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बराङ्ग चरितम्
केनापि हयरूपेण दवदानवरक्षसा । सर्वेषामग्रतो नीतो वराङ्गस्तु महीपते ॥७॥ तेषां तद्वचनं श्रुत्वा समाहयात्ममन्त्रिणः । मन्त्रमध्यास्त मतिमान्यवराजाय वाहने (?) ॥८॥ विचारयत केनायं द्विषता नोपवाहितः। 'कुमारोभ्यतरस्वेन बत बाह्यन मण्डले ॥९॥ रूपलावण्यलोभेन विद्याबलयुवा स्त्रिया। देवरक्षःपिशाचैर्वा हृतः स्यात्पूर्ववैरिभिः ॥ १०॥ इत्याज्ञाप्य नूपोऽमात्यान्मण्डलानि प्रतीक्षितुम् । दूतान्संप्रेषयामास मार्गनार्थमितोऽमुत:॥११॥ ते मडम्बपुरग्रामा न्नधरण्यगिरिव्रजान् । परीत्य न च पश्यन्तो निराशाः पुनराययुः ॥ १२ ॥
पञ्चदशः सर्ग:
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रण करनेकी शिक्षा ही दी गयी थी, उसकी गतिका वेग वायुके समान तीव्र था तथा वायुके समान वह अवाध्य था यही कारण है कि वह राजपुत्रको ले भागा है ।। ६ ।।
हे महीपते ! हमारा तो विश्वास है कि वह साधारण घोड़ा नहीं था अपितु कोई पूर्वभवका वैरी देव, दानव या राक्षस ही घोड़ा बनकर आया था। यही कारण है कि वह हम सबके देखते ही देखते युवराज वरांग ऐसे प्रबल प्रतापी कुशल अश्वाR रोहीको भो लेकर भाग गया है ।। ७॥'
तुरन्त लोटकर आये लोगोंके उक्त वचनों को सुनकर राजाने अपने सबही बुद्धिमान तथा भक्त मंत्रियोंको बुलाया था । राजा स्वयं विपुल विवेकी थे तो भी युवराज के अपहरणके उद्देश्यों तथा उनपर क्या क्या बीत सकती है, इत्यादि बातों का स्पष्ट विचार करनेके लिए उन्होंने मंत्रियोंके साथ मतविनिमय करना प्रारभ किया था ॥ ८॥
अपहरण हेतु विमर्ष आप लोग भलिभांति सोचें की वर्तमान राजमण्डल में कौन ऐसा हमारा शत्रु है जिसने इस प्रकार कपट करके युवराजका अपहरण कर लिया है । बड़े आश्चर्य की बात है, कि क्या यह अपहरण किसी ऐसे व्यक्तिने कराया है जो हमारे बीचमें घसा हआ है अथवा किसी बाहरीके द्वारा ही यह सब किया गया है ॥९॥
ऐसा भी देखा गया है कि तन्त्र-मन्त्र आदि विद्याओंमें प्रवीण शक्ति तथा प्रभुता युक्त पद पर विराजमान स्त्रियों के द्वारा उनका अपहरण कराया जाता है जिनके सौन्दर्य-स्वास्थ्य पर वे मोहित हो जाती हैं। अथवा पूर्वभवका वैरी कोई देव, राक्षस अथवा पिशाच उसे हर ले गया है ।। १० ।।
इस शैलीसे प्रकृत विषय पर विचार करनेके लिए मंत्रियोंको आज्ञा देकर राजाने समस्त राजमण्डलोंमें युवराज का पता लगाने के लिये तथा स्वयं यह देखनेके लिए कि इस अपहरण की वहाँ पर क्या प्रतिक्रिया हो रही है, अपने सुयोग्य दुतोंको राजधानीसे सब दिशाओंमें भेजा था ॥ ११ ॥
गुप्तचरों की शोध ये दूत लोग सतर्कतापूर्वक ग्राम, मडम्ब, नगर, नदी, वन, पर्वत तथा वजों ( पशुपालकों की बस्ती ) के भीतर जाकर ॥ १. [ कुमारोऽभ्यन्तरत्वेन । २. क मार्गणार्थमतोऽमुतः । ३. म°ामान्मध्वयरण्य° ।
सन्दरामयाराम
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