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डसरजा
प्रखरदूजा
पेपीन ( Papain) को पेपाइन ( pap- ine) के साथ मिलाकर धमकारक न बनामा चाहिए । पेपाइन. एक द्रव पदार्थ है, जिसमें अफीम के वर्जनीय शारीय सखों से भित्र उसमें अजमर्दप्रशमन गुणे के होने की प्रतिज्ञा की जाती है।
इन्द्रियव्यापारिक कार्य या प्रभाष - इसकी प्रभाव विषयक बातों में सिवा इसके और कोई स्मरशीष पास नहीं कि इस नत्रजनीय पदार्थों पर प्रपत्र प्रभाव होता है और जब देखोटीन को सीधा हमें पहुँचाया प्राता है सब यह प्रमख विपेक्षा प्रभाव उत्पन्न करता है। जिस
जय तथा वातकेन्द्र बातग्रस्त हो जाते है। अन्यथा आन्तरिक रूप से औषधीय मात्रा में | यह सर्वथा निरापद है। . ..
उपयोग–विस्थीरिया (.सुनाक, करो। हिणी), अल्सरेटेड थोर (कक्षत), ऋष (स्वरम्नीकास), एकज़मा ( फन्द) और फिशर श्राफ दी टा(जिला की कर्कशता) भादि में इसका स्थानिक उपयोग और अग्निमांय, अजीर्ण वृष्यल, कद्दाना (टीनिया सोलियम् ), प्राध्मान, अनिसार तथा वृकाश्मरी एवं दो
भेदजन्य संग्रहणी (Lientric Diari rhora.) प्रभृति में इसका अान्तरिक उपयोग लाभदायक होता है।
(3) पेपन तथा पीना पंकि एटीन ( क्रोमीन. ) क. पाचक प्रभाव को ! तुलनात्मक व्याख्या--. :- ( अम्लीय. वारीय तथा म्युरल घोलों ।
( सध्यम) में भी इसका प्रभाव होता है। . जिससे उस अवस्था में भी इसके प्रभाव करने
की प्राशा की जा सकती है जब कि अस्वस्थता के कारण अथवा कृत्रिम रूप से जैसा औषध. काल में होता है. प्रामाशयस्थ पदार्थों की प्रति. किया वारीय या मुख(उदासीन)होजाती है । उक दर्शाभा में पेपीन सत्पत्तः व्यर्थ प्रमाणित होगा ।
(ख) पारीय एवं न्युट्रल घोली में प्रभाव. जनक होने के कारण प्राहारीय पदार्थों के प्रामा !
शय से मांग में जिसकी प्रतिक्रिया चारीब होती है, प्रा जाने पर भी इसका प्रभाव होता रहेगा जो पैडीएटीन (क्रोमीन ) के प्रभाव के तुल्य है । सम्पूर्ण मांत्र पर इसका प्रभाव होता रहेगा।
(ग) इसमें कुछ ग्रामप्रशमन वा शूलहर प्रभाव भी है।
(घ) पचनीय सान्द्राहार के अनुपात से दवाहार की मात्रा औसत वा अत्यधिक होनेपर भी यह पेप्सीन की अपेक्षा प्रबलतर प्रभाव प्रह र्शित करता है।
(क) Proteolytic प्रभाव के सिवा पेपीन का तेल पर स्पष्ट इमल्शनीकारक प्रभाष होता है।
(-) पेपसीन तथा पेडिएटीन (ोमीम) . की उपस्थिति में पेपीन का प्रभाव का जाना है। ___ मांस को कोमल करने के लिए पेपीन बोस में हुबा रखने पर वह अधिक काम सक विना सदे गले सुरजिम रहता है जो इसके बिना कदापि सम्भव न होना । इससे अनुमान किया जा सकता है कि इसमें प्रेरिटसेधिक (पचननिधारक) तथा पाचक प्रभाव भी है । (ज) गादे द्रवों में इसका विलक्षण प्रभाव होता है।
(२) प्रामाशय व मात्र विकार-अजीयोवस्था तथा अन्य भामाशयान्त्रधिकार जन्य
वानों में मांस पचाने में सहायक होने के लिए कांस देश में पेपेयोटीन का उपयोग किया गया। बालकों के कतिपय प्रामाशय व आंत्र विकारों में इसका.. सरलतापूर्ण प्रयोग किया गया । कहा जाता है कि थोषी मात्रा में इससे अग्निमांद्य एवम् कर्दि में अतिशीघ्र लाभ प्रगट कुमा । स्वाभाविक प्रामायिक रस के कम बनने की अवस्था में पेपेयोटीन को मुस्स द्वारा अथवा पोषकवस्ति का में प्रयोग करने से विशेष लाभ होता है। पेपीन पालकों के पुरातन भामाशपिक प्रतिश्याय,अम्बानी, ती भामाशयल (भामशूल जो भोजनके थोड़ी देर परमात प्रारम्भ होता
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