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पंचविशः
बराङ्ग चरितम्
सर्गः
भीष्मो हि गङ्गातनयो महात्मा महारथो युद्धमुखे च शूरः । शरावितः शान्तनजो' नपषिः क्षेत्रे कुरूणां निपपात धोमान् ॥ ४५ ॥ आगर्भतो घातसुखस्य [-] नोद्घाटितं धर्ममहाकवाटम् । गङ्गाकुरुक्षेत्रमथाजिशौर्य निरर्थकं तत्त्रयमित्युशन्ति ॥ ४९ ।। पाण्मासिकं तेन तपोऽतिघोरं शरासनेन क्रियते स्म यस्मात् । तस्मात्तपोमलमिदं समस्तं जगच्च सेन्द्रासुरमानुषाख्यम् ॥५०॥ तीर्थानि लोके विविधानि यानि तपोधनैरध्ययुषितानि तानि । स्तुत्यानि गम्यानि मनोहराणि जातानि पुंसां खल पावनानि ॥५१॥
महाराज शान्तनुके औरस पुत्र राजर्षि भोष्म गंगाजीके साक्षात् पुत्र थे, उनका आचार भी लोकोत्तर था, अकेले ही। कितने ही महारथियोंके साथ युद्ध करते थे। इतना ही नहीं उनकी वीरताका वास्तविक प्रदर्शन तो तब ही होता था जब वे घोर संग्राममें लीन हो जाते थे । किन्तु जब इन मतिमान, महात्माको भी अर्जुनका बाण लगा था, तो वे उसके आघातसे निश्चेष्ट। होकर कुरुक्षेत्रमें धराशायी हो गये थे ।। ४८॥
गंगाजीने गर्भ अवस्थासे लेकर ही जिस पुत्रके मुखको वात्सल्यसे विगलित होकर चमा था उसकी ही जब युद्धमै मृत्यु आयी तो उसके लिए भी गंगाजीने धर्मरूपी द्वारके किवाड़ न खोले थे। क्या इस दष्टान्तसे पतितपावनी गंगाकी निस्सारता सिद्ध नहीं होती है क्या अपितु वैदिक आम्नायमें पवित्र करनेकी अपनी सामर्थ्य के लिए प्रसिद्ध कुरुक्षेत्र तथा युद्धके पराक्रमकी भी निष्फलता प्रकट हो गयी थी ।। ४९ ।।
महात्मा भीष्मने पूरे छः माह पर्यन्त शरासनमुद्रा को धारण करके अतिघोर तप किया था तब कहीं उनका उद्धार हो सका था (वैदिक मान्यशरों की अर्जुनकृत शय्या पर नहीं) इससे स्पष्ट हो जाता है कि जीवकी सद्गति या दुर्गतिका मूल कारण उसका तप ही है। मनुष्य जन्म या मनुष्य योनिके सुख दुख ही नहीं अपितु देव, इन्द्र, आदिके सुखोंका मूल कारण भी शुद्ध तप ही है ।। ५० ॥
तीर्थयात्रा विचार पूरे देशमें फैले हुए जिन, जिन स्थानों पर उन उग्र तपस्वियोंने निवास किया है जिनका लगातार धन निरतिचार तप हो था वे सबके सब आज हमारे विविध तीर्थक्षेत्र हो गये हैं। दर्शन करनेके लिए मनुष्य वहाँ जाते हैं, दूर रहते हुए भी उनकी स्तुति करते हैं तथा उनके मन उधर इतने आकृष्ट हो जाते हैं कि वे सर्वदा उन्हीं ( तीर्थों ) के विषय में सोचते हैं। वहाँ पहुँचनेपर । संसारी मनुष्य अपनी कुप्रवृत्तियोंको भूल जाते हैं फलतः वे उन्हें पवित्र करते हैं ।। ५१ ।।
१.क शातनचो, [ शान्तनबो]। २.क पूतसुखस्य, [ प्रात° ]। ३. [ तस्य ] ।
aur LISTRIREEKEDARENDERA
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