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अग्निसखा
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अग्निसाध्य
अग्निसखा agnisakha-हिं० संज्ञा पुं... पकाएँ । सिद्ध होने पर इसकी मात्रा २ रत्ती देने [स'.] वायु, हवा ।
से जराग्नि अत्यन्त प्रदीप्त होती है। अग्निसंस्कारः aguisunskārth-सं० ० ० रस रा० सु. अजाण चि०, भैष ।
(१) अग्निदाह कर्म (Fumial cerem- अग्नि सन्निभा वटी agnisamibhavati ories )। नृतक के शव को भस्म करने के। सं० स्त्रो०, टो०, र० रा०शि०, र० ( म०) लिए उस पर श्रागी रखने की क्रिया।
ना०वि०, अजीर्णाधिकारे । (१) आग का व्यवहार । नपाना । जलाना।। ४० तोले कुचले के बीज और तुषाम्ल (हरे (३) शुद्धि के लिए अग्नि सर्श कराने का जौ दल कर उनकी जो कांनी अनाई जाती विधान ।
उसको तुपाम्बु या तुपाम्ल कहते हैं ) में उतनी fa ETO agni-sants parşhá-# ही हरहे, उबाले हुए विवंग, हाँग, त्रिकुटा, स्त्रो० पर्पटी नामक सुगन्ध द्रव्य, पद्मावती, - त्रिदीप्य ( अजवाइन, अजमोद, खुरासानी अजयह उत्तर में प्रसिद्ध है। भा०९०पू०भा०क० ‘वाइन) पारा, गंधक, ये सब ४ तो० मिलाकर
व०। पपड़ी (-) पनरी (-ड़ी)-हिं० । घोटकर बारीक कज्जली के माफिक चर्चा बनाए अग्निसंदीपन: guisia.indipahalh-सं० । और सब चीजें कुचिले और हड़ वाले करक में त्रि० अग्निवर्धक, धावद्धक (Increasing, मिला के जंगली बेरकी गु.ली के सरश गोलियां appetite)
बनाएँ । गुण-कफ साव, मन्दाग्नि, तन्द्रा, अनिसंदीपनोरसः agni-sandipalno-asab
स्वरभेद, अफारा, शूल, उदर रोग, खांसी स. पु.। पीपल, पीपलामूल, चव्य, चित्रक, 1 हिचकी, बमन, और कृमिरोग को नष्ट करसी है। सोंठ, मिर्च, पञ्चलवण, जवाखार, सजीखार, !
इसे अगस्त्य, हारित और पाराशरजी ने कहा है। सोहागा. सफेद जीरा, स्याह जीरा, अजवाइन, | श्रग्निसम्भवः agni.siaunbhavah-स'. बच, साफ, हींग, चित्रकको छाल, जायफल, कूट, (Vild Saffron) जंगली कुसुम, अरंड जावित्री, दारचीनी, तेजरात, छोटी इलायची, कुसुम वृक्ष । वन कुसुम-बं० । रा० नि०५० अम्ली क्षार, अपामार्ग ज्ञार, विष, पारा, गंधक, ४ । (१) अग्निजार वृक्ष (Agnijara) लौह भस्म, अभ्रक भस्म, बंग भरन, लोह, हड़ ।
.. रा०नि०प०६। ये प्रत्येक एक २ भाग, अम्लधेत २ भाग, शंख । माग्नसहायः agvisahavah )
अग्निसखः agni sakhah , स. पुं. भस्म ४ भा० सबका चर्ण कर पञ्चकोल, चित्रक,
(१) (Wild pigeon) जंगली कबूतर अपामार्ग के क्वाथ की भावना , इसी तरह
क्योंकि उसके मांस से जराग्नि तीन होती खट्टी मोनिया के रस की ३ तीन, तथा नीबू के
है । वन्य पारावतः-सं० । घुगु-बं० । होगलापक्षी रस की २१ इक्कीस भावना देकर बेर नुम्य
..म० । रा०नि० ब०१६ । (२) वायु, हवा गोलियां बनाएं, सायंकाल व प्रातःकाल इसके
(ail', wind)। (३.) smoke धूम ।। सेवन से तथा दोपानुसार अनुपान से यह रस
अग्निसात् agnisat- वि० [सं०] भाग में मंदाग्नि को प्रज्वलित करता तथा अजीर्ण, अम्ल
जलाया हुश्रा, भस्म किया हुश्रा। पित्त, शूल और गुल्म को नष्ट करता है।
afizkia: agui-sailah-oq'o (In«li. (२) शुद्ध पारा और गन्धक बराबर लेकर gestion) अग्निमांद्य, अपच, १.जीणता, कज्जली कर के गाहे वस्त्र में उसको बांध दें। कफ द्वारा जठराग्नि का निस्तेज होना, मन्दाग्छि, पुनः १ घड़े में नीचे वालू भरकर उस पोटली को
सा० को स्व० चि०। इसमें रख दे और ऊपर से घड़े को बालू से अग्निसाध्य agnisādhyah-स. त्रि० अग्नि भर दें। उसके ऊपर से दो दिन तक तृणाग्नि दाहसाध्य, अग्नि से जलने से जो की हो। जला अथवा उसको गजपुट में 1 दिन तक च०० अर्श० चि०।
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