________________
दशमः
वराङ्ग चरितम्
ये निष॑तानामुपमा वदन्ति होनोपमास्ते नृपतेऽनभिज्ञाः । तुल्योपमानं भुवि नास्ति किंचित्त एव तेषामुपमा भवेयुः ॥ ५५ ॥ आदित्यतोऽन्यो भुवि नास्ति भास्वान् समुद्रतोऽन्यो न जलाश्रयश्च । न चोच्छितोऽन्याऽस्ति गिरिगिरीन्द्रान्न मोक्षतोऽन्योऽस्ति' सखप्रतिष्ठा ॥५६॥ तुलां विना तुल्यमशक्यमिष्टं मातुं न शक्यं खल मानहीनम् । सहेतुकैतुपथव्यतीतं न शक्यते बोधयित वचोभिः॥ ५७॥ संसारघोरार्णवपारगाणां द्रव्यादितत्त्वार्थसुदर्शनानाम् । महौजसां क्षायिकसत्सुखं यन्न तत्समस्तं गदितु हि शक्यम् ॥ ५८ ॥
IPPROAPAHARRAIPMAJSTHAKAARRENTASHARMA
किन्हीं दूसरे स्वरोंसे किसी प्रकार तुलना की जाती है किन्तु संसारसे पूर्ण छुटकारा पाकर अतीन्द्रिय सुखोंके भोक्ता सिद्धोंकी उक्त प्रकारकी ( एक सिद्धकी दूसरे सिद्धके साथ ) तुलना भी संभव नहीं है ।। ५४ ।।
हे भूपते ! जो लोग सांसारिक बन्धनोंसे मुक्त सिद्धोंकी कोई उपमा देते हैं वे उपमाके रहस्यको नहीं समझते हैं, वे अज्ञ क्योंकि उनका सादृश्य होनोपमा (उत्तम पदार्थकी निकृष्ट से तुलना यथा सफेद दाढ़ी युक्त मुखको पूर्णिमाके चन्द्रमाके साथ) हैं। उनके समान दूसरा उपमान पृथ्वी पर है ही नहीं । यदि कोई उनका उपमान हो सकता है तो वह स्वयं ही है ॥ ५५ ।।
इस लोकमें कोई भी पदार्थ सूर्यसे अधिक आतप और उद्योत युक्त नहीं है, समुद्रसे बढ़कर कोई जलका आश्रय नहीं है । तथा पर्वतोंके राजा सुमेरुको अपेक्षा पृथ्वोतल पर कोई भी पर्वत अधिक ऊँचा नहीं है इसी प्रकार यो समझिये कि कोई भी सुखोंका आश्रय मोक्षकी अपेक्षा बड़ा नहीं है ।। ५६ ।।
किसी भी इच्छित पदार्थको तुला ( तराज ) के बिना तौलना असाध्य है, यदि कोई माप न हो तो पदार्थोंका प्रमाण । बतलाना असंभव है इसी प्रकार जो पदार्थ अनुमान और तर्कके क्षेत्रसे बाहर है उसे हेतु युक्त वचनोंके द्वारा समझाना भी असंभव है ॥ ५७॥
[१७२] समस्त दुःखोंसे व्याकूल संसाररूपी घोर समुद्रके जो उस पार चले गये है, जीव, धर्म, अधर्म आदि छहों द्रव्यों तथा । सातों तत्त्वोंको जो साक्षात् देखते हैं तथा महा प्रतापी सिद्धोंमें जिस क्षायिक अनन्त-सुखका उदय होता है उसका अविकल वर्णन । कौन कर सकता है ? ॥ ५८ ॥
१.मोक्षतोऽन्यास्ति ] ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org