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बराङ्ग चरितम्
कति गजाः समवाः कति वाजिनः कति हि योषगणाः कति नायकाः । कति च मन्त्रविदः कति वल्लभाः कथय वेदितुमिच्छति मे मतिः॥६६॥ इति महीपतिना प्रतिचोदितः स्वपतिचक्रबलस्थितिपौरुषम् । युधि वराङ्गविनिर्मितसाहसं जलधिवृद्धिरजिज्ञपदाशु तत् ॥ ६७ ॥ हृदयहारिवचःश्रवणामृतं सपदि सम्यगिदं समुदाहृतम् । सकलमेतदवैमि वराङ्ग इत्यभिहितं भवता वद कीदृशम् ॥ ६८॥ स्थितिगतिद्युतिरूपपराक्रमैः प्रियसुतस्तव सोऽस्ति भवत्समः । व्यतिगतेषु विनेष्विभकारणो नवर येन कृतः प्रथितो रणः ॥ ६९ ॥
विंशतितमः सर्गः
'हे सार्थपते ! मेरा मन सैन्य सम्बन्धी विगतको जाननेके लिये उत्सुक है अतएव बताओ कि महाराजकी मदोन्मत्त गजसेनाका प्रमाण क्या है, अश्वारोही सेना कितनी है, तथा पैदल सेनाकी संख्या क्या है। इस सेनाका संचालन करनेवाले नायकों का प्रमाण कितना है । ललितेश्वरके साथ कितने कुशल मंत्री आये हैं। इन सबके अतिरिक्त साथ आनेवाले मित्रों तथा प्रियजनों। का क्या प्रमाण है ।। ६६ ॥
महाराज धर्मसेनके द्वारा पूछे गये समस्त प्रश्नोंका उत्तर देते हुये महामति सेठ सागरवृद्धिने अपने नृपतिके सपक्षी राजाओं, चतुरंग सेनाकी स्थिति तथा पुरुषार्थ आदिको विगतवार बता दिया था। इतना ही नहीं, महाराजका उत्साह बढ़ाने के अभिप्रायसे उन्होंने शीघ्रतापूर्वक युवराज वरांगके समस्त पराक्रमों को भी कह सुनाया था जो कि उन्होंने अनेक युद्धोंमें प्रदशित किये थे ॥ ६७॥
पुत्र-जिज्ञासा हे सार्थपति ! आपने जो यह सब भलीभाँति वर्णन किया है, आपके वचन हृदयको बलपूर्वक तुम्हारी ओर आकृष्ट कर रहे हैं। कानोंको तो वह शब्द अमृतके समान हैं। मैं यह सब तो पहिले ही से जानता हूँ, केवल इतना हो जानना चाहता हूँ कि जिस वरांगके विषयमें आपने यह सब कहा है वह रंगरूपमें कैसा है ।। ६८ ॥
उद्रिक्त पितृत्व इस प्रश्नके उत्तरमें सेठ सागरवृद्धिने इतना ही कहा था-'हे महाराज उठने, बैठने, बोलने, चालने, कान्ति, रंग तथा पराक्रममें सर्वथा आपके ही समान है। हे महाराज! वह आपका ही ज्येष्ठ पुत्र है। अप्रतिमल्ल हाथोके कारण मधुराधिपसे जो प्रसिद्ध रण कुछ दिन पहिले ही हुआ था, उस रणको जीतनेवाला भी वही है ॥ ६९ ॥
१.[ कीदृशः]। Jain Education Internatio
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