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वराङ्ग
चरितम्
वेदाः प्रमाणं यदि यस्य पुंसस्तेन ध्रुवो यज्ञविधिस्त्वभीष्टः । हिंसानुबन्धाः खलु सर्वयज्ञाः हिंसा परप्राणिविहिंसनेन ॥ १२ ॥ प्राणातिपातश्च महानधर्मः सर्वेषु वर्णाश्रमिणां मतेषु ।
पंचविंशः अधर्मतोऽन्धे तमसि प्रविश्य जीवः समाप्नोति विचित्रदुःखम् ॥१३॥ यज्ञे' वधे नैव वधोऽस्ति कश्चिद्वध्यो ध्रवं याति सरेन्द्रलोकम। इदं वचो धूर्तविटस्य वेद्यं दयोपशान्तिश्रतिवजितस्य ॥ १४ ॥ स्ववन्धुमित्रान्प्रियपुत्रपौत्रान् दारिद्यूदुःखातिवियोगखिन्नान् । सुखार्थिनस्तान्सुगतिप्रकाशान् जुहुर्न' चेत्तथ्यमिदं वचः स्यात् ॥ १५ ॥
यज्ञिको हिंसा जो व्यक्ति वेदोंमें कहे गये प्रत्येक उपदेशको प्रमाण मानते हैं, उन्हें वेदोंमें वणित विविध यज्ञोंको सत्य ही न मानना पड़ेगा, अपितु उन सबको करना भी उनका अनिवार्य तथा अभीष्ट कर्तव्य हो जायगा। कोई भी यज्ञ ऐसा नहीं है जिसमें हिंसा का उपक्रम न करना पड़ता हो और यह तो निश्चित ही है कि जब हिंसा की जायगी तो कुछ निरपराध प्राणियोंको अपने जीवनसे हाथ धोने ही पड़ेंगे ॥ १२ ॥
यह कौन नहीं जानता है कि प्राणोंको नष्ट करनेसे प्रत्येक अवस्थामें महान पाप ही होता है। कोई भी धर्म, आश्रम अथवा वर्ण हिंसाको पुण्यकार्य नहीं मानता है । निष्कर्ष यह हुआ कि वेदके अनुसार यज्ञ-यागादि करके जीव अधर्मको कमायेंगे और जब उसका फल उदयमें आयेगा तो वे घोर अन्धकारपूर्ण नरक आदि योनियोंमें जन्म लेकर विविध, विचित्र तथा भीषण दुःखोंको सहेंगे ।। १३ ॥
यज्ञमें जो प्राणी बलि किया जाता है उसके प्राण लेनेमें कोई हिंसा नहीं है, क्योंकि जो प्राणधारी मारा जाता है । उसका उद्धार हो जाता है, वह सीधा स्वर्ग चला जाता है । यह वचन किसी ऐसे धूर्त अथवा दुराचारी पुरुषके मुखसे निकले हैं " जो सत्य शास्त्रका अक्षर भी नहीं जानता था तथा जिसपर दया, शान्ति आदि सद्गुणोंकी छांह तक नहीं पड़ी थी ॥ १४ ॥ ९.)
जो पुरुष यज्ञ करते हैं वे सांसारिक दुःखों तथा अन्य मानसिक व्यथाओंसे व्याकुल होते हैं तथा इनसे बचकर सुखभोगके लिए तरसते हैं । उनके सगे भाई-बन्धु, मित्र, प्राणाधिका पत्नो, पुत्र, पौत्र आदि भी दरिद्रता, रोग आदि अप्रिय संयोगोंके कारण जीवनसे खिन्न हो जाते हैं और चाहते हैं कि किसी भी प्रकार उक्त विपत्तियोंसे छुटकारा पाकर सुखीरूपसे जीवन निर्वाह करें।
इन परिस्थितियोंके रहते हुए यदि ऊपरका वाक्य ( यज्ञमें मरे पशु आदि स्वर्ग जाते हैं ) सत्य होता तो यज्ञकर्ता सबसे पहिले अपने । १. [ याज्ञे ]। २. म पौत्रपुत्रान् । ३. क जहुन ।
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