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सप्तविंशः
चरितम्
बभूवुरेता जिनमातरश्च अनन्यनारीसदशैर्गुणोधैः । नाम्नोपदिष्टाः प्रथिताः पथिव्यां ततः परं दानपतीन्प्रवक्ष्ये ॥ ७७ ॥ श्रेयांस्तु दानाधिपतिः स आद्यो ब्रह्मा सुरेन्द्रस्त्वथ चन्द्रदत्तः। स पद्मजिच्चैव हि सोमदेवो महेन्द्रसोमौ खलु पुष्पदेवः ॥ ७८ ॥ पुनर्वसुर्नन्दसुनन्दनौ च जयाभिधानो विजयस्तथैव । स धर्मसिंहश्च सुमित्रनामा स्याद्धर्ममित्रस्त्वपराजितश्च ॥ ७९ ॥ नन्दी तथैवर्षभदत्तनामा ततः सुदत्तो वरदत्तसंज्ञः।। धर्मो महात्मा बकुलाभिधानः प्रवतितस्तैरवदानधर्मः ॥८॥
सर्गः
उदय शिवदेवीकी पुण्यकुक्षिरूपी उदयाचलकी गुफासे हुआ था। काशीको महारानी ब्रह्मदत्ताको ही पार्श्वप्रभुको माता होनेका । सौभाग्य प्राप्त था तथा अन्तिम तीर्थंकर वीरप्रभुको पूज्यमाता प्रियकारिणी ( त्रिशला ) देवी थी ।। ७६ ।।
इन सब माताओंने जगद्धितैषी परम पूज्य तोथंकरोंके प्रसवकी पीड़ा सही थी। इनके गुणों की माला अद्भुत थी स्त्रीवेद सामान्य होने पर भी इनमें तथा साधारण स्त्रियों में कोई समता न थी। यही कारण है कि आज भी हम उनके नाम लेते हैं तथा वे समस्त संसारमें विख्यात हैं। इसके बाद उन महापुरुषोंके नामोंका उल्लेख करेंगे जिन्होंने दिगम्बर मुनिरूपधारी तोर्थकरोंको आहारदान देकर महादानी पदवीको प्राप्त किया था ।। ७७॥
आहारदाता राजा श्रेयान्सको कौन नहीं जानता है जिन्होंने आदीश्वर प्रभुको आहारदान देकर दानतीर्थका प्रवर्तन किया था। महापुरुष ब्रह्मा, सुरेन्द्र तवा चन्द्रदत्तने अजितप्रभु, शंभवजिन तथा अभिनन्दननाथको आहारदान देकर परम पुण्यको संचित किया था। भगवान सुमतिनाथ तथा पद्मप्रभके आहारदान दाता श्री पद्म तथा अजित थे। महापुण्यात्मा सोमदेव, महेन्द्रसोम तथा पुष्पदेव भगवान सुपाश्वनाथ, चन्द्रप्रभ तथा पुष्पदन्त प्रभुको आहार दान देकर इनकी तपस्यामें साधक हुए थे ।। ७८॥
श्री शीतलनाथ जब चर्याको निकले तब महात्मा पूनर्वसुने अपने द्वार पर उनके पदग्रहण-प्रतिग्रहण (पड़गाहना) करके नवधाभक्ति पूर्वक आहार दिया था। पुण्याधिकारी नन्द, सुनन्द, जयदेव तथा विजयदेवको श्रेयान्सनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ तथा अनन्तनाथके पदग्रहण करनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था। परम धार्मिक श्री धर्मसिंह, सुमित्र, धर्ममित्र तथा अपराजितने भगवान धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ तथा अरनाथकी तपस्यामें आहारदान सहायता की थी॥ ७९ ॥
महापुरुष नन्दीने मल्लिनाथ भगवानको आहारदान देकर पुण्यका बन्ध किया था। इसी मार्गपर चलकर परम धार्मिक १. क पृथुव्यां। २. म नन्दगौ। ३. [ तैरथ दानधर्मः ] ।
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