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बराङ्ग चरितम्
स्वबाहुवीर्याजितभोगवत्या भूपश्रिया साधु विभासमानम् । कश्चिद्भटं राजसुतां च वीक्ष्य जगज्जनः स्वैरमभाषतेत्थम् ॥ २७ ॥ कि किन्नरीणां मिथुनं त्विदं स्यादाहोस्विदायातमयेन्द्रलोकात् । विद्याधराणां विषयादपेतं यदृच्छयेहागतमित्यमस्त ॥ २८॥ अज्ञातवंशः परदेशजातो बन्योऽयमस्याः पतितामुपेतः। पुण्यान्वितानां हि नृणां नृलोके पुण्यान्विता एव भवन्ति भार्याः ॥ २९ ॥ ईदक्सुरूपाणि महोगतानां कोदृक् शिवा तत्र नभश्चराणाम् । ईदग्यदि स्याल्ललितं नराणां कोक्सुराणामिति किं वचोऽस्ति ॥३०॥
एकोनविंशः सर्गः
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विलेपन, पान, आदि भोग-परिभोग सामग्री भेजती रहती थीं। एक रानीकी अपेक्षा दूसरीके उक्त पदार्थ बढ़कर होते थे, मानो पुत्रीपर स्नेह प्रकट करनेमें वे एक दूसरेको हराना चाहती थीं ।। २६ ।।
नवदम्पतिका स्वागत कश्चिद्भटने अपने बाहुबलके द्वारा ही समस्त भोगोंको खान राजलक्ष्मीको प्राप्त किया था। उसकी प्राप्ति हो जाने से उसका तेज व कान्ति विकासकी चरमसीमाको प्राप्त हुए थे। उस समय उसे तथा गुणवती राजपुत्रीको देखकर लोग अपने आप प्रसन्नतासे कह उठते थे ॥ २७ ॥
राजपुत्री तथा कश्चिद्भटकी यह अनुपम जोड़ी क्या किन्नर देवोंका युगल है ? अथवा पर्यटन करती हुई कोई देव देवाङ्गनाकी जोड़ी स्वर्गसे पृथ्वीपर चली आयो है । वे सोचते थे, क्या विद्याधर लोकको छोड़कर ये दोनों यों ही मनुष्य-लोकके पर्यटनको तो नहीं चले आये हैं ।। २८ ॥
कोई कश्चिद्भटके जन्म तथा कुलको भी नहीं जानता है, किसी दूर देशमें उत्पन्न हुआ होगा। किन्तु यह धन्य है जो हमारो राजपुत्रीका पति हो गया है । सत्य हो है जो पुरुष पुण्यलक्ष्मीके भर्ता हैं इस संसारमें उनको पल्लियाँ वे ही हो सकती 4 हैं जिन्होंने पूर्व जन्ममें विपुल पुण्यराशिको कमाया है ।। २९ ।।
लोकका नवदम्पति-अनुराग यदि मध्यलोकमें उत्पन्न स्त्री और पुरुष इतने अधिक रूपवान हो सकते हैं तो स्वर्गवासियोंकी रूपलक्ष्मी कैसी होती होगी। यदि मनुष्य गतिमें उत्पन्न युगल इतना अधिक ललित है तो देवताओंके स्वर्गीय लावण्य और दैवी कान्तिके विषयमें तो कहा ही क्या जा सकता है ? इन दोनोंने पूर्व जन्ममें कौन-सा दुर्द्धर तप किया होगा ।। ३० ॥
१. [ कीदृश्रियश्तत्र]।
रामबालारामनासम्ममण्यमान्चारमन्नान्य
[३६५].
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