________________
ecipe
बराज
एकत्रिंशः
भारतमा
सर्गः
व्रतानि शीलान्यमतोपमानि दयादमौ मातृपितृत्वतुल्यौ । गुणा विशिष्टा बरभूषणेभ्यो ज्ञानं च दध्युनयनं तृतीयम् ॥ ४॥ ऐश्वर्यवीर्यातिजातिवित्तविज्ञानशिल्पिर्मदिरामदैश्च । पुरापि ता मुक्तिपथं प्रपद्य शान्ता बभूवर्नरदेवपत्न्यः ॥५॥ तपोधनानाममितप्रभावा गणाग्रणी संयमनायका सा। मुनीन्द्रवाक्याच्छमणाजिकाभ्यो दिदेश धर्म च तपोविधानम् ॥ ६॥ ताश्च प्रकृत्यैव कलाविदग्धा जात्यैव धोरा विनयविनीताः । आचारसूत्राशनयप्रभङ्गानाधीयते स्माल्पतमैरहोभिः ॥७॥
बाबाRANSAR
- Sapearesmewaapee-SweeHeaHSEXHARASHIRe-res
चारित्र ही संपत्ति पांचों महाव्रतों तथा शीलोंको वे अमृतके समान जीवन दाता समझती थीं। सब प्राणियोंपर दया और इन्द्रियोंका दमन उस समय उनके निस्वार्थ कल्याण चाहनेवाले माता पिताके स्थानको ग्रहण कर चुके थे। अनगारके विशिष्ट गुणोंने ही । सुन्दर भूषणोंकी कमी पूरी कर दी थी, तथा शुद्ध ज्ञान ही उनका तृतीय नेत्र हो गया था ।। ४ ।।
____ जब वे एक सम्राटकी पत्नी थीं, उनका ऐश्वर्य अपार था, वीर्यकी सीमा न थी, कान्तिकी सर्वत्र ख्याति थी; जातिमें 1 गौरव था, धनकी गिनती असंभव थो, सांसारिक विषयोंका विशेष ज्ञान था, ललित कलाओंमें कुशलता थी तथा मदिराका वह उन्माद जिसमें भूत, भविष्यत और वर्तमान एक हो जाते हैं। किन्तु यह सब होनेपर भी रानियोंको वह शान्ति न मिली थी जो कि मोक्षमार्गको पाकर उन्हें प्राप्त हुई थी ॥ ५ ॥
श्री वरदत्त केवलीके संघमें एक प्रधान आयिका थी जिनका तपजन्य प्रभाव समस्त मुनियों तथा श्रमणोंकी अपेक्षा बहुत बढ़ा-चढ़ा था। वे आयिकाओंके गणको प्रधान थीं। संयम साधनाकी भी वे स्वामिनी थी। जब महाराज वरदत्तने उन्हें
नव दीक्षित आयिकाओंको उपदेश देनेका संकेत किया तो उन्होंने उन सबको धर्मका रहस्य तथा तपकी सकल विधिको क्रमसे । समझा दिया था ।। ६॥
सद्गुरुसंयोग आर्यिका दीक्षाको प्राप्त रानियां जन्मसे ही कला, कौशलमें अनुरक्त थीं। अपनी जाति तथा कुलके अनुरूप ही वे धीर तथा गम्भीर थीं। उनकी समस्त शिक्षा तथा अभ्यास विनयके साथ तो हई ही थी। फलतः बहुत थोड़े ही दिनोंमें उन्होंने
पूर्ण आचारको हृदयंगम कर लिया था। बारह अंगोंयुक्त आगमका अध्ययन कर लिया था, सातों नषोंका रहस्य जान लिया था A और सप्तभंगीके मूल तत्त्वोंको भली भांति समझ लिया था ॥७॥
१. [ गुणान्विशिष्टान् ]। २. [ °शिल्पैर्मदिरा ] । ३. मनासका, [ °नायिका ] ।
ZATERRITATE
[६२७]
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org