख वैरस्य में हानिकर्ता-(मधुर.) भामाशय तथा वरी चीनी के साथ पिसा हुआ .अनार. दान्ध किंवा. को । (अम्ल ) शोत प्रकृति को, कुब्वत जाङ्गिबह शर्करा मिश्रित, अनार का रस, किसमिस तथा (भिशोषक शकि) को, यकृत तथा बाद को। अनार के रस.से ढीला कर मुख में धारण करने (स्वाद्धम्ल) शी र प्रकृति को। (दाडिमयोज) वा गण्डप करने से ज्यर रोगी के मुख की बिरसता शीत प्रकृति को। वपनाशक-( मधुर) ख? नष्ट होती है। (ज्वर-त्रि०),
शनार तथा शीत प्रकृति वालों को सॉऽका मुरब्या;
( दाहिम बीज ) जीरा । प्रतिनिधि-मा अनार ( २ ) रातिसार में अनार का रस
की प्रतिनिधि खट्टा अनार, बहे थनार का मीठा (दाडिम बीज स्वरस),-कूटा दुना ताजे कुटज
अनार । खटमिट्टा का करचा चंगर और अनार - स्वाद तो० को ६४ तो. जल में पकाएं। पाद
बीज का सुमारू है। मात्रा थनार बीज की (१६ तो०) शेष रहने पर उतार कर यन्त्र से
मात्रा र माशे से ६ माशे तक । छान खें। इसमें १६ सो• अनार का रस मिला कर पुनः पाक करें । जब यह सामिकावत होजाए
गुण, कर्म, प्रयोग- अनार अपनी शीतलता
एवं अम्लता के कारण पिस का नाश करता है। ..(अर्थात् राब की चाशनी लें ।) तव उतार कर
और अपने करज़ तथा रूक्षता के कारण इह शाय , रक्खें । इस फाहिताकार धस्नु में मे १ तो० लेकर तक के साथ सेवन करने से मृत्यूनमुख अतीसार
(कोला)की भोर मल वहन को रोकता है। रोगी भी जीवन खाम करता है।
विशेष कर इसका शर्बत, क्योंकि इसमें तारल्यता
कम होती है। इसके सम्पूरण भेदों में यहाँ तक भावप्रकाश-मामाजीणं में दाडिम फल को | कि अम्ल में भी कठन (संकोच ) के साथ भली प्रकार पीसकर पुराने गुड़ के साथ खाने से कोतिकारिणी.शक्रिया यशोधकरात्रि(क्रातजिल्ला) भामा जीर्श प्रशमित होता है। यह अर्श प्रभति होती है खट्टे शनारमें उफाण तथा अम्जताके कारण गुद रोगो एवं कोटबलू में प्रशस्त है। (अजीर्ण कांतिकारिता ( जिला ) होती है। परन्तु, मधुर -चि०। ।
अनार में उन गुण होने का कारण यह है कि
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