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स्वतंत्रता संग्राम में जैन सचमुच ऐसा ही हुआ। इतनी सामग्री संकलित हो गई है कि इसे तीन खण्डों में प्रकाशित करने की योजना है। पूज्य आचार्यश्री के चरणों में बारम्बार कोटिशः नमोऽस्तु।
आचार्य विद्यासागर जी महाराज के संघस्थ पुज्य ऐलक अभयसागर जी महाराज (सम्प्रति-मनि श्री अभय सागर जी महाराज) के हमने दर्शन भी नहीं किये थे, तब उन्होंने विभिन्न लोगों को प्रेरणा देकर एतद्विषयक सामग्री भिजवाना प्रारम्भ कर दिया था। इतनी अधिक सामग्री का संकलन होना उन्हीं की प्रेरणा का प्रतिफल है। पूज्य मुनिश्री के चरणों में कोटिशः नमोऽस्तु।
__ पूज्य आचार्य विद्यानन्द जी महाराज ने जब हमारी पुस्तक 'अमर जैन शहीद' का दिल्ली के परेड ग्राउण्ड में लोकार्पण किया था, तब असीम प्रसन्नता व्यक्त की थी और कार्य की त्वरा के प्रति प्रेरित किया था। उनके श्रीचरणों में पुनः पुनः नमोऽस्तु।
ग्रन्थ की पाण्डुलिपि लगभग 3-4 वर्ष पूर्व तैयार हो गई थी और किसी प्रकाशक की राह देख रही थी। परमपूज्य सराकोद्धारक उपाध्यायरत्न श्री ज्ञानसागर जी महाराज की दृष्टि इस ओर पड़ी। उन्हीं के आशीर्वाद से इसका प्रकाशन सम्भव हुआ है। पूज्य उपाध्यायश्री जैन विद्या और विद्वानों के संरक्षण का जो कार्य कर रहे हैं, वह युगों-युगों तक स्मरण किया जायेगा, उनके श्रीचरणों में अनन्तश: नमोऽस्तु।
य मनि श्री क्षमासागर जी महाराज, मनि श्री सधासागर जी महाराज, मनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज, मुनि श्री विनीतसागर जी महाराज, मुनि श्री चन्द्रसागर जी महाराज, पूज्य क्षुल्लक श्री धैर्यसागर जी महाराज, क्षुल्लक श्री गम्भीरसागर जी महाराज का आशीर्वाद हमें सदैव मिलता रहा है, उनके श्रीचरणों में अनेकशः नमोऽस्तु-इच्छामि।
जिन पुस्तकों/पत्र-पत्रिकाओं/आलेखों से यह पुस्तक तैयार हुई है, उनके लेखकों के हम आभारी हैं। वस्तुतः तो यह कार्य उन्हीं का है। उन रिश्तेदारों/मित्रों/परिचितों/अपरिचितों का आभार न मानें तो कृतघ्नता होगी, जिन्होंने अपने व्यस्त समय में से समय निकालकर हमारे पत्रों के उत्तर दिये हैं। जिस स्थान के सेनानी का पता चला वहीं के अपने रिश्तेदार/परिचित/मित्र को तत्काल पत्र लिख डाला। कुछ ने जबाब दिया, कुछ ने झुंझलाकर लिखा कि-'आपको क्या जरूरत आन पड़ी है, यह काम करने की। आज स्वतंत्रता सेनानी अपनी देशसेवा का नगदीकरण करा रहे हैं, उनके पुत्र तक देशसेवा के बदले सुख-सुविधायें भोग रहे हैं क्या यह उचित है?' आदि-आदि। कुछ ने लिखा कि 'उस समय जो भी जेल गये थे, वह आज सेनानी बने हए हैं।' कुछ ने हमारे पत्र बिना अपनी कोई टिप्पणी किये वापिस भेज दिये और कुछ ने तो कुछ लिखना ही उचित नहीं समझा। शताधिक पत्र ऐसे भी हैं जो पता गलत होने/परिवर्तित होने से वापिस आ गये। पर या स्वयं अपने आप ही पत्रादि देकर सहयोग करने वालों तथा सेनानियों के पुत्र-पुत्रियों/रिश्तेदारों आदि का उल्लेख यथा स्थान कर दिया गया है। अंग्रेजी, उर्दू, मराठी आदि भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद कर सहयोग करने वाले महानुभावों के भी यथास्थान उल्लेख कर दिये हैं। हम उनसे उपकृत हुए हैं। हमारे सामने समस्या यह है कि किसका नाम पहले दें, किसका बाद में? अतः हम अकारादि क्रम से सभी बन्धुओं के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
श्री अरुण कुमार शास्त्री, ब्यावर, श्री अभय कुमार जैन, अकोना, श्री अभिनन्दन सांधेलीय, पाटन, श्री आनन्द गोयल, भिण्ड, श्री आलोक कुमार जैन, नरसिंहपुर, श्री मौ0 उमर, खतौली, डॉ) कमलेश कुमार जैन, वाराणसी, श्री कमलेश बी० गांधी, सूरत, श्री कुबेर चंद जैन, मण्डला, श्री कुसुमकान्त जैन, सदस्य
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