Book Title: Varangcharit
Author(s): Sinhnandi, Khushalchand Gorawala
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 722
________________ वराङ्ग चरितम् PatientaritasasranATTATRE श्रावस्ती-इस नामका प्राचीन जनपद | इसकी राजधानीका नाम भी श्रावस्ती था । यह तीसरे तीर्थंकर संभवनाथका जन्म स्थान था । वर्तमानमें गौंड़ा जिलेमें शेठ-महेट नामसे ख्यात ग्राम है । वैदिक पुराण और बौद्ध जातकोंमें जैन पुराणोंके समान श्रावस्तीका इतिहास तथा महिमा भरी पड़ी है । राजा सुहिराल ( सुहृदध्वज ) इसके अन्तिम जैन राजा थे । काकन्दीपुर-प्राचीन देश तथा उसकी राजधानी । भद्रपुर-प्राचीन नगर । कम्पिलापुरी-प्राचीन नगर । वर्तमान उत्तरप्रदेशके फरुखाबाद मण्डलकी कायमगंज तहसीलका कुंविल ग्राम । महाभारत में भी इसका नाम आया है। रत्नपुर-प्राचीन नगर । वर्तमान मध्यप्रदेशका एक ग्राम । यहां हैहय वंशी राजा राज करते थे । मिथिलापुरी-प्राचीन विदेह जनपदकी राजधानी । रामायण, महाभारत तथा जैन बौद्ध साहित्य मिथिलाके उद्धरणोंसे भरे पड़े हैं । इन उद्धरणोंके आधार पर प्राचीन मिथिलापुरीके स्थानका निर्णय सुसंभव नहीं है । वर्तमान मुजफ्फरपुर मण्डलके सीतामढी ग्रामसे १२१४ मील दूर स्थित जनकपुर ही प्राचीन मिथिलापुरीका शेष प्रतीत होता है । इस समय यह नेपालकी तराई तथा नेपाल राज्यमें है। सम्मेदाचल-विहार प्रदेशके हजारीबाग मण्डलमें स्थित श्री पार्श्वनाथ पर्वतका पौराणिक प्राचीन नाम । यह जैनियोंके श्री ऋषभदेव वासुपूज्य, नैमिनाथ तथा महावीरके सिवा शेष २० तीर्थंकरोंकी निर्वाण भूमि होनेसे जैनियोंका सबसे बड़ा सिद्ध क्षेत्र है । चौदह रत्न-प्रत्येक चक्रवर्तकि पास १४ रत्न ( सर्व श्रेष्ठ पदार्थ) होते हैं । इनमें १-गृहपति २-सेनापति ३-शिल्पी ४-पुरोहित ५-स्त्री ६-हाथी तथा ७-घोड़ा ये सात चेतन होते हैं । तथा ८-चक्र ९-असि १०-छत्र ११-दण्ड १२-मणि (प्रकाश कारक) १३चर्म (इसके द्वारा जलमें थल वत् गमन होता है ) तथा १४-कांकणी (रत्नकी लेखनी) । प्रथम सातों चेतन रत्न विजयार्द्धसे लाये जाते हैं। चक्र, असि, छत्र तथा दण्ड आयुधशालामें प्रकट होते हैं तथा मणि, चर्म और कांकिणी हिमवन पर्वतके पद्म हृदमें निवास करनेवाली श्री देवीके मन्दिरसे आते हैं। नव निधि-प्रत्येक चक्रवर्तिके पास नौ प्रकारकी निधियां ( कोश ) होती हैं-१-छहों ऋतुओंकी वस्तु दायक को कालनिधि कहते हैं । २-जितने चाहे लोगोंको भोजन दाता महाकाल निधि होती है । २-अन्न भण्डारका नाम पाण्डुनिधि है । ४-शस्त्रों के अक्षय भण्डारका नाम माणवक निधि है। ५-वादित्रोंक भण्डारको शंख निधि नाम दिया है । ६-भवन आदि व्यवस्थापक नैसर्प निधि है । ७-वस्त्रोंके अक्षय भण्डारका नाम पद्म निधि है । ८-आभूषणादि साज-सज्जा दायक पिंगल निधि है । तथा ९-रत्नादि संपत्तिका भण्डार कर्ता रत्न निधि सुमेरु-अत्यन्त ऊँचा पर्वत है । जम्बू द्वीपके केन्द्रमें एक धातुकीखंड तथा पुष्कराद्धक पूर्व पश्चिम केन्द्रमें एक एक अर्थात् मनुष्य लोकमें पांच मेरु हैं । इनके नाम क्रमशः सुदर्शन, विजय, अचल, मन्दिर और विद्युन्माली हैं। प्रथम सुदर्शन मेरु १००० योजन भूमिमें ९९००० पृथ्वीसे ऊपर होता है तथा ४० योजनकी चोटी होती है । यह मूलमें १० सहस्त्र तथा भूमिके ऊपर १ सहस्त्र योजन मोटा है । इस पर नीचे भद्रशाल वन होता है । ५०० यो० की चढ़ाई पर नंदन वन, ६३५०० यो० ऊपर जाकर सौमनस और ३६००० यो० ऊपर जाकर पांडुक वन है । शेष चारों सुमेरु ८४००० यो० ऊँचे हैं अतः इनमें तीसरा सौमनस वन ५५५०० की ऊँचाई पर तथा पांडुक वन २८००० यो० की ऊंचाई पर है। प्रत्येक वनमें चारों दिशाओं में ४ अकृत्रिम जिनमंदिर हैं। इन पर्वतों पर ६१००० A यो० की ऊंचाई तक ही मणि पाये जाते हैं । इसके ऊपर इनका रंग सोने ऐसा है । सामानिक-वे देव जो शासन तथा प्रभुताके सिवा सब बातों में इन्द्रके समान होते हैं। Jain Education interational For Private & Personal Use Only TATE- [६८९] www.jainelibrary.org

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