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अजवाइन
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( पुलटिस ) या स्तर उपयोग में आता है । इसके बीजों को गरम कर दमा में सीने को तथा विशुचिका, मृर्धा व बेहोशी में हाथ पत्र को शुक सेक करते हैं।
अजवायन के बीज, पिप्पली, प्रड्स पत्र और पोस्ते के ढोंद इनका काथ कर आधे से : श्राउंस की मात्रा में श्राभ्यन्तर रूप से वर्तते है ।
श्लेना के शुष्क हो जाने या चिपचिपा हो जाने के कारण जब फलाच कठिन हो जाता हैं, उस समय इसके श्रीशों के चूर्ण में क्वन मिलाकर खिलाने से लाभ होता है ।
बनयतानी भी उत्तम है श्रोर श्रनेक कृि नाक योगों का एक मुख्य अवयव है ।
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शिथिल-कंत में इसका भी संकोचक श्रीधियों के साथ उपयोग में श्राता है। श्रीप धियों विशेषकर मरड तेल के ग्राह्य स्वाद को छिपाने के लिए एवं उनकी वामक प्रवृत्ति व ऐंठन युक्र बेदना को रोकने के लिए इसका उपयोग किया जाता 1
आभ्यासिक मादकता नया पागलपन में यह लाभदायक है।
अपने वरपरे तथापि मनोहर स्वाद और श्रनाशयिक उत्ताप विवर्द्धन के कारण मादक तव पान की इच्छा से व्यथित व्यक्तियों का इसे व्यवहार में लाने की आधुनिक काल में बहुत सिफारिश की जाती है । यद्यपि इससे नशा नहीं पैदा होती तो भी निर्बलता दूर करने के लिए यह सामान्य उनक श्रौषधों की एक उनम प्रतिनिधि है - बुड ) ! श्रापका कथन है कि यह बहुत से वुद्धिमान व्यक्तियों को मद्यपान के अभ्यास की किकरता से मुक्ति दिलाने के लिए उत्तम कारण सिद्ध हुई है।
अजवायन ( श्रीज लगने से प्रथम ) के पौधे के कोमल पत्तो कृमिघ्न प्रभाव हेतु व्यवहार में आते हैं । कृमि में इसके पत्र का स्वरस दिया जाता है
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विषैले कीटों के काटने पर देश स्थान पर इसके पत्तों को कुचल कर लगाते है ।
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अजवाइ ( 2 ) न खुरासानी
अजवायन के पत्ते का स्वरस, स्पन्द ( हेना ) और मालकांगनी इनको समान भाग लेकर इससे तिगुना मीठा तेल जिलाकर पकाएँ । तैयार होने पर उतार लें और नासिका व क * रोगों में इसका व्यवहार करें। ( इलाजु० गु० ) अजवाइनका फूल ajavái a-ká-phúla जन-का-सन ajavaina-kásata किं० संज्ञा पुं० श्राइमोल ( blowers of Ajowan Camphor ) | देखो - थाइमोल व अजवादन | फा० ई० । ई० मे० मे० । ८० [फा० ई० ।
अजवाइन- फे-बू-का-पत्ता ajawaina-ke-búka-patti-इ० सीता की पञ्जरी । वाह (य) न खुरासानो ajavai (ya) nakhurasáni-60 संज्ञा स्त्री० [सं० यवा निका ] खुरासानी जया (मा) यन । बुरासानी श्रज्ञान- ३० । नदकारिणी, तुरुष्का, तिब्रा, यवानी, यावनी, मादक, मदकारक, दीप्य, श्याम, कुचैराख्य, पारसीक यवा (मा) नी, खोराखानी यमानी-सं० । खुराशानी योयान, खुरासानी जीवान- बं० | हाइयो साइमस नाइप्रभू Hyoscyamus Nigrum, Linn. ( Seeds of - ), हाइयां साइमस ( Hyoseyamus ), हा० रेटिक्युलेरिस (H. 13ticularis ), हा० रेटिक्युलेटस (H. Reticulatus, Lin".) - ले० । हेन्येन (सीड्स) Henbane ( Soods ) - | जस्कीएमिनचार Tusguiam-फ्रां० श्रफ़िग्रूम Aliyum जर० । खराशानि-योमम् - ना० । खुरासानि -वामम्, खुरिक्षिघामम् । खुरासानी-यमनी, खुरसान वाली ते०, तै० । खुरासान बीमा, खुरासानि वादकि कना० । किरमाणि श्रवा, खोरासारणी-नि-श्रीवा, सुरबंदीचे - फूल - मह० | खुरासानि श्राज्मो, खुशसानि - श्रजवान, खुरसाणा - अजमा, करमाणीछहारी - गु० व्रजरभंग, इस्किरास-काश० । काटफिट - ० 1 ब जुल्ब, बञ्ज, सीकशन, दाउरे जाल-अं० | अंक, बंग, अंगदीवाना- का० श्रृज़ूमालस-लिपि० । वानवात-तु० । अफ्रीकून,
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