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बराज चरितम्
रत्नहारप्रवालांश्च नूपुरप्रकटाङ्गदम्। मुक्ताप्रलम्बसूत्राणि मालावलयमेखलाः ॥ ५७ ॥ कटकान्यूरुजालानि केयूराः कर्णमुद्रिकाः। कर्णपूरान् शिखाबन्धान्मस्तकाभरणानि च ॥५८॥ कण्ठिकावत्सदामानि रसनाःपादवेष्टाकाः। आलण्ठ्याकुच्य सर्वाणि चिक्षिपुविदिशो दिशः॥ ५९॥ पतितैरङ्गतस्तासां राजीनां विगतौजसाम् । द्यौरिव ग्रहनक्षत्रैर्भूषणैर्भूरभासत ॥ ६०॥ सर्वासां राजपत्लोनां समेतानां समग्रतः। कृताञ्जलिरुवाचेदं युवराजप्रियाङ्गना ॥६१॥ न जीवितुमितः शक्ता विना नाथेन पार्थिव । त्वया प्रसादः कर्तव्यः पावकं प्रविशाम्यहम् ॥ ६२॥
पञ्चदशः सर्गः
IELमायानारामान्यतया
प्रकारसे रोते विलपते देखा तो उनके नयनोंमें भी आसुओंकी बाढ़ आ गयी तथा दुःखका आवेग इतना बढ़ा कि उनके मुखसे एक शब्द भी न निकल सका था ।। ५६ ।।
उन्हें एक प्रकार उन्माद सा हो गया था अतएव रत्नोंके तथा मोतियों के हारोंको विछओं तथा चमचमाते अगवों को सुतमें मोती पिरोकर बनायी गयी करधनी, कर्णफल आदिकी झालर रत्नों और मणियोंकी माला, हाथोंके कड़े, । करधनी ।। ५७ ॥
भाँति-भाँतिको घूघुरुओंकी झालरयुक्त सुन्दर पाद-कटक, कर्णभूषण, कानोंका लोगें, कर्णपूर, केशोंके जूटेमें गुथे मुक्ताहार, शीर्षफल आदि मस्तकके आभरण, रत्नोंके विविध हार, मूंगोंके आभूषण, पैरोंके सौभाग्य चिह्न नुपुर भुजाओंके । आभूषण बाजूबन्ध (अंगद ), गलेको कण्ठी ।। ५८ ॥
श्रीवत्समणि युक्त मुक्तादाम, छोटी-छोटी घंटियों युक्त रसना तथा पैरको ढक लेनेवाला चरणभूषण पायल इन सब भूषणोंको शरीरपरसे नोच, झटक कर दिशा, विदिशाका ख्याल किये बिना ही रानियाँ इधर-उधर फेंकती जाती थीं। ५९ ॥
शोकके आवेगसे उत्पन्न इन क्रियाओंके द्वारा म्लान रानियोंकी कान्ति तथा तेज नष्ट होता जा रहा था उनके द्वारा शरोरपरसे उतारकर फेंके गये भूषणोंसे पृथ्वी पट गयी थो। भूषणयुक्त पृथ्वीको शोभा वैसी ही थो जैसी कि ग्रह, नक्षत्र तथा ताराओंसे प्रकाशमान आकाशकी होती है ।। ६० ।।
उस दुःखको घड़ीमें लगभग सबही अन्तःपुरकी रानियाँ विशेषकर युवराजकी सब ही वधुएँ अपने-अपने महलोंसे आकर । वहाँ इकट्ठी हो गयी थीं। इनमें जो वधु युवराजकी परम प्रिय थी वह उठकर खड़ी हो गयी थी और दोनों हाथ जोड़कर महाराज धर्मसेनसे निवेदन कर रही थी।। ६१ ।।
'हे पिताजी ! पतिसे वियुक्त होकर हम सब अब और अधिक समय तक जीनेमें सर्वथा असमर्थ हैं, अतएव अब आपको हृदय कड़ा करके हमपर अनुग्रह करना ही चाहिये, मैं तो अब जलतो ज्वालामें प्रवेश करतो हूँ ।। ६२ ।।
RESEALTraiचान यामाचरम्यान
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। १. म प्राकटाङ्गदम् ।
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