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श्रेण्डसत्वं
अण्डसवं
उत्पन्न हो सकता है। हाइपोनामाइड श्रीफ सोडियम् शुक्रीन से नत्रजन भिन्न नहीं कर । सकता। गोल्ड क्रोराइड (स्वर्ण हरिद ) और टिनिक कोराइड शुक्रीन के साथ तलस्थायी हो । जाते हैं। उत्ताप पहुँचाने पर शुक शुक्रीन से । श्वेत बाप्प उद्भूत होता है।
इतिहास-अगड सव का उपयोग नया नहीं, प्रत्युत अति प्राचीन है। हाँ ! निर्माण क्रम में चाहे भले ही कुछ भेद हो । वाग्भट्ट महोदय स्वलिखित "अष्टांगहृदय संहिता" में सर्व प्रथम हमारा ध्यान इस ओर आकृष्ट करते हैं, यथावस्ताण्ड सिद्ध पयसि भावितान सकृत्तिलान् । ! यः खादेससितान् गच्छेत्सस्स्रो शतमपूर्ववत् ॥ :
( वा० उ० ४० अ० ) : अर्थ-बकरे के अण्ड को दुग्ध में पकाकर उस दुग्ध की काले तिलों में बार-बार भावना दें। इन तिलों को जो मनुष्य शर्करा के साथ । सेवन करता है उसमें शत स्त्री सम्भोग की शक्ति बढ़ जाती है, और यह प्रथम समागम का सा । सुख अनुभव करता है।
थोड़े परिमाण में जल, प्राण्डीय शिरा का रक्र, शुक्र, कुक्कुर था गिनी.पिग (guinea-pig ) के श्रण्ड को कुचल कर निकाला हुअा ताजा रस इन चार यस्तुओं को एकत्रित कर अापने इसका स्वगन्तः श्रन्तः क्षेप लिया । अधिक से अधिक प्रभाव प्राप्त करने के अभिप्राय से प्रापने अन्तः क्षेप भर में प्रत्यल्प जल का उपयोग किया। प्रागुन अन्तिम के तीनों पदार्थों में प्रापने उनके द्रव्यमान से तिगुने या चौगुने से अधिक परिसत जल का उपयोग नहीं किया; तदनम्तर उनको कुचल कर फिल्टर पेपर (पोतनपत्र)द्वारा छान लिया। प्रत्येक अन्तःक्षेप में उन्होंने १ घन शतांशमीटर छाने हुए द्रव का उपयोग किया। पास्चर्स फिल्टर द्वारा छान हुए द्रव का १५ मई से ४ जून तक आपने १० अन्तःक्षप लिए; जिनमें से २ वाहु में और शेष समग्र अधो शाखा में।
परिणाम निम्न प्रकार हुए__ प्रथम त्वगन्तः अन्तःप तथा दो और क्रमानुगत अन्तःक्षेपों के पश्चात् आप में एक स्वाभाविक परिवर्तन उपस्थित हुश्रा और उनमें वह सम्पूर्ण शनि जो बहुत वर्षों पहिले थी पागई। बिस्तीण प्रयोगशाला विषयक कार्य कठिनता से उन्हें शान्त कर सकते थे । वे कई घण्टे तक खड़े होकर प्रयोग कर सकते थे और उन्हें बैठने की कोई आवश्यकता नहीं प्रतीत होती थी।
संक्षेप यह कि उन्होंने इतनी उन्नति की कि वे इतना अधिक लिखने तथा कार्य करने के योग्य हो गए जो आज २० वर्ष से भी अधिक काल तक में वे कभी न हुए थे। उन्हें मालूम हुश्रा कि प्रथम अन्तःक्षेप से १० दिवस पूर्व मूत्र-धार की जो औसत लम्बाई थी वह पश्चात् के २० दिवस की मूत्र-धार की लम्बाई से कम से कम
न्यून धी। अन्य क्रियाओं की अपेक्षा मल विसर्जन क्रिया में उन्होंने अत्यधिक उन्नति को ।
___ इन्द्रियव्यापारिक क्रिया-उपयुक्र प्र. योगों से यह बात सिद्ध होती है कि ग्राण्डीय दव के अन्तःक्षेप का हृदय एवं रक परिभ्रमण पर उत्तेजक प्रभाव होता है. सर्व शरीर की पुष्टि
पाश्चात्य अमरीकन डाक्टर ब्राउन सोचार्ड (Bron Sequari) महोदय का बहुत : काल तक यह विश्वास रहा कि वृद्ध मनुष्यों की . निर्मलता के मुख्य दो कारण हैं:-(७) प्रावयविक परिवर्तन का प्राकृतिक क्रम । (२) शुक्र : अन्थियों की शक्रि का क्रमिक हास। उन्होंने विचार किया कि यदि वृद्ध मनुप्यके रक्त में शक का निर्भय अन्तःक्षेप किया जा सके तो सम्भवतः विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक शकियों की। वृद्धि प्रत्यक्ष रूप से प्रदर्शित होने लगेगी। उक्त : विचार को ध्यान में रखकर अापने सन् १८७५ '. ई. में जीवधारियों पर अनेकों प्रयोग किए। परिणामतः प्रयोग क्रम के अनपकारकत्व एवं उन जोवधारियों पर होने वाले उत्तम प्रभाव विषयक उनके सन्देह की मिवृत्ति हो गई। उस का निश्चय हो जाने पर उन्होंने स्वयं अपने । ऊपर प्रयोग करने का निश्चय किया। प्रस्तु,
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