________________
वराङ्ग चरितम्
LOPMETHNICATI
द्वादशः सर्गः
यद्यस्ति पुण्यं तनयस्य तेऽस्य' तन्मे सहायत्वमुपैति देवि । कालेऽभ्युपायोद्यतशस्त्रशक्तिः सिद्धय यतिष्ये धृतिमेहि साध्वि ॥ २३ ॥ अन्योन्यसंप्रत्ययकारणानि परैरवज्ञातपथस्थितानि । रहस्युपामन्त्र्य तदर्थजानि शनैरपेयुर्दढगूढमन्त्राः ॥ २४ ॥ संधकामश्च सुषेणराज्यं वराङ्गराज्यं विनिहन्तुकामः । तिष्ठन्त्रजज्जाग्रदपि स्वयं च रन्ध्राणि पश्यन्प्रणिनाय कालम् ॥ २५ ॥ उद्यानयाने बलदर्शने वा सभास्वरण्येषु पुरान्तरेषु । क्रीडासु नानाविधकल्पनासु छिद्रप्रहारो स बभूव तस्य ।। २६ ॥
i mensinessuremstmenesTRISHNASHea
H IRDatext-423LIT.
अपने शिरको हिलाया, इस प्रकार किसी निर्णयपर पहुँचकर कर्तव्यके विशेष ज्ञाता उस मंत्रीने पुत्र सहित रानीको भक्तिपूर्वक प्रणाम किया और निम्नप्रकारसे कहा । २२॥
___ 'हे देवि ! यदि आपके इस पुत्र सुषेगका वास्तवमें कुछ भी पुण्य अवशिष्ट है तो वह सब आजसे ही प्रकृत कार्यमें मेरा सहायक हो ? मैं सब प्रकारसे उपाय करके शस्त्रको शक्ति या सैन्यबलको खड़ा कर लेनेपर समय आते ही सफलताके लिए पूर्ण प्रयत्न करूँगा, तब तक हे साध्वि ? आप धीरज धरें ।। २३ ॥
इसके उपरान्त आपसी सन्देह दूर करने तथा विश्वास दिलानेको इच्छासे उन्होंने प्रकृत कार्य सम्बन्धी अनेक विषयोंपर एकान्तमें गढ़ मंत्रणा की थी, जिसको उचित स्थान, काल और व्यक्तिके साथ किये जानेके कारण दूसरोंको गंध भी न लगी थी। इस प्रकार दृढ़ और गम्भीर मंत्रणा करनेके बाद वह चला गया था ।। २४ ।।
अब उसकी यही अभिलाषा था कि किसी प्रकार सुषेणका राज हो तथा कुमार वरांगके राज्यकालका शोघ्रसे शीघ्र अन्त हो । अतएव वह बैठे हुए, चलते हुए, सोते-जागते हुए, आदि सब ही अवस्थाओंमें वरांगके राज्यके दुर्बल तथा दूषित अंगोंको स्वयं ही खोजनेमें सारा नमय बिताता था ।। २५ ॥
कुमार वरांगके वायु सेवनके लिए उद्यानमें जानेपर, शारीरिक शक्तिके प्रदर्शनके अवसरपर, सभामें राजकार्य करते । समय, आखेट आदिके लिए वनमें जानेपर, किसी दूसरे नगरमें पहुँचनेपर, खेल कूदमें तथा नाना प्रकारकी अन्य कल्पनाओंके सहारे वह कुमार वरांगके छिद्रोंको (कमियों) खोजता था और उन सब दुर्बलताओंको अपने कामकी सिद्धिमें लगानेका प्रयत्न करता था ॥ २६ ॥
ResmameeSpasmamepreneamr
casRTAWA
[२००]
। १. म तस्य ।
२. म तिमाह° ।
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org