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त्रयोविंशः
चरितम्
गन्धार्चनेश्चम्पकनागगन्धान्मा ' स्वगन्धेरतिशेरते तान् । धूपप्रदानः कुलकेतवः स्युस्तेजस्विनः स्युवरदीपदानैः ॥७८॥ माल्यप्रदानविरतेश्चरेभ्यो भवन्ति हेमाङ्गदषिताङ्गाः। भवन्ति भास्वन्मकुटप्रदानात्स्फुररिकरीटोत्तमपट्टचिह्नाः ॥७९॥ शुद्धिं लभन्ते वरदर्पणेन भृङ्गारतः स्युः कमनीयरूपाः । शान्ति भजन्ते कलशप्रदानात् स्थालाद्धनेनाढयतमा भवन्ति ॥८॥ चक्रप्रदानाद्विनतारिपक्षास्तूय स्त्रिलोकप्रथितप्रणादाः विद्याधरत्वं हि वितानदानाच्छत्रप्रदानाद्विपुलं हि राज्यम् ॥ ८१॥
सर्गः
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द्रव्यपूजा का फल जो मनुष्य सुगन्धित द्रव्योंके द्वारा वीतराग प्रभूकी पूजा करते हैं उनके शरीर, श्वास, पसीना आदि ऐसे सुगन्धित । होते हैं कि उसके आगे चम्पक, नागकेशर आदि प्रखर गंधमय पुष्पोंकी सुगन्ध भी मन्द पड़ जाती है धूपकी अंजलि समर्पित करने से मनुष्य अपने कुलोंमें प्रधान व्यक्ति होते हैं तथा दीपकसे अर्चना करनेका परिणाम होता है तेज युक्त भाव और देह ।। ७८ ।।
मालाओंके उपहार जिन चरणोंमें देनेसे केवल विषयोंसे हो विरक्ति नहीं होती है, अपितु स्वर्णमय अंगद, आदि आभूषणोंसे देह अलंकृत रहती है। मुक्ताओं और रत्नोंसे जगमगाते मुकुट समर्पित करनेसे जीव स्वयं ही अगले भवमें प्रकाशमान मुकुट और राजचिन्ह पट्ट, आदिको प्राप्त करते हैं ।। ७९ ॥
मंगल-द्रव्य-पूजाका फल स्वच्छ सुन्दर दर्पण भेंट करनेसे पापमल शुद्ध होता है, मंगलचिन्ह चढ़ाकर जीव सुभग तथा कमनीय रूपके अधिकारी । बनते हैं, कलश चढ़ानेसे कषाय आदि दोषोंकी शान्ति होती है तथा स्थाली थाल चढ़ाकर जीव सबसे बड़े धनाढ्य होते हैं ।। ८०॥ ॥
अष्ट-मंगलों का फल धर्म-चक्र मंगल द्रव्यको चढ़ानेके प्रतापसे जीव समस्त शत्रुओंका विजेता होता है, तूर्य भेंट करनेके परिणामस्वरूप सम्यक्दृष्टी पुजारीकी कीति तीनों लोकोंमें गायो जाती है, चंदोवा चढ़ानेके ही कारण लोग अलौकिक विद्याके ज्ञानसे विभूषित १. [ माः ] । २. क तिरीटोत्तम ।
SIRECEIREEमराना
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