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चरितम्
स्यात्सागराणां खलु कोटिकोटयश्चतुर्थकालस्य हि कोटिकोटी । सप्ताहता षट् च सहस्रहोना त्रिसप्तसप्ताष्टसमासहस्रम् ॥३०॥ स्यान्मानमेतत्किल पञ्चकस्य षष्ठस्य कालस्य तदेव मानम् । त्रैकाल्यविद्भिः कथितं यथावच्चतुर्थकालस्य हि मध्यकाले ॥३१॥ उत्पेदिरे कारणमानुषास्ते जिनाश्चतुर्विशति तत्र जाताः । ते चक्रिणो द्वादश राजवर्या नव प्रदिष्टा खल वासुदेवाः ॥ ३२॥ नवैव तेषां प्रतिशत्रवश्च प्रतिश्रुतिश्चैव हि संमतिश्च । क्षेमकरस्तत्र तृतीय आसीत्क्षेमंधरश्चापि चतुर्थकः स्यात् ॥ ३३ ॥
सप्तविंशः सर्वः
तृतीय
तृतीय काल तकका प्रमाण जैसा कि अभी कहा है कोडाकोडि सागर प्रमाण ही है, किन्तु चतुर्थ कालका प्रमाण छह में सातका गुणा करनेपर जो ( ब्यालीस ) आवे उतने ( ब्यालोस ) हजार वर्ष हीन एक कोड़ाकोड़ि सागर है। अर्थात् चौथा-पांचवा ॥ एवं षष्ठ कालका मिलकर एक सागर मात्र है ।। ३० ।। ।
पञ्चम काल दुःषमाका प्रमाण सातमें तीनका गुणा करनेपर जो आवे उतने हजार वर्ष ( इक्कीस हजार ) है तथा छठे काल दुषमा दुषमाका प्रमाण भी उतने ( इक्कोस ) हजार वर्ष शास्त्रों में मिलता है। तोनों लोकों तथा तीनों कालोंके द्रव्यों तथा पर्यायोंके ज्ञाता अर्हन्त केवलीने अपनो दिव्य ध्वनिमें कहा था कि चतुर्थ काल दुःषमा-सुषमाके आधे भागके वीत जानेके उपरान्त उसके ठीक मध्य समयमें ही ॥ ३१ ।।
युग प्रमाण इस भारत क्षेत्रमें जो कि हम लोगोंकी पुण्य तथा पितृभूमि है वे चौबीस महापुरुष उत्पन्न हुये थे जो कि भोगभूमिके नष्ट । हो जानेके बाद मनुष्य वर्गको कर्मभूमिके लिये आवश्यक जीविका तथा जीव उद्धारके मार्गपर चलानेमें कारण हुये थे। अनादिकालसे बँधे हुये आठों कर्मोको नष्ट करके जिन्होंने सार्थक 'जिन' नामका प्राप्त करके मुक्तिको प्रस्थान किया था।
शलाका पुरुष -चौबीस तीर्थंकरोंके तीर्थकालमें हो भरत आदि बारह चक्रवर्ती उत्पन्न हुये थे, नौ वासुदेव बलभद्र तथा नौ हो नारायणोंका भी आविर्भाव हुआ था ।। ३२ ।।
नारायणोंके भयंकर शत्रु श्रेष्ठ राजाओंकी भी संख्या नौ ही है इन्हें शास्त्रोंमें प्रति-नारायण शब्दसे कहा है जिस समय भोगभूमिका ह्रास होने लगा था उस समय सबसे पहिले प्रतिभूति नामके गणनायक हुये थे, उनके बाद सन्मतिका आविर्भाव हुआ था। तीसरे पथप्रदर्शकका नाम क्षेमंकर था उनके उत्तराधिकारी जननेता श्री क्षेमंधर चौथे महापुरुष थे। ३३ ।।
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