Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, १, १. तम्हा ण पुवुत्तदोसाणमेत्थ संभवो त्ति सिद्धं ।
अहवा मोक्खलु सुत्तब्भासो कीरदे । मोक्खो वि कम्मणिज्जरादो, सा वि णाणाविणाभाविझाणचिंताहिंतो, ताओ वि सम्मत्तादो । ण च सम्मत्तेण विरहियाणं णाण-झाणाणमसंखेज्जगुणसेडीकम्माणिज्जराए अणिमित्ताणं णाण-झाणववएसो पारमत्थिओ अत्थि, अवगयट्ठसद्दहणणाणे अमोक्खढुज्झमे च तव्ववएसब्भुवगमे संते अइप्पसंगादो । तम्हा सम्माइट्ठिणा सम्माइट्ठीणं चेव वक्खाणेयव्वं सुत्तमिदि जाणावणटुं जिणणमोक्कारो को ।
अवगयणिवारणमुहेण पयदत्थपरूवणटुं णिक्खेवो कीरदे । तं जहा- णाम-ढवणादव्व-भावभेएण चउबिहा जिणा । जिणसद्दो णामजिणो । ठवणजिणो सब्भावासब्भावट्ठवणभेएण दुविहो । जिणायारसंठियं दव्वं सब्भावट्ठवणजिणो । [जिणायारविरहियं पि जिणरूपेण कप्पियं दव्वं असब्भावट्ठवणजिणो। ] दव्वजिणो आगम-णोआगमभेएण दुविहो । जिणवाहुडजाणओ अणुवजुत्तो अविणट्ठसंसकारो आगमदव्वजिणो। णोआगमदव्वजिणो जाणुयसंरीर-भविय-तव्वदिरित्तभेएण तिविहो । तत्थ जाणुयसरीरणोआगमदव्वजिणो भविय-वट्टमाण
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ऐसा माननेपर अतिप्रसंग दोष आता है। इस कारण यहां पूर्वोक्त दोषोंकी सम्भावना नहीं है, यह सिद्ध हुआ।
___ अथवा मोक्षके निमित्त सूत्रोंका अभ्यास किया जाता है। मोक्ष भी कर्मोकी निर्जरासे होता है। वह कर्मनिर्जरा भी ज्ञानके अविनाभावी ध्यान और चिन्तनसे होती है । ज्ञानके अविनाभावी ध्यान और चिन्तन भी सम्यक्त्वसे होते हैं। सम्यक्त्वसे राहत ज्ञान-ध्यानके असंख्यात गुणी श्रेणीरूप कर्मनिर्जराके कारण न होनेसे 'शान-ध्यान' यह संज्ञा वास्तविक नहीं है, क्योंकि, अर्थश्रद्धानसे रहित ज्ञान और मोक्षार्थ न किये जानेवाले उद्यममें वह संशा स्वीकार करनेपर अतिप्रसंग होता है । इसीलिये सम्यग्दृष्टि द्वारा सम्यग्दृष्टियोंको ही सूत्रका व्याख्यान करना चाहिये, इस बातके ज्ञापनार्थ जिननमस्कार किया गया है ।
___ अप्रकृतका निवारण करते हुए प्रकृत अर्थके प्ररूपणार्थ निक्षेप किया जाता है। वह इस प्रकार है- नाम, स्थापना, द्रव्य और भावके भेदसे जिन चार प्रकार हैं । 'जिन' शब्द नाम जिन है । स्थापना जिन सद्भावस्थापना और असद्भावस्थापनाके भेदसे दो प्रकार हैं । जिन भगवान्के आकार रूपसे स्थित द्रव्य सद्भावस्थापना जिन है । [जिनाकारसे रहित जिस द्रव्यमें जिन भगवान्की कल्पना की जाय वह द्रव्य असद्भावस्थापना जिन है। ] द्रव्य जिन आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकार है। जिनप्राभृतका जानकार, अनुपयुक्त और संस्कारके विनाशसे रहित जीव आगमद्रव्य जिन है। नोआगमद्रव्य जिन शायकशरीर, भव्य और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकार है । उनमें
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