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अंजनम्
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अजनम्
के कारण होता है। यह वायु प्रणालीस्थ श्लेष्मा स्राव को अधिक करता है। उक्र औषध का यह प्रमुख प्रभाव है जो इसे श्लेष्मानिःसारक औषधों की ओणी में प्रथम स्थान प्रदान करता है।
अञ्जन के प्रयोग
वाहा प्रयोग यद्यपि अब से कुछ काल पूर्व एमेटिक द्वारा प्रस्तुत मलहम काउण्टर इरिटेण्ट (स्थानीय उग्रता साधक ) रूप से फुफ्फुस, मस्तिष्क तथा सन्धिवात प्रभात रोगों में व्यवहार किया जाता । था, किन्तु इसके लगाने से कठिन वेदना होती एवं इससे सदाके लिए बि पड़ जाते हैं, इसलिए अाजकल इसका उपयोग सर्वथा • स्याज्य है।
आभ्यन्तर प्रयोग आमाशय तथा प्रांत्र-विषाक्क प्राणी को वमन कराने के लिए टाटार एमेटिक का उपयोग उचित नहीं; क्योंकि प्रथम तो इसका प्रभाव : बिलम्ब से होता है, और द्वितीय इससे अत्यधिक । निर्बलता उत्पन्न होती है । किन्तु, वासीय प्रादा. हिक रोगों, यथा कलिन कास अर्थात् वायनलिका । प्रदाह, स्वरयन्त्र प्रदाह (लेरिजाइटिस) तथा : खुनाक ( कृप) प्रभृति में जहाँ कि वमन एवं | रक संचालन की निर्यलता दोनों प्रभावों की। आवश्यकता होती है, वहाँ पर उक्र औषध अत्यन्त गुग्ण प्रदर्शित करती है। विषम ज्वरमें जब । किनाइन से लाभ नहीं होता तर टटीरएमेटिक | से वमन करा के पुनः किनाइन खिलाने से लाभ होता है।
रक्त भ्रमण तथा श्वासोच्छवास-राथन | (ऐण्टिफ्लोजिस्टिक ) प्रभाव के लिए टार्टार एमेटिक को -ग्रेन को मात्रा में सीगिया (एकोनाइट) के समान बहुत से कठिन प्रादाहिक रोगों । की प्रारम्भावस्था,यथा-गलग्रह (टॉन्सिलाइटिस), । स्वर यन्त्रप्रदाह ( लेरिझाइटिस ), कठिन कास (वायुप्रणाली प्रदाह ), फुफ्फुस प्रदाह (न्युमोनिया ), फुफ्फुसावरक कला प्रदाह !
(प्ल्युरिसी), हृदयावरक प्रदाह (पेरिका - इटिस), उदरच्छदा कला प्रदाह (पेरिटोनाइटिस) श्रीर डिम्बाशय प्रदाह (श्रोबेराइटिस ) प्रभति में उपयोग करते हैं।। बच्चों के कठिन कास या ऋप (खुनाक ) श्रादि में जब कि इसे अकेले अथवा इपीकाकाना के साथ मिलाकर दिया जाता है तब यह और अधिक लाभ करता है।
नोट---नवीन तीब्र कास के ग्रादि में इसको सामान्यतः व्यवहार में लाते हैं। परन्तु, यदि रोगी बलवान अर्थात् रज प्रकृति का हो तो इसके प्रयोग से अधिक लाभ होता है। और जब इसके उपयोग से पतला होकर श्लेष्मास्त्राव प्रारम्भ हो जाए तब फिर इसका उपयोग स्थगति कर देना चाहिए । डिफ्थोरिया में इसका उपयोग न करना चाहिए।
टार्टार एमेटिक प्रतिश्याय ज्वर के प्राक्रमण को शीघ्र कम कर देता है। हृदय दौर्बल्यकारी होने के कारण अञ्जन को अब स्वेदक प्रभाव हेतु बहुत कम उपयोग में लाते हैं। पर यदि रोगी सशक्र हो तो कभी कभी इसे उक्र प्रभाव हेतु उपयोग में लाते हैं ।
पल्विस ऐण्टिमोमिएलिस एक सूक्ष्म स्वेदजनक ( डायफॉरेटिक) औषध है, तो भी प्रतिश्याय ज्वर तथा कासीय फुफ्फुस प्रदाह में इसको देने से कभी लाभ होता है। डॉक्टर ग्रेविस महोदय ऐसे ज्वर में जिसमें कठिन उन्माष की अवस्था हो, (चौथाई) प्रेनकी मात्रामै टार्टार एमेटिक को उतनी ही अफीम के साथ योजितकर एक एक या २-२ घंटा पश्चात् कुछ बार उपयोग करना लाभप्रद बताते हैं।
सर वि० हिटला के कथनानुसार मदात्यय ( डेलीरियम ट्रीमेन्स ) में जब अफीम निद्रा उत्पन्न करने में असफल हो जाता है उस समय उसके साथ से ग्रेन उक्र औषध को मिलाकर व्यवहार करने से शीघ्र प्रभाव होता है।
वात संस्थान तथा मोस संस्थानमेनिया ( उन्माद ) रोग में पागलपन को दर
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