________________
RD
वराङ्ग
सप्तमः
चरितम्
मद्याङ्गतूर्याङ्गविभूषणाला ज्योतिर्ग्रहा भाजनभोजनाङ्गाः । प्रदीपवस्त्राङ्गवरप्रसंगा दशप्रकारास्तरवस्तु तत्र ॥ १४ ॥ अरिष्टमैरेयसुरामधूनि
कादम्बरीमद्यवरप्रसन्नाः'। मदावहानासवनातियोग्यान्मद्याङ्गवृक्षाः सततं फलन्ति ॥ १५ ॥ मृदङ्गवीणावरशङ्खतालान्मुकुन्दसंगां व्रजदुन्दुभिश्च । सुखानुनादानुरुमर्दलांश्च तूर्याङ्गवृक्षा विसृजन्ति तत्र ॥ १६ ॥ किरीटहाराङ्गदकुण्डलानि ग्रीवोरुबाहदरबन्धनानि । स्त्रीपुसयोग्यानि विभूषणानि विभूषणाला विसृजन्ति शश्वत् ॥ १७॥
TATARAHATARIAGIRIOTA
घाटोंकी प्रभा सुशोभित है, उनका मध्यभाग पूर्ण विकसित कमलों और नीलकमलोसे भरा रहता है और उत्तम कारण्डवों और हँसों की जोड़ियां उनमें विहार करती हैं ।। १३ ।।
मद्यांङ्ग ( मदिगंग ), तूर्याङ्ग, विभूषणांग ज्योत्यंग, रहांग, भाजनांग, भोजनांग, प्रदीपांग, वस्त्रांग और वरप्रसंगांग अथवा माल्यांग ये दश प्रकारके श्रेष्ठ कल्प = वृक्ष होते हैं अर्थात् वृक्ष-करप-विना लिये देने वाले, स्वाभाविक संघटन होते हैं ।।१४।।
दश कल्पवृक्ष मद्यांग वृक्ष सदा ही अरिष्ट ( सविधि निकाला गया सार) मैरेय ( रासायनिक क्रियासे निकाला गया फल फूलोंका सत् ) सुरा ( सड़ाकर निकाला गया फलोंका रस ) मधु (मधुमक्खियों द्वारा संचित पुष्प पराग आदि ) कादम्बरी (निर्मल प्रकारकी मदिरा), आदि मदको लानेवाले पदार्थोंको तथा अत्यन्त उत्तम आसवोंको अत्यन्त निर्मल और उत्तम मात्रामें उक्त कल्पवृक्ष देते हैं ।। १५॥
भोगभूमिमें उत्पन्नांतूर्यांग कल्पवृक्ष बढ़िया-बढ़िया मृदगों, वीणाओं तथा शंखतालोंको, आजकल न दिखनेवाले मुकुन्द संग और ग्वालोंकी बस्तियों में बजनेवाली दुन्दुभियोंको तथा आसानीसे बजाने योग्य बड़े-बड़े मर्दलों ( ढोलों) को वहाँपर यथेच्छ1 रूपमें देते हैं ।। १६ ॥ म भूषणांग वृक्ष वहाँपर स्त्रियों और पुरुषोंके योग्य मुकुट, हार, अंगद ( बाजूबन्द ), कुण्डल, गले, वक्षस्थल, भुजाओं,
पेट आदिपर पहिनने योग्य मनोहर व सुन्दर आभूषणों आदि विविध प्रकारके मण्डनोंको सतत और सदा वितरण करते रहते । [११६] हैं॥१७॥
१. [प्रसन्मान् || Jain Education International
२. [ संज्ञा वजदुन्दुर्भाश्च ] ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org