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बराङ्ग चरितम
क्षणिका यदि यस्य सर्वभावा फलस्तस्यर भवेदयं प्रयासः । गुणिनां हि गुणेन च प्रयोगो न च शब्दार्थमवैति दुर्मतिः ॥ ४६ ॥ ध्रुवता जगतो यदीष्यते चेद्विपदा तुल्यमतो व्ययः स्वयं स्वभावात् । गमनागमनक्रियानिवृत्तिन च संसारफलोदयो न मोक्षः ॥ ४७ ॥ यदि सर्वमिदं प्रतीत्यसिद्धं ननु सर्वस्य विलोपना प्रसिद्धा। असतस्तु कुतः प्रतीत्यसिद्धेस्तदसिद्धौ वचनं मृषा परस्य ॥ ४५ ॥
चतुर्विध सर्गः
RELमन्चमायामाHISHAL.
बौद्धवाव विचार 'सब भाव तथा पदार्थ क्षणिक हैं' जिसकी ऐसी मान्यता है, उस प्राणीके शुभकर्म करना, अशुभ आरम्भोसे बचना आदि सब ही प्रयत्नोंके क्या फल होंगे? उसके हाथ भी विफलता हो लगेगी। संसारके प्राणी अपनेमें अनेक गुणोंको धारण करने। का प्रयत्न करते हैं, किन्तु क्षणिकवादमें गुण, गुणियोंके किस काम आयेंगे? विपरोत बुद्धि क्षणिकवादी एक शब्दके अर्थतकको तो जान न सकेगा, क्योंकि दोनों अलग-अलग क्षणोंमें उदित होते हैं ।। ४६ ।।
इन अव्यवस्थाओंसे बचनेके लिए यदि संसारके पदार्थोंको सर्वथा नित्य माना जाय, तो इस सिद्धान्तको माननेपर भी वही सब दोष और विरोध पैदा होंगे जो कि जगतको क्षणिक माननेसे होते हैं, क्योंकि संसारका नाश होना भी स्वाभाविक है। नित्य माननेपर स्थिर पदार्थोंका गमन और चलती हुई द्रव्योंको ठहरना आदि कियाएँ असम्भव हो जायेंगी । संसारमें किसी भी प्रकारके परिणाम न हो सकेंगे, मोक्षका तो कहना ही क्या है ॥ ४७ ॥
संसारके समस्त सचराचर पदार्थ प्रतीत्यसिद्ध ( स्वतःन होते हुये भी परस्परकी अपेक्षासे उत्पन्न होते और लुप्त हो । जाने लगते हैं ? ) हैं। यदि इसी सिद्धान्तको सत्य माना जाय तब तो किसी भी पदार्थकी वास्तविक सत्ता सिद्ध न हो सकेगी। । इसके अतिरिक्त एक और शंका उत्पन्न होती है कि जिस पदार्थका वास्तविक आकार है ही नहीं वह ज्ञानको अपना प्रतिबिम्ब
क्या देगा? फलतः प्रतिवादोके सिद्धान्तको मूल भित्तिके ही असिद्ध हो जानेके कारण उसका समस्त कथन ही असत्य हो । जायगा ।। ४८॥
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१. म सर्वभाषा।
२. [विफलस्तस्य ] |
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