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अङ्गर
अङ्गर
अगर पुष्प में दो कोपीय डिम्बाशय होता है :
और प्रति डिम्बाराय में दो-दो डिम्ब होते हैं। ये डंठल युक, स्थूल, गदादार, गोल या अएदा- । कार (झड़येरी के सदृश ) फल रूप में विकास पाते हैं। कोष भिन्न हो जाता है तथा उनमें से कुछ बीज साधारणतया नष्ट हो जाते हैं। चूँ कि फल ईटल से और उंटल शाखा से नहीं जुड़े रहने, इस कारण परिपकावस्था में ये झड़ते नहीं, किन्तु उन पौदे में ही लगे रहते हैं ( पर यह शर्त है कि सूर्यनाए काफी हो) और धीरे धीरे सूख जारे हैं । उक्र शुष्क फल को सूर्य ताप द्वारा पका हुआ किशमिश कहते हैं । फल इसके छोटे, ब, गोल और लम्बे कई श्राकार के होते हैं। कोई नीम के फल की तरह लम्बे और कई मकाय ! की तरह गोल होते है। __ रासायनिक संगटन-फल के ग्ढे में अगरी | शकर (दादोज) तथा क्रीम ऑफ टार्टार ( Cream of tart:#7 ) SACST होता है । इसमें निर्यास तथा सेब की तेजाब भी विद्यमान होती है । बीज में एक प्रकार का स्थायी तेल होता है । (एट-)। धीज तथा फालत्वक् में ५-६ प्रतिशत करायाग्ल (दैनिक एसिड) पाया जाता है। फार्माको । डॉ जे० कानिक तथा सीक्रश्च के विचार से ! काली दाख में जल २३. १८, अल्ब्युमिनस पदार्थ | . २. ७१, घसा ०.६६, द्वाज ( ग्रेप शूगर) १५.६२,अन्य अनत्रजनीय पदार्थ १४.१२,काष्टोज १.१४, तथा गत १.३६ प्रतिशत विद्यमान होती हैं। शुकद्रव्य में उन्होंने मत्रजन ०.१६ और । शर्करा ७२.४३ प्रतिशत पाया। डॉक्टर इ०क
और कपोटलो के परीक्षणानुसार किशमिश में जल २०.४, ट्रात रारा ३०२ लिप्यु जोज़ ३६.४, पेक्टिन १८६, फ्री एसिड्स ३.७६,सेब की जा ०.३८, अलि ३.२८, अनवुल पदार्थ ५.० तथा भस्म २.०३ होती है। डॉक्टर एम. सी. म्युयार के परीक्षानुसार अगर पत्र में | इमली की नेजाब (टार्टरिक एसिड) थाइटार्टेट
ऑफ पोटाश, कसेंटीन, क्वर्सिट्रीन, कपायिन, | श्वेतसार, सेव की तेजाब, गिर्यास, इनोसीट,
अस्फटिकवन शर्करा, प्रॉकज़लेट श्रॉफ लाइम तथा एमोनिया और फॉस्फेट व सल्फेट प्रोफ़ लाइम विद्यमान होते हैं।
प्रयोगांश-फल (पक्व या अपक), कुछ शुष्क फल [ किशमिश मोगका प्रभ। ) तथा पत्र। __ मात्रा-शर्यत, प्राधे से एक फ्लुइड ग्राउन्म (२४ घण्टे में ५-६ यार)। किशमिश या मुनक्का १ तो० से २॥ तो० तक (दिन रानमें ३-५ वार )। .
औषध-निर्मागा--द्राहा सुरा (Vimum), द्राक्षारिष्ट, द्वाज्ञासव, द्राक्षाचुक या अगरी सिका ( vingar of graps) प्रभति।
प्रनिनिधि-यूरोपीय औषध, इमली और नीबू की तेज़ाब (अगर के लिए ), 'पालुबुस्वारा और शीरतिशत (किशतिरा के लिए) मो० शु० । गम्भारी फल । . सि. यो. व. चि० विपयादि, वा० सू०१५ श्र० परुप कादि, च. द. घा० ज्व० चि) पिपयादि, पा० ज्य. चिद्राक्षादि।
द्राक्षा के गुणधर्म व उपयोग श्रायुर्वेद को दृष्टि सेः--
पका अंगर-दस्तावर, शीतल, नेत्रों को हितकारी, पुप्टिकारक, भारी, पाक नथा रममें मधुर, स्वर को उजन करने वाला, कला, मल तथा मूत्र की प्रवृत्ति करने वाला, को में वायकारक, वृष्य ( वीर्य को बढ़ाने वाला), कफ तथा मचि को उत्पन्न करता है और नृपा, ज्वर, श्वास, काम, वानरक, कामना मूत्रकृच्छ, रनपित्त, मोह, दाह, शोप नथा गदात्यय रोग को नष्ट करता है। गोम्तनी ( गाय के स्तन के सहश) अर्धान कालीदाख घीर्यवर्धक (वृष्य ) भारी और कफ नथा पित्त को नष्ट करने वाली है। कचा अंगर सीन गुण वाला नथा भारी है । खट्टा अंगूर रक्रपित्त को करने वाला है। बीज रहित अथवा छोटे बीजों वाली (किशमिश) गोस्तनी दाख के सदृश गुणों वाली है। पर्वतमें उत्पन्न हुई (पम्वतीय) दाख हलकी, अम्ल और कफ तथा रक्रपिन को करने वाली है।
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