Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, १.]
कदिअणियोगद्दारे मंगलायरणं जिणवयणविणिग्गयत्थादो अविसंवादेण केवलणाणसमाणादो उसहसेणादिगणहरदेवेहि विरइयसदरयणादो दव्वसुत्तादो तप्पढण-गुणणकिरियावावदाणं सव्वजीवाणं पडिसमयमसंखेजगुणसेढीए पुव्वसंचिदकम्मणिज्जरा होदि त्ति णिप्फलमिदं सुत्तमिदि । अह सफलमिदं, णिप्फलं सुत्तज्झयणं; तत्तो समुवजायमाणकम्मक्खयस्स एत्थेवोवलंभो त्ति ? ण एस दोसो, सुत्तज्झयणेण सामण्णकम्मणिज्जरा कीरदे; एदेण पुण सुत्तज्झयणविग्धफलकम्मविणासो कीरदि ति भिण्णविसयत्तादो । सुत्तज्झयणविग्धफलकम्मविणासो सामण्णकम्मविरोहिसुत्तब्भासादो चेव होदि त्ति मंगलसुत्तारंभो अणत्थओ किण्ण जायदे ? ण, सुत्तत्थावगमब्भासविग्धफलकम्मे अविणढे संते तदवगमब्भासाणमसंभवादो। ण च कारणपुव्वकालभावि कज्जमत्थि, अणुवलंभादो। जदि जिणिंदणमोक्कारो सुत्तज्झयणविग्घफलकम्ममेत्तविणासओ तो ण सो जीविदावसाणे कायव्वो,
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हुआ है, जो विसंवाद रहित होने के कारण केवलज्ञानके समान हैं, तथा वृषभसेनादि गणधर देवों द्वारा जिनकी शब्दरचना की गई है, ऐसे द्रव्य सूत्रोंसे उनके पढ़ने और मनन करने रूप क्रियामै प्रवृत्त हुए सब जीवोंके प्रति समय असंख्यात गुणित श्रेणीसे पूर्व संचित कौकी निर्जरा होती है ' इस प्रकार विधान होनेसे यह जिननमस्कारात्मक सूत्र व्यर्थ पटना है। अथवा. यदि यह सत्र सफल है तो सूत्रोंका अध्ययन व्यर्थ होगा, क्योंकि. उससे होनेवाला कर्मक्षय इस जिननमस्कारात्मक सूत्रमें ही पाया जाता है ?
समाधान—यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, सूत्राध्ययनसे तो सामान्य कर्मोंकी निर्जरा की जाती है; और मंगलसे सूत्राध्ययनमें विघ्न करनेवाले कर्मोंका विनाश किया जाता है; इस प्रकार दोनोंका विषय भिन्न है।
शंका - चूंकि सूत्राध्ययनमें विघ्न उत्पन्न करनेवाले काँका विनाश सामान्य कर्मों के विरोधी सूत्राभ्याससे ही हो जाता है, अतएव मंगलसूत्रका आरम्भ करना व्यर्थ • क्यों न होगा?
समाधान-ऐसा नहीं है, क्योंकि, सूत्रार्थके ज्ञान और अभ्यासमें विघ्न उत्पन्न करनेवाले कर्मोका जब तक विनाश न होगा तब तक उसका ज्ञान और अभ्यास दोनों असम्भव हैं। और कारणसे पूर्व कालमें कार्य होता नहीं है, क्योंकि, वैसा पाया नहीं जाता।
शंका-यदि जिनेंद्रनमस्कार केवल सूत्राध्ययनमें विघ्न करनेवाले कर्मों मात्रका विनाशक है तो उसे मरण समयमें नहीं करना चाहिये, क्योंकि, उसका उस समयमें
प्रतिषु सव्वमुत्तादो तप्पडण.' इति पाठः।
२ प्रतिषु · विरोह-' इति पाठः।
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