________________
T
वराङ्ग
चरितम्
एकोनविंशः सर्ग:
क्वचिद्विचित्रं ननतुस्तरुण्यः क्वचिच्च गीतं मधुरं जगश्च । आस्फोटर भाण्डाः करतालशब्दान्विल म्बनां चारितोऽमुतश्च ॥ १७ ॥ श्रीमण्डपे लम्बितपुष्पदाम्नि विचित्रविन्यस्तबलिप्रदेशे। सिंहासने काञ्चनपादपीठे निवेश्य कश्चिद्भटमीशपुत्र्या ॥ १८ ॥ पनापिधानैर्वरहैमपुष्पैः सुशीतगन्धोत्कटवारिगर्भः। श्रेणिप्रधानेश्वरमन्त्रिमुख्यास्तौ स्नापयां प्रीतिमुखा बभूवः ॥ १९ ॥ ज्वल'किरीटं प्रणिधाय मूनि स्वयं नरेन्द्रस्तु बबन्ध पट्टम् । कृत्वाग्निधर्मोदकसाक्षिभूतं कश्चिद्दभटाय प्रददौ सुनन्दाम् ॥ २० ॥ मत्तद्रिपानां तु सहस्रसंख्या द्विषट्सहस्राणि तुरनमानाम् । ग्रामाः शतेन प्रहताः सहस्रा हिरण्यकोट्यश्च चतुर्दशैव ॥ २१ ॥
wee-wees mee WA MWA-
WYGweweweweeg
PAHIPATHegreememeenawesearneswe412
किसी स्थल पर युवती स्त्रियाँ अद्भुत-अद्भुत नृत्य कर रही थीं, दूसरी ओरसे मधुर मोहक गोतकी ध्वनि आ रही थी, अन्य स्थलोंपर भांड जोर-जोरसे तालियाँ पीटकर इधर-उधरकी नकलें तथा स्वांग भरने में मस्त थे ।। १७ ।।
विवाह-मंडप श्रीमण्डपकी शोभा लोकोत्तर थी उसमें कोई ऐसा स्थल ही न था जहाँपर सुन्दर सुगन्धित पुष्पोंकी मालाएँ न सजायी गयी हो । स्थान, स्थानपर चौक पूर कर विपुल अर्कोको चढ़ाया गया था। वर-वधूके लिए जो सिंहासन रखा था उसके पाये आदि सब ही भाग विशुद्ध स्वर्णसे बने थे । इस सिंहासनपर महाराज देवसेनकी पुत्रीके साथ कश्चिद्भट बैठाये गये थे ॥१८॥
सिंहासनके पास सोनेके कलश रखे थे, उनमें सुशीतल तथा उत्कट सुगन्धयुक्त तीर्थजल भरा था, वे मनोहर कमलोंसे ढके हुए थे। इन्हीं कलशोंको उठाकर परमप्रसन्न ललितेश्वर, मंत्रि, राज्यके प्रधान तथा श्रेणी और गणोंके द्वारा मुखियोंने वरवधका अभिषेक कराया गया था ॥ १९॥
वर-वधू अभिषेक इसके उपरान्त महाराजने स्वयं ही कश्चिद्भटके शिरपर मुकुट पहिनाया था जिसका प्रकाश चारों ओर फैल गया था। और स्वयं ही उन्होंने जामाताको पट्टा बाँधा था। इस क्रमसे विवाहके संस्कारोंको करते हुए महाराज देवसेनने धर्म, अग्नि तथा जलको साक्षी करके कश्चिद्भटसे अपनी पुत्रीको व्याह दिया था॥ २० ॥
दहेजमें दिये गये मदोन्मत्त हाथियोंकी संख्या एक हजार थी, सुशिक्षित घोड़ोंका प्रमाण भी ( दो छह ) बारह १[ विडम्बना]। २.क ज्यलत्तिरीटं ।
[३६६
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org