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अतिसार
अतिसार
(२) ग्रहणी-पाहार के पचने पर च्याधि । द्वारा अतिशय साम या निराम मल निकलना अतीसार कहलाता है। अत्यन्त मल निकलने के कारण इसको अतीसार कहते हैं. यह स्वाभाविक ही शीघ्रकारी है।
परन्तु, ग्रहणी रोग में भुन अन्न के श्रजीर्ण होने पर कभी श्राममाहित और कभी मान्न । (भुक अन्न ) मल निकलता है। अन्न के जीर्ण । होने पर कभी पक्क मल और निकलता है और कभी कुछ भी नहीं निकलता । कभी बिना। कारण ही बारबार बँधा हुश्रा और कभी ढीला दस्त होता है । यह रोग चिरकारी होता है । और मल इकट्ठा हो होकर निकलता है। अतीसार और ग्रहणी में यही अन्तर है। ग्रहणी चिरकारी है और रातीसार आशुकारी है।
(३) प्रवाहिका ( Dysentery).
नाना विध द्रव धातु का अचुर परिमाण में . निकल ना अतीसार और केवल कफ का निकल ना । प्रवाहिका कहलाती है । वरांश, मरोड़, गुदा में : एक अवण नोय वेदना की अनुभूति होना, प्रायः अल्प मात्रा में ग्राम व रक्तमिश्रित मल का निकलना प्रवाहिकाके सामान्य लक्षण हैं । यद्यपि प्रारम्भिक अवस्था में कभी कभी अतीसारवत प्रचुर मात्रा में जलीय वा मल मिश्रित दस्त श्राते हैं, पर मरोड़ आदि प्रवाहिका के पूर्वोक्र लक्षण तथा अन्त्रपुट एवं सरलांत्राधः भागका अदु स्पर्श रोग के प्रावाहिकीय स्वभाव को प्रगट करते हैं। रोग के पूर्व इतिहास में उग्रवाहिका का अ.. भाव पाथवा श्लेष्मा एवं गुदस्थ थेदनानुभूति का न . हो- श्रीर मल के साथ का कम ग्राना श्रादि लक्षण अतीसार सूचक है।
(४) मलावरोध के कारण बिलकुल अनीसार के समान ही अवस्था उपस्थित हो सकती। है... प्रायः पतली श्लेप्मा व मल मिति दस्त श्राने लगते हैं। परन्तु, अन्वेषण करने पर थे। मात्रा में कुछ कम पाए जाते हैं। प्रतासार के पक अथवा अपक्क
होने के लक्षण
স্বথা (सामत्व या निरामत्व ) वह मल जी पूर्वाक वातादि लक्षणों से युक हो तथा जल में डालने से इस जाल और अति दुर्गन्धित या पिच्छिल (लसदार ) हो उसको श्राम या अपक्क कहते हैं। साम तथा निराम भेद से अतीसार को दो वगा में बाँटते हुए बाग्भट्ट महोदन साम अर्थात् श्रामातीसार के मल को इसी प्रकार का होना बतलाते हैं। वे और भी कहते हैं कि इसमें रोगी के पेट में पीड़ा, गुड़गुड़ शब्द होना, विष्टभ या खट्टा पाम्बाना होना, लार से मुंह भरा रहना एवं मल बदबूदार होना ग्रादि लक्षण होते है। ___इसके विपरीत जब देव हलका हो, मल जल __ में न डने और दुर्गन्धि एवं लुभाव रहित हो तब
उस मलको पक्र मल कहते हैं। वाग्भट्ट महोदय ने इसे निरान लिखा है और वे लिखते हैं कि निराम के लक्षण साम से विपरीत होते हैं, कफजन्य होने के कारण पक्क होने पर भी यह जल में इब जाता है । इसे निरामातीसार बा पकातीसार कहते हैं।
अतिसार की असाध्यता जिस अतीसार रोगी का मल पके जामुन के समान काला, यकृत् पिरड के समान कृष्णलोहित वर्ण का, साफ तथा वृत, तेल, वसा, मज्जा, वेगवार (पक मांस विशेष) के रंग का, दुध, दही तथा धुले हुए नांस के जल के समान वर्ण का, चित्र विचित्र रंग का, दिकना, मारकी पूंछ को चन्द्रिकाके बदरा बर्णका, धन (भारी), मुर्दा की सी दुर्गन्धियु, सस्तक की नजाके समान गंधयुकः ( माकस्थित स्नेह तुल्य गाभायु), उत्तम गंध या दुगन्धियुः अत्यधिक मल निकले और जिसके दाम, दाह, अंधेरा गाना, श्यास, हिचकी, पावशल, शस्थिशून, इंद्रियों मे मोह, अनिच्छा, मन में माह थे लक्षण हों तथा जिसकी गुदा की बलिया (यो) पक गई हों और जो अनर्थ भापण करें ऐसे अतीसारी को वैद्य छोड़ दे। अपरञ्च जो मलद्वार धोने में असमर्थ हो जिसके बल व मांस कीण हो गए हों,
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