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वराङ्ग चरितम्
त्रयोविंशः सर्गः
अष्टोत्तराः शीतजलैः प्रपूर्णाः सहस्रमात्राः कलशा विशालाः । पद्मोत्पलोत्फुल्लपिधानवक्रा जिनेन्द्रबिम्बस्नपनैककार्याः ॥ २६ ॥ चतुःप्रकारा ह्य पमानिकाख्या हारिद्रगन्धोदनसत्कृताश्च । निर्वतितास्राः परिधाप्य सूत्रं दूर्वाङ्करानै रचिताः शिरस्सु ॥ २७ ॥ सुदर्शनीयाः फलजातयश्च क्षीरद्रुमाणां च कषायवर्गाः । मनः शिलाहिबलकुङ्कमाद्या वर्णप्रकाराश्च सुसंगृहीताः ॥२८॥ गोशीर्षसंज्ञं वरचन्दनं च गन्धान्सुगन्धीन्विविधप्रकारान् । पथग्विधान् धूपवरानथान्यान्पूजाविधिज्ञी विदधौ पुरोधाः ॥ २९ ॥ विचित्रवर्णान्वरवासचन्दशार्धवर्णाश्च चरूननेकान्। माल्यं च संघातिमकादिरम्य विपञ्चया:२ पञ्चविधा बभूवः ॥ ३०॥
(आठ अधिक एक हजार अर्थात् ) एक हजार आठ बड़े-बड़े कलश शीतल जलसे भर कर रखे गये थे। उनके मुख विकसित कमलों, नीले कमलों आदिसे ढके हुए थे। श्री जिनेन्द्रदेवके महाभिषेकके समय ही यह कलश काममें लाये जाते थे ॥ २६ ॥
चार प्रकारकी उपमानिकाओं ( मिट्टीके घड़े जो कि पूजा आदि धार्मिक काममें आते हैं ) को हल्दी, सुगन्ध द्रव्य तथा ओदन आदिसे संस्कृत किया था। उनपर मालाएँ भी बाँधी गयी थीं। तथा दूवाको रखकर कच्चे तागेसे बांधकर उनको तैयार करके किनारोंपर रख दिया था। सब जातिके शिष्ट फल एकत्रित किये गये थे जिन्हें देखकर आँखें तृप्त हो। जाती थीं ।। २७॥
दूधयुक्त वृक्षोंके फल-पनस, आदि भी लाये गये थे तथा आँवला आदि कसैले फलोंकी भी कमी न थी। मनःसिला । (मैनसिल एक प्रकारकी गेरू ) ईगु ( हिंगुल ) कुंकुम, आदि रंगोंकी सब जातियाँ वहाँपर संचित की गयी थीं ॥ २८ ॥
सुगन्धित द्रव्य जिनमें उत्तम चन्दन, गोरोचन, आदि अग्रगण्य थे इन सब सुगन्धित पदार्थों तथा भाँति-भांतिके अन्य गन्ध द्रव्योंको, अनेक प्रकारकी; एक से एक बढ़कर धूपोंको तथा अन्य पूजाकी सामग्रीको पूजाकी विधिके विशेषज्ञ पुरोहितने प्रचुर मात्रामें संकलित किया था ।। २९ ।।
भाँति-भाँतिके सुगन्धित चूर्णोका भी संचय किया गया था, इनके रंग भी बड़े विचित्र थे। विविध प्रकारके नैवेद्य अनेक रंगों और आकारोंसे युक्त करके बनाये गये थे । संघातिक (विशेष रंग-विरंगी माला ) आदि सुन्दर मालाओंके ढेर लगे हुए थे। १. म चरीननेकान् । २. [ विपञ्चिकाः] ।
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