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बराङ्ग चरितम्
नष्टान्धकारा वसुधाप्रवेशा धोंतिता भानशशिप्रकाशैः। ते ज्योतिषाका विपुलप्रकाशा विभान्ति नित्यं नयनाभिरामाः ॥१८॥ श्रीमण्डपान्मण्डितहर्म्यमालान् डोलाग्रहान्प्रेक्षणकाञ्जनानाः।
सप्तमः ................... ॥ १९॥] (?)
सर्गः शाखोपशाखास्वतिभासुरासु प्रवालपत्राङ्करपल्लवानि । प्रदीपतल्यानि सृजन्ति नित्यं ते दीपिताजा': सुखदर्शनीयाः ॥ २०॥ दुकूलकौशेयकवालजानि सच्चीनपट्टांशुककम्बलानि । वस्त्राणि नानाकृतिवर्णवन्ति वस्त्रावृक्षा ददते सदैव ॥ २१॥ सुगन्धिसच्चम्पकमालतीनां पुन्नागजात्युत्पलकेतकीनाम् ।
पचप्रकारा रचितायमाला माल्याङ्गवृक्षा विसृजन्त्यजत्रम् ॥ २२॥ भोगभूमिके समस्त भूखण्डोंपर व्याप्त अन्धकारको नष्ट करके जो सूर्यके उद्योत और चन्द्रमाको कान्तिसे उन्हें प्रकाशित कर देते हैं वे ही ज्योतिषांग कल्पवृक्ष हैं। इस जातिके वृक्ष विशाल प्रकाशपुञ्जके समान है इसीलिए उन्हें देखते ही नेत्र परम मदित हो उठते हैं तथा उनकी कान्ति सदा ही चित्तको आकर्षित करती है ॥ १८॥
सुखी जीवनके लिए उपयोगी समस्त उपकरण तथा सर्वांग सजावटसे युक्त निवास गृहों, उनके आगे बने विशाल श्रीमण्डपों, स्वास्थ्य तथा विनोदके साधन दोला ग्रहों तथा प्रेक्षण गृहोंको गृहांग कल्पवृक्ष देते हैं । उपयोगी तथा सुन्दर भाजन एवं स्वादु तथा स्वास्थ्यकर भोजन, भाजन-भोजनांग कल्पवृक्ष प्रदान करते हैं' ॥ १९ ।।
जिनकी अत्यन्त जगमगाती और कान्तिमान प्रधान शाखा और उपशाखाओंपर निकली कोंपलें, पत्ते, अंकुर और पल्लव ऐसे मालम देते हैं मानो प्रकाशमान प्रदीप हैं उन्हें प्रदीपांग कल्पवृक्ष बताया है। इन्हें देखते ही नेत्रों तथा मनको बड़े सुखका अनुभव होता है ।। २० ।।
वस्त्रांग वृक्षोंका यही कार्य है कि वे सर्वदा कपाससे बने उत्तरीय-अधरीय आदि वस्त्र, कोशाके वस्त्र, केशों (ऊन) से निर्मित उत्तम वस्त्र, चीनमें बने रेशमी वस्त्र, पाटके रेशोंसे निर्मित सूक्ष्म और लघुवस्त्र, कम्बल आदि नाना रंगों तथा ॥ विविध आकार और प्रकारोंके वस्त्रोंको भोगभूमियाँ मनुष्योंको अर्पित करते रहें ।। २१ ॥
[११७] माल्यांग वृक्षोंके अग्रभागमें परम सुगन्धियुक्त उत्तम चम्पा, मालती, पुन्नाग, चम्पा, जाति, (चमेली), नीलकमल, १. इस श्लोकका उत्तरार्ध पुस्तकमें नहीं है। १. [ दीषिकाङ्गाः].
राम
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