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भृगु-ब्रह्माके अग्निमें हुत वीर्यसे उत्पन्न ऋषि थे । दश प्रजापतियों और सप्तर्षियोंमें से एक हैं इनका वंश वारुण या भार्गव था जिसमें परशुरामजी उत्पन्न हुए थे।
सत्रि-अनेक यज्ञोंके कर्ता विशेष ऋषि । मधुपिंगल-लिंगपुराणमें वर्णित मुनिका नाम । सुलसा-नागमाता, जिन्होंने हनूमानजीके मार्गमें मायारूप धारण कर बाधा डाली थी । एक राक्षसी तथा अप्सरा भी इस नामकी
वराङ्ग चरितम्
अक्रूर-ये श्वफल्क और गान्दिनीदेवीके पुत्र यादव थे । यह कृष्णजीके काका लगते थे । इनके पास शतधन्वाका स्यमन्तक मणि था जो समस्त रोग, मरी, दुर्भिक्षादिको नष्ट कर देता था ।
देवानांप्रिय-सम्राट अशोककी उपाधि । वैदिक विद्वानोंने धार्मिक विद्वेषके कारण मूर्खको व्यङ्ग्यरूपसे देवानांप्रिय कहना प्रारम्भ किया था।
कृष्णद्वीपायन-पराशर मुनि एक दिन जमुना किनारे आये तो मल्लाहकी लड़की बापके न होनेसे उन्हें उस पार ले जाने लगी । बीच नदीमें मुनि लड़की पर आसक्त हुए और इस प्रकार जमुनाके द्वीप पर एक सन्तति उत्पन्न हुई जो अपने ज्ञानबलके कारण वेदव्यास, कृष्णद्वीपायन नामसे ख्यात हुए।
कमठ-एक विशेष दैत्यका नाम है । इस नामके एक ऋषि भी हुए हैं । यहां ऋषिसे ही तात्पर्य है।
कठ-वेदकी कठ शाखा के प्रवर्तक मुनिका नाम । महाभाष्यके अनुसार ये वैशम्पायनके शिष्य थे । कठकी वेद शाखा वर्तमानमें अनुपलब्ध है।
द्रोणाचार्य-भारद्वाजके पुत्र कौरव-पाण्डवोंके अस्त्र शिक्षक तथा महाभारतके निर्णायक पात्र ।
कार्तिकेय-शिवके वीर्यसे पार्वतीके पुत्र (अग्नि तथा शरवन द्वारा) इन्होंने तारकासुरादि का बध किया था । इनका निवास शरवन अथवा हिमालय पर था । आज भी कमायूमें इनका कार्तिकेय पुर है ।
कुमारी-सीता पार्वतीका नाम । परीक्षितके लड़के भीमसेनकी पत्नीका भी कुमारी नाम था । भारत का दक्षिणी भाग । पृथ्वी का मध्यभाग।
पुष्कर-इस शब्द के चालीस अर्थों में से यहाँ तीर्थ अभीष्ट है । वर्तमान में यह अजमेरके पास है । पुराणों के अनुसार इसमें उत्तम, मध्यम तथा जघन्य तीन पुष्कर (तालाब) हैं । इसमें नहानेसे विशेष पुण्य होता है।
असत्से सत् आदि-गधेके सींग से बंध्या का लड़का अस्तका निदर्शन है | आकाश कुसुमसे पेठाकी कल्पना असत्से सत्का उदाहरण है । जपाकुसुमसे गधेके सींगका प्रादुर्भाव मानना सत्से असत् है । मिट्टीसे घड़ा सत्से सत्का उदाहरण है।
उपादान-जो कारण स्वयमेव कार्यका रूप धारण करे वह उपादान कारण कहलाता है । यथा घड़े के लिए मिट्टी । भाव-जीवके औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक तथा पारिणामिक भाव होते हैं । उत्पाद-नूतन पर्यायका भाव या प्रादुर्भाव ही उत्पाद है । व्यय-एक पर्यायका अभाव या नाश ही व्यय या मरण है ।
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