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अतसी
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अतसी "
श्रीज होते हैं। बीज चिपटे, प्रलंबमान, अंडाकार होते हैं जिनका एक सिरा न्यूनकोणीय और | किञ्चिन वक एवं प्रवकुटित नोक युक्र होता है।। इनका वर्ण' बाहर से श्यामाभायुक धूसर । चनकद्वार एवं सचिक्कण होता है किन्तु भीतर से गूदा का वर्ण पीताभायुक श्वेत होता है। नोक के
कनीचे एक सूचन छिद्र (Ililam) होता है ।। बीज बहिर्वक् के भीतर अल्ल्युमोन की एकपतली । तह होती है जिसके भीतर रहे, युग्म पैदा होते । हैं । और उनके भोकीले सिरेपा गाकुर होता है। विभिन्न देशों के बीज प्राकार में 1-1 ई० लम्बे । होते हैं ।( उप्ण प्रदेशों में होने वाले अपेक्षाकृत बड़े । होते हैं)। यह गंधरहित तैलमय लुनाबी स्वाद युक्त होता है । जल में भिगोने से बीज एक | पतले, फिसल नदार व रहित श्लैष्मिकावरण से श्रावृत्तहो जाते हैं । यह शीघ्र न्युट्रल ( उदासीन): जेली रूप में घुल जाते हैं श्रीर वीज किचित् फूल जाते हैं और उनका पालिश जाता रहता है।
नोट--(१) कलकत्ता यादि स्थानों में धूसर, श्वेत और रक्षा श्रादि तीन प्रकार की अलसी पाई जाती है। इनके अतिरिक्र एक । प्रकार की और अलसी होती है, जिसको लेटिन ! भाषा में लाइनम् कैयार्टिकम् ( Lintim ! Ca.bharticum) अर्थात् विरेचक अतसी । कहते हैं । यह यरूप में होती है।
(२) किसी किसी ग्रन्थ में अनीस भूल से , तीसी के लिए प्रयोग किया गया है । कभी कभी अल सी, अलिशि, अलशी, तिसा, अतसी या . तीसी इत्यादि उपयुक्त संज्ञाएँ अधिसि, अगशि, ! श्रगत्ति प्रती इत्यादि संज्ञाओं के साथ मिलाकर भ्रनकारक बना दी जाती हैं जो वस्तुतः श्रमस्तिया के पर्याय हैं।
रासायनिक संगठन-बीज की मींगीमें स्थिर । तैल ३० से ३५ प्रतिशत ( यह ग्राफिराल है ) होता है । बीज स्वर में म्युसिलेन (लुग्राब) १५ प्रतिशतः, प्रोटीड २५ प्रतिशत, एनिग्इलीन, राल, मोम, शर्करा तथा भस्म ३ से ५ प्रतिशत और भम्म में फास्फेट्स, सल्फेट्स और क्लोराइड्स श्रॉफ पोटासियम, कैल्शियम और मग्नेसियम्
(पांशु नैलि चूर्णनैलिद, और मग्न नैलिद ) प्रादि पदार्थ होते हैं। ( मेटिरिया मेडिका श्राफ इंडिया प्रार० एन० खोरी, खंड २, पृ० १०)
बीज में एक स्थिर तैल होता है जिसमें ३० से . ४० प्रतिशत लाइनोलिक, एसिड ( Linolic Acil ) तथा उपरोल्लिखित पदार्थों के साथ मिला हुआ ग्लीसरील (Glyceryl ) होता है । तैल उबलते हुए जल में विलेय होता है। _प्रयोगांश-अतसी बीग, तैल, पत्र और पुष्प एवं तन्तु ।
औषय-निर्माण-(बोज ) क्वाथ तथा शीत कपाय Infusion (३० में १), पाक वा मोदक, पुलटिस, धूम |
(तैल )-इमल्शन, लिनिमेंट और साबुन (मदु साबुन)।
मात्रा--शीत कपाय ( Infusion ) २ से ४ फ्लुइड पाउंस ।
युरूपीय प्रतिनिधि द्रव्य-भारतवर्ष में होने वाली तस्सी सर्वथा युरूगीय अतसी के समान होती है। अतः इनमें से प्रत्येक गक दूसरे की उत्तम प्रतिनिधि है।
इतिहास-पायुर्वेद में अतसी का औषधीय उपयोग अाज का नहीं, प्रस्युत अति प्राचीन है जैसा कि प्रागे के. वर्णनों से ज्ञात होगा। चरक, सश्रत आदि प्राचीनतम ग्रंथों में इसके उपयोग का पर्याप्त वर्णन पाया है। तिसपर भी वि०डिमक महोदय लिखते हैं- .
"Linseed, called in sauskrit Atasi, appoils to have been but little used as a medicine by the Hindus." अर्थात् हिन्द लोग अतसी का बहुत कन व्यवहार करते थे। यह बात कहौं तक सत्य है-इसका निर्णय स्वयं पाठकगण ही कर सकते हैं।
इसलामी चिकित्सकों ने इस ओर काफी ध्यान दिया है।
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