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अधिमुकका
अधिश्रयणी
अभिष्यन्द रोग का एक अंश। यह बातज, पिसज सक" कहते हैं। यह कफ के प्रकोप से होता कफज और रकज भेद से चार प्रकार का होता है। भा० म० ख०४ भा० मु० रो० चि० । है। इन सम्पूर्ण रोगों में तीन वेदना होती है । मा. नि । सु०नि० १६ अ०। यही इनका मुख्य लक्षण है । अभिष्यन्द ( चोक अधिमांसम् adhi-mausam-सं० तो०, ए. उठना, नेत्रशूल ) रोग की उपेक्षा करने से नेत्र रोग विशेष । मा० ने० रो०। देखो-नेत्र फलतः अधिमन्य नामक रोग उत्पन्न होता, (अधि) मांसामं ।
अधिमांसाम्म alhi-minsātmn:-सं०पु. लक्षण-अभिष्यन्द रोगों के बढ़ने पर उपाय ( Fleshy exerescenc:) on the और पथ्य नहीं करने वाले मनुष्यों के नेत्र में eye, cancer of the cyc ) 1 पीड़ा करने वाले उतने ही प्रकार के अधिमन्थ
दृष्टि शुक्रगत रोग विशेष। यह "मांसवृद्धि" रोग उत्पन्न हो जाते हैं। जिस रोग में ऐसी नाम से प्रसिद्ध है। इसके लक्षण–नेत्र के श्वेत पीड़ा होती हुई प्रतीत हो मानो नेत्र अत्यन्त भागमें जो फैला हुश्रा यकृत सदश अर्थात् ईपन् उखाड़े या बांधे जाते हो और आधा शिर मथा नीललोहित वर्ण का मोटा मांस दिखाई देता है सा जाता हो तो उसे अधिमन्थ जानना चाहिए। उसे "अधिमांसा" कहते हैं। मा०नि०। अधिमन्थ वातादि दोपोंके लक्षण से युक्त चार ही · श्रधिरूढ़ा adhi-rhi-सं० स्त्रो० प्रौढ़ा, दृष्टाप्रकारका होता है। श्लैष्मिक अधिमन्थ सप्त रात्रि चा, ३० वर्ष से ( ऊपर) ५५ वर्ष पर्यन्त की मैं तथा रक्रज, वातज क्रमशः ५ व ६ रात्रियों में : अवस्था धाली स्त्री । Soo-Proudha.
और मिथ्या प्राचार से पैत्तिक तरकाल दृष्टि का . अधिराहण adhirohana-हिं० संज्ञा पु. नाश कर देता है।
- [सं०] चढ़ना । सबार होना । ऊपर उपना । चिकित्सा-सभी प्रकार के अधिमन्य रोगमें
अधिरोहिणोandhi-rohini-सं० (हि. संथा) सर्वधा ललाटस्थ शिराका वेधन करें अर्थात् फ़सद ,
स्त्री० (Stair case, a ladiler.) सीढ़ी ।
निसेनी । जीना । बाँस का बनाया हुग्रा चढ़नेका करें। इसकी अशांति की दशा में भौहों को
मार्ग : इसके पर्याय,-निःश्रेणी। अ०टी० | प्रदाहित करे। सु० उ०६ श्रा
निःश्रेनिः (अ.)। अधिमक्तकः adhi-muktakah-सं० पु. धिवास adhivasa-हि० संज्ञा पु० [सं०] माधवी लता । वै० निघte-madha-!
[वि० अधिवासित ] (1) निवास स्थल । vijatá.
रहने की जगह । (२) महासुगन्ध । खुशबू । अधिमुक्तिका adhi-muktika-सं० स्त्री० (३) उबटन ।।
सीपी, मोती की सीपी-हिं० । मुक्रागृहम्, शुक्रि अधिवासन adhivasana-हिं० संज्ञा .. . To Oyster shell (Ostrea | (१) सुगंधित करना । (२) रहना । Edulis ) वै० निध।
अधिवृक्ल adhivrikka-हिं. पु. ( Supra अधिमांसकः adhimansakah-सं० पु. renals) उपवृक।
(Inflammation of the tonsils) अधिवेत्ता athivatta-हिं० संज्ञा प० [सं०] कफ जन्य दन्तवेष्टज रोग विशेष । एक रोग पहिली स्त्री के रहते दुसरा विवाह करना। जिसमें कफ के विकार से नीचे की दाद में विशेष अधिवेदन adhivedana-हिं. संज्ञा पु. पीड़ा और सूजन होकर मुंह से लार गिरती है। [सं०] एक स्त्री के रहते दूसरा विवाह करना । लक्षा–यदि हनु (डाद) की पिछली तरफ के अधिश्रयणी adhishrayani-सं० स्त्री. दन्त (मूल ) में घोर पीडायुक्र भारी सृजन हो चुलि । -हिं. संज्ञा स्त्री० [सं०] सीढ़ी । और मुंह से लालाम्राव हो तो उसे "अधिमां निसेनी । निःश्रेणी । जीना ।
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