Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, १, १. तस्स तत्थ फलाभावादो त्ति ? ण एस दोसो, एत्तियमेत्तं चेव विणासेदि त्ति णियमाभावादो। कधं पुण एसो जिणिंदणमोक्कारो एक्को चेव संतो अणेयकज्जकारओ १ ण, अणेयविहणाणचरणसहेज्जस्स अणेयकज्जुप्यायणे विरोहाभावादो (उत्तं च
एसो पंचणमोक्कारो सव्वपावप्पणासओ।
मंगलेसु अ सव्वेसु पढम होदि मंगलं' ॥ १॥इदि ण च एसो एक्कल्लओ चेव सव्वकम्मक्खयकरणसमत्थो, णाण-चरणम्भासाणं विहलत्तप्पसंगादो । तदो सव्वकज्जारंभेसु जिणिंदणमोक्कारो कायव्वो, अण्णहा पारद्धकज्जणिप्पत्तीए अणुववत्तीदो । उत्तं च
(आदी मंगलकरणं सिस्सा लहु पारवा हवंतु त्ति । __ मज्झे अयोच्छित्ती विज्जा विज्जाफलं चरिमे ॥ २ ॥
कोई फल नहीं है ?
समाधान -यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, वह केवल सूत्राध्यायवमें विघ्न करने. थाले कर्मोंका ही विनाश करता है, ऐसा कोई नियम नहीं है।
शंका-तो फिर यह जिनेन्द्रनमस्कार एक ही होकर अनेक कार्योंका करनेवाला कैसे होगा? .
समाधान-नहीं, क्योंकि अनेक प्रकार ज्ञान व चारित्रकी सहायता युक्त होते हुए उसके अनेक कार्योंके उत्पादनमें कोई विरोध नहीं है । कहा भी है
यह पंचनमस्कार मंत्र सर्व पापोंका नाश करनेवाला और सब मंगलों में प्रथम मंगल है ॥१॥
और यह अकेला ही सब कोका क्षय करने में समर्थ है नहीं, क्योंकि, ऐसा होनेपर शान और चारित्रके अभ्यासकी विफलताका प्रसंग आवेगा । इस कारण सब कार्योंके आरम्भमें जिनेन्द्रनमस्कार करना चाहिये, क्योंकि, ऐसा करनेके विना प्रारम्भ किये हुए कार्यकी सिद्धि घटित नहीं होती। कहा भी है
शास्त्रके आदिमें मंगल इसलिये किया जाता है कि शिष्य शीघ्र ही शास्त्रके पार. गामी हो। मध्यमें मंगल करनेसे निर्विघ्न कार्यपरिसमाप्ति और अन्तमें उसके करनेसे विद्या व विद्याके फल की प्राप्ति होती है ॥२॥
१मूला. ७, १३.
२.ख.पु. १ पृ.४०,२०; पढमे मंगलवयणे सिरसा सत्थस्स पारगा होति । मजिझम्मे णीविग्धं विज्जा विम्बाफलं चरिमे ॥ ति. प. १, २९. .
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